भोपाल। मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल में 55 हजार डाक्टर पंजीकृत हैं, पर हकीकत में उनकी संख्या करीब 26 हजार ही है। काउंसिल द्वारा बीते 10 माह में पंजीकृत डाक्टरों के पुनर्सत्यापन की प्रक्रिया में यह सच्चाई सामने आई है। पहली बार काउंसिल ने पंजीकृत डाक्टरों का पुनर्सत्यापन कराया है। दरअसल, प्रदेश में पंजीकृत निजी और सरकारी डाक्टरों में से हर वर्ष आठ सौ से एक हजार डाक्टर काउंसिल से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर दूसरे राज्यों में या विदेश जा रहे हैं। इसके अलावा पांच से 10 प्रतिशत डाक्टरों का निधन हो गया, फिर भी काउंसिल में उनका पंजीयन जीवित है। इन सब को हटाने के बाद प्रदेश की साढ़े आठ करोड की आबादी के लिए 26 हजार डाक्टर ही हैं।

निधन होने पर नहीं हटाया जा रहा नाम

1939 में मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल के गठन से अब तक डाक्टरों का पंजीयन तो होता रहा है, पर यहां से जाने या निधन होने पर उनका नाम हटाया नहीं गया। ऐसे में यह माना जा रहा था कि करीब 30 हजार चिकित्सक ही होंगे, पर संख्या इससे भी कम निकली। पुनर्सत्यापन पिछले साल मार्च में शुरू किया गया था। डाक्टरों को एमपी आनलाइन के माध्यम से इस काम के लिए एक माह दिए गए थे।

फोन पर जानकारी लेकर कर रहे सत्यापित

पंजीकृत डाक्टरों की तुलना में सत्यापन कराने वाले आधे से भी कम रहने पर अभी तक इसे जारी रखा गया है। काउंसिल के रजिस्ट्रार डा. आरके निगम ने बताया कि अब यह सुविधा दी गई है डाक्टरों को एमपी आनलाइन में जाने की आवश्यकता भी नहीं है। कांउसिल से एक कर्मचारी द्वारा फोन पर पूरी जानकारी और फोटो लेकर सत्यापित कराया जा रहा है।

डब्ल्यूएचओ का मापदंड

एक हजार की आबादी पर एक डाक्टर हो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का मापदंड है कि एक हजार की आबादी पर एक एलोपैथिक डाक्टर होना चाहिए, लेकिन 26 हजार डाक्टरों के हिसाब से प्रदेश में 3296 लोगों की आबादी पर एक डाक्टर है। नए मेडिकल कालेज खुलने और एमबीबीएस की सीटें बढ़ने के बाद भी यह स्थिति है। दरअसल, प्रदेश के कालेजों में तैयार हो रहे डाक्टर अच्छे वेतन या शिक्षा के चलते दूसरे राज्यों में जा रहे हैं। इस कारण यह स्थिति बन रही है।