सूबे के सात शहरों में नन्हे-मुन्नों को हुनरमंद बनाने वाले बाल भवन बड़ों की लापरवाही का शिकार
नौनिहालों का भविष्य गढ़ने के लिए प्रदेश के 7 शहरों में खुले ‘बहुआयामी कला केंद्र’ सबसे खराब दौर में हैं। बाल भवन नाम से मशहूर इन केंद्रों में बच्चों के शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए रखे गायन-वादन यंत्र और खेलकूद उपकरण खराब हो रहे हैं। मेंटेनेंस पर जिम्मेदारों का ध्यान नहीं है। इनमें बच्चों की संख्या के हिसाब से नई तकनीक, नए वाद्य यंत्र, खेल सामग्री की जरूरत है। इसकी अपडेशन प्रक्रिया सालों से टाली जा रही है। कई केंद्र स्थापना के 15 साल बाद भी किराए के भवनों में कामचलाऊ व्यवस्था से चल रहे हैं। पर्याप्त क्लासरूम और मैदान तक नहीं हैं। केंद्रीय बाल भवन से मिले 8 लाख रुपए में भोपाल में बाल संग्रहालय बना। इसमें दुर्लभ और प्राचीन यंत्र, कैमरे, वाद्य रखे गए। लेकिन चार साल पहले संग्रहालय को बंद कर कबाड़ भर दिया। महिला बाल विकास के अधीन चलने वाले इन ‘आधुनिक गुरुकुलों’ं की सुध लेने की फुर्सत अफसरों को नहीं है। पूर्व व वर्तमान छात्रों और अभिभावकों का आरोप है कि बड़ों की लापरवाही का खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।भोपाल और इंदौर के बाल भवनों की दुर्दशा की वह कहानी, जो नौनिहालों के शिक्षण-प्रशिक्षण को कर रही है प्रभावितभोपाल: कहने को मुख्यालय, पर मेंटनेंस ही नहींइंदौर: नारी उद्धार गृह की पुरानी बिल्डिंग में बाल भवनपूरा परिसर और खेल मैदान झाड़ियों से पटा
आठ में से चार विधा के लिए 4 प्रशिक्षक
2015 में मैं 10वीं का छात्रा थी, तब नाटक-लेखन की बारीकियां सीखने बाल भवन जाती थी। यहां सभी स्कूलों के बच्चे आते थे। दु:ख होता है इतना अच्छा मंच अनदेखी का शिकार है। सरकार सभी बाल भवनों की व्यवस्थाएं सुधारे।
– निमिषा पाठक, बाल भवन से प्रशिक्षित (कॉर्पोरेट एनालिस्ट)
पांच साल पहले बच्चों को कला की जिन गतिविधियों को प्रशिक्षण मिलता था, अब उनमें भी अपडेशन हो चुका है। उनकी जरूरत डिजिटल आर्ट, कोडिंग जैसी मोबाइल आधारित तकनीक का प्रशिक्षण है, उसे भी शुरू किया जाए।
– निमिषा पाठक, पुणे में कॉर्पोरेट कंपनी में एनालिस्ट और बाल भवन में इन्होंने लिया है प्रशिक्षण
नई शिक्षा नीति में 8वीं तक के बच्चों को ऐसा माहौल देना है कि वे कलात्मकता, कौशल व नेतृत्व सीखें। अभी सरकारी स्कूलों में विशेषज्ञ नहीं हैं। ऐसे में बाल भवन अहम भूमिका निभा सकते हैं। इन्हें आदर्श केंद्र के रूप में विकसित करें।
– डॉ. विक्रम चौधरी, अभिभावक
ऐसी अव्यवस्था कभी नहीं रही। कला गुरु, संगतकार बरसों से संविदा पर हैं। जवाहर बाल भवन में मेरेे समेत 4 संविदा अनुदेशकों को मार्च से सेवा समाप्त करने का नोटिस दिया। हम कोर्ट जाएंगे।
– विजय सप्रे, अनुदेशक, बाल भवन (ग्वालियर घराने के ख्याल गायक)
खराब आरओ
बदहाल झूले
