गैंगवार का सरकारी तोहफा …?
सृष्टि में तीन चौथाई असुर होते हैं। केवल एक चौथाई ही दिव्य लोग होते हैं। कलियुग के दौर में एक ही व्यक्ति में सुर-असुर दोनों मौजूद रहते हैं। फिर भी असुरों का ही चारों ओर बोलबाला है। जब असुर प्रवृत्ति के लोगों के पास सत्ता हो, धन हो तब तो बाहुबल भी सहजता से साथ हो जाता है। यह बात व्यक्तिगत रूप में भी और प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर भी लागू होती है। कलियुग में मानव त्रासदी चरम पर है। रक्षक ही भक्षक बन रहे हैं। कहा भी है-
‘बागबां ने आग दी जब आशियाने को मेरे।
जिन पे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे ॥’
राज्य में चारों ओर माफिया राज है। अपने स्वार्थ के लिए कोई किसी को मार दे, सब मौन! पुलिस सबसे पहले मौन, सरकार मौन, जनता को खास तौर पर युवा वर्ग को तो मानो काठ मार गया। रावण से परित्राण के लिए राम आए थे और कंस के विनाश के लिए कृष्ण। आज पुलिस की कार्यशैली को देखकर लगता है कि कोई तो इस बार भी आना चाहिए। नेता के बुलावे पर अकेला कौन जाए? पता नहीं क्या मांग बैठे या बुलाकर पुलिस के हवाले कर दे। आज तो नेता यहां तक दबाव बनाने लगे कि आपके संस्थान में मुझे भी ओहदा दे दें। संस्थान धार्मिक और बड़ा हो तो कहने ही क्या! ये हमारे हितों के रखवाले प्रतिनिधि हैं! बहुतों की पृष्ठभूमि तो अपराधों से भरी हैं।
बेरोजगारी ने माफिया गैंग पैदा कर दिए। चारों ओर बस माफिया और पुलिस। ऐसा लगता है कि पुलिस तो ऊपर से नीचे तक माफिया के आगे नकारा साबित हो चुकी। कई बार तो पिटकर आती है। बड़े अफसर जाते नहीं। इसी मानसिकता ने माफिया को हवा दी। सरकार, अफसरों को बचाने में ही अपना धर्म समझती है। माफिया की जंग भी है तो थानेदार तक, जिसकी क्षमता और कार्यप्रणाली से सभी परिचित हैं। परिणाम यह हुआ कि आज माफिया गोलियां चलाता है, लूटता है। पुलिस से डरने का तो प्रश्न ही नहीं है। जेल में बैठकर हत्याएं करता है/करवाता है। पूरे प्रदेश में बडे -बड़े हिस्ट्रीशीटर, गैंग बनाकर पुलिस की खिल्लियां उड़ा रहे हैं। आप चाहे सरकार को धिक्कारें, चाहे पुलिस को, पिछले अनुभव कहते हैं कि सब बेफिक्र हैं। फाइलों का पेट भर रहे हैं। ऐसा भी लगता है कि माफिया सरकार चला रहा है। रंगदारी का नया भूत पुलिस के पिटारे से बाहर आया है। पिछले दो माह में ही सात आपराधिक वारदातें हो चुकी जहां गोलीबारी तथा मारने की धमकियां दी गईं। क्या यह पुलिस के डर का प्रमाण है अथवा सरकार की जागरुकता का? नित नए मामले बढ़ रहे हैं। लोकतंत्र के प्रहरी इस आतिशबाजी को घर में बैठकर देख रहे हैं।
आपराधिक वारदातों में माफिया का दुस्साहस प्रदेश भर में नजर आता है। पिछले दिनों ही जयपुर में जी क्लब के मालिक से रोहित गोदारा-रितिक बॉक्सर ने लारेंस विश्नोई गैंग के नाम से पैसे मांगे। क्लब में दहशत फैलाने के लिए गोलियां चलीं। गत वर्ष 14 दिसम्बर को विद्याधर नगर में व्यापारी से दस लाख रुपए मांगे गए।
लोक बचेगा या गुलामी के दंश
लारेंस गैंग ने ही बजाज नगर में दवा व्यापारी से पांच लाख रुपए मांगे तो गोल्डी बराड़ के नाम से प्रोपर्टी डीलर से एक करोड़ रुपए की मांग की गई। माफिया का दुस्साहस देखिए कि हरमाड़ा में तो गत वर्ष 10 दिसम्बर को एक व्यापारी से पांच करोड़ रुपए की मांग करते हुए धमकी दी गई कि ऐसा नहीं हुआ तो उसकी राजू ठेहट जैसी हालत कर दी जाएगी। तीन दिसम्बर 22 को ठेहट की सीकर जिले में हत्या कर दी गई थी और लारेंस गैंग के रोहित गोदारा ने हत्या की जिम्मेदारी भी ली थी। लेकिन पुष्टि तक नहीं हुई।
