बैन मूवी देखना-दिखाना क्राइम!

 क्या हो सकती है जिंदगी भर की जेल?
IPC की धारा 292 के तहत पहली बार दोषी पाए जाने पर एक वर्ष तक की सजा और 2000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. वहीं दूसरी बार 5 साल तक की सजा और 5,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.

गुजरात दंगे पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री क्या आपने भी देखी? या फिर देखने या लोगों को दिखाने की सोच रहे हैं? क्या यह क्राइम है? इसको लेकर बवाल मचा हुआ है. जेएनयू में स्क्रीनिंग को लेकर हुई हिंसा के बाद अब जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में इस फिल्म की स्क्रीनिंग रखी गई थी. इंस्टाग्राम पोस्ट के अनुसार, 25 जनवरी यानी आज शाम इंडिया: द मोदी क्वेश्चन का शेड्यूल तय किया गया था. हालांकि इसकी अनुमति नहीं मिली है.

बैन के बावजूद कुछ आर्काइव लिंक और टेलिग्राम चैनलों पर उपलब्ध होने के चलते देश में इस डॉक्यूमेंट्री की कॉपी उपलब्ध है और इसकी स्क्रीनिंग कराई जा रही है. कांग्रेस समेत कुछ अन्य पार्टियों के नेता भी इसे दिखाए जाने के पक्ष में हैं.

सवाल ये है कि किसी कंटेंट, वीडियो या डॉक्यूमेंट्री पर बैन लगाए जाने के बावजूद इसे देखना, इसकी स्क्रीनिंग कराना कितना बड़ा क्राइम है, इसको लेकर कानून क्या कहता है और इस अपराध के लिए क्या सजाएं हो सकती है. यह जानने-समझने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता कुमार आंजनेय शानू से बात की. उन्होंने कानून के नजरिए से कई बिंदुओं पर बात स्पष्ट की.

प्राइवेट स्पेस में देखना अपराध नहीं

कानून की नजर में लोकहित में और राष्ट्रहित में कंटेंट पर प्रतिबंध लगाए जाते रहे हैं. कोई साहित्य हो, किताबें हों, तस्वीरें हों या फिर कोई वीडियो कंटेंट हों, सब पर समान कानून लागू होते हैं. हालिया विवाद पर अपना विचार रखने से परहेज करते हुए शानू कहते हैं, “कानून की दृष्टि में किसी प्रतिबंधित कंटेंट या वीडियो को प्राइवेट स्पेस में देखना अपराध नहीं है. कोई व्यक्ति चाहे तो अपने घर में प्रतिबंंधित वीडियो देख सकता है.”

वो कहते हैं कि घर-परिवार के लोग और दोस्त वगैरह भी चाहें तो अपने यहां ऐसी वीडियो देख सकते हैं. बशर्ते वह इसका प्रचार-प्रसार न कर रहा हो. प्रचार-प्रसार करने को लेकर कानून की कई धाराओं के अंतर्गत ये अपराध हो सकता है. ऐसा करना सर्कुलेशन के दायरे में आएगा, जो अपराध है.

आईटी नियमों के तहत बैन

हिंसा की संभावना, अश्लीलता, राष्ट्र के प्रति द्वेष, सामाजिक सद्भाव बिगड़ने की आशंका और अन्य कारणों से सरकारें कंटेंट पर प्रतिबंध लगाती हैं. कुमार आंजनेय ने बताया कि सरकार आजकल ज्यादातर बैन आईटी रूल 2021 के नियम 16 के तहत लगाती हैं. इसमें सचिव स्तर के अधिकारी के पास यह अधिकार होता है. समिति बनाकर, समीक्षा कर वो ऐसे फैसले ले सकते हैं. सरकार ही क्यों न हों, उन्हें भी नियम और कानून के तहत ही एक्शन लेने का अधिकार है.

बैन कंटेंट का सर्कुलेशन है अपराध

किसी बैन कंटेंट का सर्कुलेशन कानून की नजर में अपराध है. यानी जिस तरह से जेएनयू में डॉक्यूमेंट्री दिखाने के किलए क्यूआर कोड स्कैन करने की बात सामने आई, यह सर्कुलेशन के दायरे में आ सकता है. डॉक्यूमेंट्री को इस तरह सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करना कानूनन अपराध हो सकता है. बैन कंटेंट के सर्कुलेशन के लिए आईपीसी की धारा 292 और 293 के तहत दो से पांच साल तक की सजा हो सकती है.

