गलत नीतियों ने बिगाड़ी देश के शहरों की तस्वीर ..!
शहरी मास्टर प्लान में जलवायु परिवर्तन और मौसम के बदलते प्रभाव पर विचार करने की आवश्यकता है …
खराब शहरी नियोजन और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव का असर यह होगा कि हमारे शहर हमेशा बाढ़ से घिरे रहेंगे। जाहिर है कि हमारे शहरों को बाढ़-रोधी उपायों की आवश्यकता होगी।
जो शीमठ में भूमि धंसने के मामले ने पूरे देश का ध्यान आकर्षित किया है। पहाड़ी शहरी भारत में भूमि धंसने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। भारत का 12.6 फीसदी भूमि क्षेत्र भूस्खलन प्रवण क्षेत्र में आता है। इनमें से कुछ सिक्किम, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड आदि के पहाड़ी शहरी क्षेत्र में आता है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के अनुसार शहरी नीति इस स्थिति को और भी बदतर बना देती है। निर्माण अक्सर उन नियमों के तहत होते हैं, जो स्थानीय भूगर्भीय और पर्यावरणीय कारकों की अनदेखी करते हैं। इस कारण हिमालयी शहरों और पश्चिमी घाटों में भूमि उपयोग की योजना बनाते समय अक्सर गलत आकलन किया जाता है और ये सब ढलान अस्थिरता को बढ़ाते हैं। नतीजतन इन क्षेत्रों में भूस्खलन की भेद्यता काफी बढ़ गई है। यह स्थिति खासतौर पर सुरंग निर्माण से और गंभीर हो गई है।
उच्च भूस्खलन जोखिम वाले क्षेत्रों में मानव हस्तक्षेप को कम करने और वहन क्षमता का पालन करने के लिए बड़े बुनियादी ढांचे के विस्तार की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसके अलावा, खतरनाक क्षेत्रों में निर्माण पर प्रभावी रोक के लिए इन क्षेत्रों में किसी भी साइट के विकास के लिए भूवैज्ञानिक और आसपास की इमारतों पर संभावित प्रभाव का मूल्यांकन जरूरी है। भूमि धंसने के अलावा बाढ़ का खतरा भी लगातार बढ़ता जा रहा है। अगस्त, 2019 में महाराष्ट्र के डोंबिवली में पलावा शहर (फेज 1 और 2) में बाढ़ आ गई थी। फेज-1 के अधिकांश हिस्से में तो 5 फीट पानी तक भर गया था। लगातार बारिश के कारण वाहन तक पानी में डूब गए और बिजली आपूर्ति थम गई थी। वहां रहने वाले लोग अपने फ्लैटों में तब तक फंसे रहे, जब तक कि पंपों का उपयोग करके पानी नहीं निकाला गया। दरअसल, 4,500 एकड़ में फैला यह इलाका मोथाली नदी के बाढ़ के मैदान पर बसाया गया था। जब नियोजित टाउनशिप को मंजूरी दी जाती है, तो प्राकृतिक खतरों के प्रति चिंता की स्पष्ट कमी से ऐसी घटनाएं होनी तय हैं। ऐसे हालात कई जगह बने हैं। जुलाई 2021 में पणजी बाढ़ से प्रभावित हुआ। लगातार बारिश के कारण स्थानीय नदियां उफान पर आ गईं। विशेष रूप से मांडोवी के साथ शहरी बस्तियां इससे प्रभावित हुईं। इस मामले में भी शहरी नियोजन की गड़बड़ी एक बड़ी वजह थी। यह शहर मांडोवी नदी के बाढ़ के मैदानों पर भटकने वाली दलदली भूमि पर बसाया गया था, जो कभी मैंग्रोव और उपजाऊ खेतों से घिरा हुआ था, जो इस पूरे क्षेत्र में बाढ़ की सहनशीलता को बढ़ाने में मददगार था।
इस बीच, अन्य शहरों को निकट भविष्य में बाढ़ के उच्च जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। दिल्ली में यमुना बाढ़ के मैदान में 9,350 परिवार रहते हैं। आइपीसीसी की मार्च 2022 की रिपोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि समुद्र के जल स्तर में वृद्धि और बाढ़ के कारण कोलकाता को गंभीर जोखिम का सामना करना पड़ा। खराब शहरी नियोजन और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव का असर यह होगा कि हमारे शहर हमेशा बाढ़ से घिरे रहेंगे। जाहिर है कि हमारे शहरों को बाढ़-रोधी उपायों की आवश्यकता होगी। शहरी योजनाकारों को स्थानीय जल निकायों पर नहरों व नालों को भरने के लिए दबाव कम करना होगा और सीवेज और तूफानी जल निकासी नेटवर्क को बेहतर करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। विशेष रूप से मौजूदा सीवेज नेटवर्क के कवरेज और गहराई का विस्तार करने की जरूरत है, ताकि इसे निचले इलाकों से अपशिष्ट जल को निकालने में सक्षम बनाया जा सके। इसके अलावा, नदियों से गाद निकालने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। साथ ही समुद्री जल स्तर चढ़ने से उसके जोखिम वाले क्षेत्रों में तटीय दीवारों को मजबूती देनी होगा। बाढ़-प्रतिरोधी निर्माण के साथ-साथ बाढ़ चेतावनी प्रणाली के सुदृढ़ीकरण पर अधिक खर्च करना आवश्यक है। इसके अलावा, ‘ब्लू इन्फ्रा’ क्षेत्रों की रक्षा पर ज्यादा जोर देने की जरूरत है। यानी ऐसे स्थान जो प्राकृतिक स्पंज के रूप में कार्य करते हैं, जिससे भूजल को रिचार्ज किया जा सके। वर्षा के पैटर्न और तीव्रता में परिवर्तन चलते शहरी अधिकारियों को राहत प्रयासों को एकीकृत करने के साथ बाढ़ के हॉटस्पॉट और बाढ़ जोखिम मानचित्रों को तैयार करने के लिए सिमुलेशन क्षमता में निवेश की दरकार है।
यदि हमारे शहर प्राकृतिक खुली जगहों को बढ़ाने के लिए पर्यावरण नियोजन को सक्रिय रूप से शामिल करते हैं, तो हम कई जोखिमों को कम कर सकते हैं। शहरी मास्टर प्लान में जलवायु परिवर्तन और मौसम के अत्यधिक प्रभाव पर विचार करने की आवश्यकता है। भारत में शहरी प्राधिकरणों को लगातार आपदा जोखिम और तैयारी योजना का मूल्यांकन और अद्यतन करना चाहिए। इसमें पूर्व चेतावनी प्रणाली को प्रभावी तौर पर विकसित करना खासतौर पर महत्त्वपूर्ण होगा। अंतिम तौर पर हम यह कह सकते हैं कि प्रत्येक शहर में एक आपदा प्रबंधन ढांचा होना चाहिए, जिसमें बड़ी सड़कें भी हों, जिससे लोगों और सामानों को तेज गति से शहर के बाहर भेजा जा सके या अंदर लाया जा सके।