प्र देश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर में ओल्ड पलासिया क्षेत्र अंतर्गत महिला बाल विकास विभाग के नारी उद्धार गृह की पुरानी बिल्डिंग में बाल भवन चल रहा है। यहां करीब एक एकड़ का परिसर है। बच्चों को 8 में से 4 विधाओं नृत्य, गायन, कम्प्यूटर, चित्रकला का प्रशिक्षण दिया जाता है। बाल भवन का प्रभार सहायक संचालक शुभांगी मजूमदार देख रही हैं, जबकि महिला बाल विकास विभाग का संभागीय मुख्यालय होने से संयुक्त संचालक डॉ. संध्या व्यास भी बैठती हैं। पत्रिका टीम ने पड़ताल में पाया कि पुराने भवन को मेंटेनेंस की दरकार है। यहां आने वाले 250 बच्चे और उनके अभिभावकों में से कई ने बताया कि अफसर बुनियादी सुविधाओं की पूर्ति कर लेते हैं। समस्या यह है कि अनुदेशकों की कमी से 8 में से जितनी विधाओं और जिस स्तर का प्रशिक्षण होना चाहिए, नहीं हो पाता।
भो पाल में तुलसी नगर स्थित 5 एकड़ में फैला जवाहर बाल भवन मुख्यालय परिसर झाड़ियों व गंदगी से पटा है। गार्डन में मूर्तियां, ओपन जिम उपकरण, झूले, सीसॉ झूले, फिसलपट्टी, खिलौने टूटे पड़े हैं। मरम्मत, रंगाई-पुताई के अभाव में बिल्डिंग की हालत खराब है। खेल मैदान भी बदहाल है। एक साल से परिसर में सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी। पहले चार गार्ड रखे थे, लेकिन ठेका निरस्त कर दिया गया। परिसर की निगरानी मेें लगे 6 कैमरे खराब हैं। यहां देर शाम से लोग शराबखोरी व चोरी की नीयत से घुसपैठ करते हैं। पत्रिका टीम को पड़ताल करते देख अफसरों ने 13 जनवरी से दो गार्ड रखे हैं। माली न होने से गार्डन में पसरी झाड़ियों में सांप-बिच्छू खूब हैं। ऐसे ही हालात में बच्चे अभ्यास करते हैं। कर्मियों ने बताया, छत से प्लास्टर उखड़ कर बच्चों पर गिरता है।
प्रशिक्षक 15 साल से संविदा पर
पड़ताल में यह भी सामने आया कि बाल भवन में 15 साल से संविदा पर 5 प्रशिक्षक हैं। इनमें 4 अनुदेशक और 1 तबला संगतकार हैं। अनुदेशकों को 9961 तो संगतकार को 6098 रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता है। उनका कहना है, यह मानदेय कलेक्टर दर से भी कम है। वहीं कला शिक्षकों की कमी है। इसे दूर करने मानदेय पर विशेषज्ञों को बुलाकर बच्चों को प्रशिक्षण दिलाते हैं। सुरक्षा का जिम्मा संयुक्त संचालक के चतुर्थ श्रेणी कर्मी पर ही है। परिसर में वे सपरिवार रहते हैं।
पेयजल फिल्टर खराब
प्रदेश का मुख्यालय जवाहर बाल भवन ही है। यहां संयुक्त व सहायक संचालक, 1 बाबू, 3 चपरासी हैं। यहां प्रशिक्षण के लिए दो हजार तक बच्चे आते हैं। यहां पेयजल फिल्टर मशीन खराब है। क्लासरूम, कॉरिडोर, परिसर की सफाई बड़ा मुद्दा है। ठेके के 4 कर्मियों को हटाया तो भवन की सफाई 1 महिलाकर्मी के जिम्मे ही है।
बाल भवन ओल्ड पलासिया, इंदौर
2007-2008 से संचालित
पुराने सरकारी भवन में संचालित
250 बच्चे पंजीकृत, बाकी सालभर होने वाले शिविरों में आते हैं।
शिक्षक-प्रशिक्षक: चार अनुदेशक, तबला विधा में 1 संगतकार। सभी संविदाकर्मी
जवाहर बाल भवन तुलसी नगर, भोपाल
03 जुलाई 1987 से संचालित
5 एकड़ का परिसर, अपना भवन
करीब 1100 बच्चे
शिक्षक-प्रशिक्षक: चार अनुदेशक नियमित, संविदा पर पांच कला शिक्षक हैं। संगतकार 1 भी नहीं।