इन धाराओं में बैन कंटेंट के लिए ‘ऑब्सीन’ का प्रयोग किया गया है. ऐसे कंटेंट के दायरे में पुस्तक, पुस्तिका, कागज, लेख, रेखाचित्र, रंगचित्र रूपण वगैरह रखे गए हैं. ऑब्सीन का अर्थ यूं तो अश्लील, कामुक से है, लेकिन इसकी अलग व्याख्या भी की जा सकती है. जैसे कि वैसा कंटेंट जो राज्य के प्रति द्वेष पैदा करता हो या फिर सामाजिक सद्भाव बिगाड़ता हो.

क्या सजा मिल सकती है?

आईपीसी की धारा 292 के तहत पहली बार दोषी पाए जाने पर एक वर्ष तक की सजा और दो हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. वहीं दूसरी बार यही क्राइम करने पर 5 साल तक की सजा और 5,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.

ऐसे कंटेंट के सर्कुलेशन पर तब आईपीसी की धारा 293 लागू होगी, जब कोई 20 साल से कम उम्र के लोगों के बीच ऐसा कंटेंट प्रसारित करेगा तो पहली बार 3 साल तक की सजा और 2,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है. वहीं दूसरी बार अपराध साबित होने पर 7 साल तक की सजा और 5,000 रुपये तक के जुर्माने से दंडित किए जाने का प्रावधान है.

कुमार शानू ने बताया कि अगर प्रशासन बैन कंटेंट के प्रदर्शन की मनाही करता है, इसके बावजूद इस आदेश की अवहेलना की जाती है तो इस स्थिति में धारा-188 लागू होगी. सरकारी पदाधिकारी के आदेश की अवहेलना के अपराध में 6 महीने तक की सजा हो सकती है.

क्या राजद्रोह होगा ऐसा करना?

अगर किसी साहित्य, फोटो, वीडियो या फिल्म में ऐसे आपत्तिजनक कंटेंट हों, जिनसे राज्य के प्रति लोगों के मन में नफरत की भावना फैलती हो, राज्य के प्रति गुस्सा भड़कता हो तो ऐसे में इसे आईपीसी की धारा 124-ए यानी राजद्रोह (Sedition) के दायरे में भी माना जा सकता है.

124-ए के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति बोलकर या लिखकर, संकेतों या दृश्यों के जरिये या फिर किसी और तरह से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने का प्रयास करता है तो वह राजद्रोह का आरोपी माना जाएगा. यदि वह भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष भड़काने का भी प्रयास करता है तो वह राजद्रोह का आरोपी होगा. राजद्रोह गैर जमानती धारा है और इसमें 3 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है.

बच सकते हैं अगर…

किसी साहित्य, कंटेंट, वीडियो पर बैन लगाने के अलग-अलग कारण हो सकते हैं. कई बार केंद्र या राज्य सरकारें अलग-अलग वजहों से बैन लगाती हैं. ऊपर जो कानून बताए गए हैं, जरूरी नहीं कि हर परिस्थिति में उन कानूनों के तहत दोषी ठहराया जाए. आंजनेय बताते हैं कि कई बार चीजें पब्लिक गुड के लिए की जाती है.

यानी बैन कंटेंट का प्रचार-प्रसार अगर जनहित में हो, इससे लोगों की भलाई होती है तो सजा से बचा जा सकता है. राजद्रोह के मामले में एक तथ्य ये भी है कि किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ कंटेंट राज्य के खिलाफ कंटेंट नहीं माना जा सकता. दूसरा कि अगर एजुकेट करने के नाते ऐसा किया जाता है तो कोर्ट में ऐसी दलील देने और साबित करने पर सजा से बचा जा सकता है.

राजद्राेह पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

फिलहाल ध्यान देनेवाली बात ये भी है कि अभी राजद्रोह यानी 124-ए के तहत प्राथमिकी पर आंशिक रोक है. WPC 682/2021 एसजी वोम्बटकेरे वर्सेज भारत सरकार और WPC 552/2021 एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया वर्सेज भारत सरकार व अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट की स्पेशल बेंच ने अपने आदेश में कहा था,

“हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारें किसी भी प्राथमिकी दर्ज करने, जांच जारी रखने या आईपीसी की धारा 124 ए के तहत जबरन कदम उठाने से परहेज करेंगी.”

कोर्ट ने कहा कि जो लोग पहले से ही आईपीसी की धारा 124ए के तहत आरोपित हैं और जेल में हैं, वे जमानत के लिए संबंधित अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं. आदेश में यह भी कहा गया कि यदि कोई नया मामला दर्ज किया जाता है तो उपयुक्त पक्ष उचित राहत के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं और अदालतों से अनुरोध किया जाता है कि वे अदालत द्वारा पारित आदेश को ध्यान में रखते हुए मांगी गई राहत की जांच करें.

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