अकेले जयपुर की ही नहीं, पूरे प्रदेश की फेहरिस्त लम्बी है। सबको याद है कि बीकानेर जेल में हुई गैंगवार में तीन बंदी मारे गए थे। गत वर्ष ही 4 अप्रेल को रावतभाटा में देवा गुर्जर की गला रेतकर हत्या हुई। डेढ़ दर्जन लोग आरोपित थे। देवा ने कोटा के एक थाने में 10 लाख रुपए मांगने की रिपोर्ट लिखवाई थी। बाद में इसे राजनीति से जोड़ दिया गया। नागौर में तो 19 सितम्बर 2022 को कोर्ट परिसर में पेशी पर आए संदीप शेट्टी को गोलियों से भून दिया गया था। चार-पांच साल पहले नागौर में ही हिस्ट्रीशीटर रघुवीर की हत्या हुई। इस प्रकरण में आरोपी दिनेश सांखला की हत्या के लिए रघुवीर की पत्नी ने सुपारी दी लेकिन हत्या उसके चचेरे भाई नरेन्द्र की हो गई। जयपुर के बनीपार्क में अजय यादव की 21 सितम्बर 22 को हत्या हुई। अजय ने भागने का प्रयास किया, किन्तु पत्थर से सिर कुचल दिया। दिसम्बर में ही राजधानी के प्रतापनगर में महेन्द्र मीणा की दौड़ा-दौड़ाकर हत्या कर दी गई थी। ताजा मामला जोधपुर का है जब गैंगवार में एक फरवरी को ही जोधपुर में हिस्ट्रीशीटर राकेश मांजू को गोलियों से छलनी कर दिया गया।
क्या ये दृश्य चीन की तानाशाह सरकार जैसे नहीं लग रहे। पुलिस जानती है, हर गैंग के हर सदस्य को, सभी हिस्ट्रीशीटर, हथियार बेचने और इनके लाइसेंस बनाने वालों को। फिर भी आतिशबाजी की तरह गोलियों की धुन सुनती रहती है। हमारी पुलिस हमारे रक्षक की भूमिका में नहीं है। उसका निशाना कहीं ओर है। वह अग्रिम कार्रवाई नहीं करती। अपराधियों को पाबन्द भी नहीं करती, न उन पर नजर ही रखती है। घटनाएं उसकी नाक के नीचे होती रहती हैं। हत्याओं का यह नजारा पुलिस के लिए मनोरंजन हो सकता है, जनता के लिए तो डरावना ही है। पुलिस के होते कोई भी गैंग किसी को भी डराकर धन ऐंठ ले? क्या नागरिकों को ही चौकीदारी करनी पड़ेगी? मुख्यमंत्री को तो ऐसी घटनाओं की जानकारी भी शायद ही हो। वे तो पुलिस की तरह पत्थर दिल नहीं हो सकते। आदमी लापता हो जाए, पुलिस पकड़ नहीं पाए। वाहन चोरी हो जाए तो मिलने पर पुलिस पैसे मांगे। ऐसा एक दूसरे राज्य में जरूर सुनते थे।
गहलोत सरकार के समक्ष यह यक्ष प्रश्न है कि जब उत्तरप्रदेश जैसे प्रदेश में, जहां अपराध चरम पर रहे हैं, आज शान्ति है। उत्तरप्रदेश व हरियाणा-पंजाब के आपराधिक प्रवृत्ति के लोग जब हमारे यहां के लोगों को आपराधिक षडयंत्र में शामिल करते हैं लोगों से काम करवाते हैं, तब हमारी पुलिस उन्हें क्यों नहीं रोक सकती। पुलिस का इसमें कोई स्वार्थ तो नहीं। चिंता की बात यह है कि लारेंस विश्नोई जैसा हिस्ट्रीशीटर तो जेल में बैठकर राजस्थान में गैंगवार और हत्याएं करवा रहा है। इंटरनेट कॉल पर व्यापारियों से रंगदारी मांग रहा है। नहीं दे तो गोलियां चलवाकर डरा रहा है। क्या पुलिस कैदी की गतिविधियां भी नहीं रोक सकती? मानना पड़ेगा दाल में कुछ काला है। उत्तर तो मुख्यमंत्री को देना है। लारेंस विश्नोई पंजाब जेल में है और उसका गुर्गा सम्पत नेहरा दिल्ली जेल में। हैरत की बात यह है कि गोल्डी बराड़, रोहित गोदारा, अनमोल विश्नोई जैसे गैंगस्टर विदेश में बैठकर भी राजस्थान में सक्रिय हैं। जयपुर निवासी ऋतिक बॉक्सर भी तेजी से चर्चा में आ रहा है। क्या इसी ‘श्रेष्ठ सेवा’ के लिए राज्य के बड़े अधिकारियों को सरकार द्वारा पुरस्कृत किया जाता है। आजादी के बाद से आज तक इससे पहले गैंगवार के खुले आयोजन और पुलिस की आंख-मिचौनी नहीं देखी गई। न महिलाएं सुरक्षित, न व्यापारी, न आमजन। आने वाले चुनावों में सरकार को बताना होगा कि लोकतंत्र किसके लिए, किसके दम पर चलता है। लोक बचेगा या गुलामी के दंश!