भोपाल .. स्कूल और पुस्तक विक्रेताओं का एकाधिकार समाप्त करने के लिए प्रदेश में पाठ्यक्रम की सूची सार्वजनिक करने की व्यवस्था है। स्कूलों को हर वर्ष दिसंबर में अगले शैक्षणिक सत्र की सूची सूचना पटल, अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करनी होती है। उन्हें जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) को भी सूची उपलब्ध करानी होती है, जो डीईओ कार्यालय के सूचना पटल पर चस्पा की जाती है, पर इसके लिए भी इंतजार करना पड़ता है। न तो स्कूल खुद सूची सार्वजनिक करते हैं और न ही इसकी जिम्मेदारी संभालने वाले डीईओ कराते हैं। जब तक कि कोई मांग न करे। मांग जोर पकड़ने तक डीईओ जनवरी का महीना निकाल देते हैं, फिर 15 दिन में सूची जमा करने के निर्देश देते हैं, जो अधूरी होती है, जिसे सुधारने के लिए 15 दिन का समय दिया जाता है। ऐसा करके छोटे विक्रेताओं से पुस्तकें रखने का अवसर छीन लिया जाता है।
शासन और प्रशासन का मानना है कि ज्यादा दुकानदार पुस्तकें रखेंगे तो प्रतिस्पर्धा होगी और पाठ्यक्रम के दाम कम होंगे। इसके लिए करीब सात साल पहले व्यवस्था बनाई गई थी कि स्कूल अक्टूबर-नवंबर में पाठ्यक्रम तय करेंगे और दिसंबर के पहले सप्ताह में सूची सार्वजनिक करेंगे। यह भी कहा गया था कि छोटे विक्रेताओं को स्कूल सूची उपलब्ध नहीं कराते हैं तो डीईओ स्कूलों से मंगाकर देंगे। विक्रेता एमएस खान का कहना है कि यह सूची दिसंबर में मिल जाए, तो प्रकाशकों से पुस्तकें खरीदना आसान होता है, जबकि जनवरी अंत तक सूची मिलने पर पुस्तकें नहीं मिलती हैं, क्योंकि तब तक बड़े विक्रेता भंडारण कर लेते हैं। यही कारण है कि जानबूझकर पुस्तकों की सूची देरी से जारी कराई जाती है। इसमें पुस्तक विक्रेता और डीईओ की साठ-गांठ होती है।
दबाव बनाने पर आती है अधूरी सूची …
छोटे पुस्तक विक्रेता इसे अवसर मानकर सूची सार्वजनिक कराने की मांग करते हैं। जब दबाव बढ़ता है तो डीईओ स्कूलों से सूची मांगते हैं और स्कूल संचालक अधूरी (लेखक या प्रकाशक के नाम के बगैर पुस्तकों का नाम) सूची देते हैं। यह सूची पहले ही 15 से 20 दिन में आती हैं, फिर स्क्रूटनी में अधूरी सूची होने का पता चलता है और स्कूलों से 15 दिन में सुधारने को कहा जाता है। ऐसा करके एक से डेढ़ माह निकाल देते हैं। कई बार अधूरी सूची ही सार्वजनिक कर दी जाती है, ताकि अनुबंध कर चुके पुस्तक विक्रेताओं के अलावा कोई और भंडारण न कर सके।
कलेक्टर भी नहीं लेते संज्ञान
इस व्यवस्था से कलेक्टर भी सीधे तौर पर जुड़े हैं पर वे भी डीईओ का ही साथ देते हैं। जब तक डीईओ खुद जाकर न कहें, तब तक स्कूलों से पुस्तकों की सूची मांगने के मामले में खुद संज्ञान नहीं लेते हैं।