MP में शराब से ज्यादा बीयर के शौकीन …!

MP में शराब से ज्यादा बीयर के शौकीन:एक साल में 860 करोड़ की कमाई बढ़ी; भोपाल में अंग्रेजी की बिक्री बढ़ी
प्रदेश में शराब पीने वालों की संख्या 50% तक बढ़ी, इसमें इंदाैर सबसे आगे, यहां बीयर पीने वालों की संख्या 85% तक बढ़ी।

हुई महंगी बहुत ही शराब के, थोड़ी -थोड़ी पिया करो, पियो लेकिन रखो हिसाब, के थोड़ी- थोड़ी पिया करो… लेकिन इसका कोई असर दिखाई नहीं दिया। मप्र में सुरा शौकीनों ने तो हद पार कर दी। यानी प्रदेश में देशी- विदेशी शराब और बीयर की बिक्री में बढ़ोतरी हुई तो बीते एक साल में सरकारी की शराब से ही करीब 860 करोड़ रुपए की कमाई बढ़ गई।

इस साल अब तक सरकारी खजाने में 10,380 करोड़ आ चुके हैं। मप्र में बीयर का क्रेज है। 2020-21 के मुकाबले 2021-22 में 50% तक अधिक खपत हुई। वहीं, इस फेहरिस्त में सबसे ऊपर नाम इंदौर का है। यहां 85 फीसदी शौकीनों ने बीयर का लुत्फ लिया। इसके नक्शे कदम पर चलते हुए ग्वालियर, बुंदेलखंड, बघेलखंड और आदिवासी जिलों में देसी और अंग्रेजी शराब के साथ ही बीयर की खपत बढ़ी है। इसके उलट भोपाल में बीयर को तरजीह कम मिलती है।

25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई

चार महानगरों में ऐसे हुई बढ़ोतरी
चार महानगरों में ऐसे हुई बढ़ोतरी

भोपाल की तुलना में इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर में 70 प्रतिशत ज्यादा बीयर पी जाती है। लेकिन भोपाल में अंग्रेजी शराब पसंद करने वालों की तादाद ज्यादा है। इसमें बीते साल की तुलना में करीब 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।

और प्रदेश में यह है स्थिति

यहां बीयर की बिक्री बढ़ी (आंकड़े प्रतिशत में )
यहां बीयर की बिक्री बढ़ी (आंकड़े प्रतिशत में )

प्रदेश के 52 जिलों में से 14 जिलों में अंग्रेजी और 10 जिलों में देसी शराब की बिक्री बीते साल की तुलना में कम हुई है। वहीं, गुना, अलीराजपुर एवं डिंडोरी ऐसे तीन जिले हैं, जहां बीयर के शौकीनों की संख्या सबसे कम हैं।

अब सरकारें बदलने के साथ बदलती रही शराब नीति को जान लीजिए…

दिग्विजय-कमलनाथ के समय मोनोपॉली; उमा-गौर ने चलाई लॉटरी; शिवराज सरकार में कंपोजिट पॉलिसी आई

मध्यप्रदेश सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में शराब से 14 हजार करोड़ से अधिक का राजस्व जुटाने का लक्ष्य रखा है। नई शराब नीति भी जल्द आने वाली है। दूसरी ओर प्रदेश में शराब के खिलाफ मोर्चा खोले बैठीं पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती चेतावनी दे रही हैं कि यदि नीति में उनके सुझाव शामिल नहीं किए तो परिणाम भुगतने होंगे।

इस बीच दैनिक भास्कर ने दिग्विजय सिंह से लेकर शिवराज सिंह चौहान तक के कार्यकाल में प्रदेश में शराब ठेकों की पॉलिसी की पड़ताल की तो पता चला कि नियमों में फेरबदल कर शराब से खजाना भरने में कोई सरकार पीछे नहीं रही है।

2003 से पहले (दिग्विजय मुख्यमंत्री थे।)

जिले वार केंद्रीयकृत व्यवस्था (मोनोपॉली) थी। जिला अधिकारी के विवेक पर था कि वह जिसे चाहे जिले का ठेका सौंप देता था। फिर वह 10%, 5% या 3%… घटाकर दे या बढ़ाकर दे।

2003 के बाद (उमा भारती मुख्यमंत्री थीं।)

हर जिले में दुकानों के समूह बनाए गए। हर समूह में तीन-चार दुकानें रखी गईं। इन समूहों को लाटरी के जरिए ठेके दिए गए।

2005 के बाद (शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री रहे।)

जिलों की शराब दुकानों का पुनर्गठन। हर समूह में एक-दो दुकानें ऐसी रखी जो ज्यादा चलती हों। नई शॉप खोलीं। ऑन-ऑफ व्यवस्था की। ऑन मतलब अहातों के साथ और ऑफ बिना अहातों के। जिले में रेवेन्यू 100 करोड़ है तो 80 करोड़ से कम यानी 80% राजस्व से कम पर रिन्यूवल नहीं करने का नियम बना। ये बाद में 70% हुआ। यह पूरा नहीं होने पर पूरे जिले का टेंडर किया। एमआरपी व एमएसपी में 20% अंतर किया।

2018 के बाद (कमलनाथ)

दिग्विजय शासन की पॉलिसी फिर लागू। 16 महानगर व बड़े जिलों में केंद्रीयकृत व्यवस्था की। जिले का ठेका एक व्यक्ति, एक फर्म काे दिया। बाकी जिलों में कुछ राशि बढ़ाकर रिन्युवल से टेंडर कराए।

2020 के बाद (शिवराज )

दोबारा फुटकर समूह में टेंडर। पहली बार 85% खपत जरूरी। कंपोजिट पॉलिसी लाए। देसी में विदेशी, विदेशी में देसी शराब बिकने लगी। पहले वैट जोड़कर एमएसपी बनती थी, अब एमएसपी बनाकर वैट जोड़ रहे। पहली बार समूह 60% घटकर गए।

नई नीति में ये संभावित

85% शराब की खपत का जरूरी नियम बन रहा है जो अनावश्यक है। वैट 10% एमएसपी से जुड़ा रहेगा। एमआरपी और एमएसपी के बीच का अंतर बढ़ेगा या नहीं, स्पष्ट नहीं। ठेकेदारों का प्रॉफिट कैसे बढ़ेगा यह साफ नहीं किया। यह भी साफ नहीं है कि कोरोना काल में हुए आबकारी के बकायादारों को वर्ष 2023-24 की टेंडर प्रक्रिया के लिए पात्र माना जाएगा या नहीं। पात्रता नहीं मिली तो स्वस्थ प्रतिस्पर्धा प्रभावित होगी।

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