राजस्थान के 99% कॉलेजों को नैक से मान्यता नहीं …!

राजस्थान के 99% कॉलेजों को नैक से मान्यता नहीं .
सिर्फ 1 सरकारी यूनिवर्सिटी को मान्यता; 3694 में से 38 कॉलेज के पास एक्रिडिएशन …

देश में 1 हजार 113 यूनिवर्सिटी में से 695 यूनिवर्सिटी के पास नेशनल असेसमेंट एंड एक्रीडिएशन काउंसिल (NAAC) की मान्यता नहीं है। इसी तरह 43 हजार 796 कॉलेजों में से 34 हजार 734 कॉलेजों के पास भी नैक एक्रीडेशन नहीं है।

यानी देश की लगभग 62 प्रतिशत यूनिवर्सिटी और 78 प्रतिशत कॉलेजों के पास नैक का एक्रीडिएशन नहीं है। इसका खुलासा हाल ही में लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में हुआ है।

इस रिपोर्ट के बाद भास्कर टीम ने राजस्थान की उच्च शिक्षा के हालात टटोले। पड़ताल में सामने आया कि राजस्थान की सिर्फ 1 सरकारी यूनिवर्सिटी नैक से मान्यता प्राप्त है। वहीं 3 हजार 694 कॉलेजों में से सिर्फ 38 कॉलेजों के पास नैक एक्रीडिएशन है।

राजस्थान में कुल 92 यूनिवर्सिटी हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 22 यूनिवर्सिटीज ही नैक से मान्यता प्राप्त हैं। इनमें भी 17 प्राइवेट यूनिवर्सिटीज हैं, जबकि 4 यूनिवर्सिटी डीम्ड हैं। राजस्थान की एकमात्र सेंट्रल यूनिवर्सिटी अजमेर के पास भी नैक एक्रीडिएशन नहीं है।

इसी तरह कॉलेजों का हाल भी बेहद खराब है। राजस्थान के 3 हजार 694 कॉलेजों में से सिर्फ 38 कॉलेजों के पास नैक एक्रीडिएशन है। यह राजस्थान में कुल कॉलेजों का महज 1.02 प्रतिशत है।

यानी राजस्थान के लगभग 99 प्रतिशत कॉलेजों के पास नैक एक्रीडिएशन नहीं है। जिन 38 कॉलेजों के पास एक्रीडिएशन है उनमें से भी सिर्फ 11 ही सरकारी कॉलेज हैं, जबकि बाकी के 27 कॉलेज प्राइवेट हैं।

सरकारी यूनिवर्सिटीज और कॉलेज के हाल बुरे
राजस्थान में सरकारी संस्थानों के तो हाल और भी ज्यादा बुरे हैं। एकमात्र सेंट्रल एकेडमी के पास नैक एक्रीडिएशन नहीं है। वहीं राजस्थान की 28 यूनिवर्सिटीज में से सिर्फ 1 स्टेट यूनिवर्सिटी बीकानेर की महाराज गंगा सिंह यूनिवर्सिटी के पास ही नैक का एक्रीडेशन है।

इसी तरह कॉलेजों की बात करें तो मीरा गर्ल्स कॉलेज उदयपुर, डूंगर कॉलेज बीकानेर सहित टोंक, सवाईमाधोपुर, कोटा, सिरोही, बीकानेर, दौसा, बूंदी, जैतारण और मनोहरपुर गवर्नमेंट कॉलेज के पास ही नैक का एक्रीडिएशन है।

क्या होता है नैक एक्रीडिएशन
नैक एक स्वतंत्र संस्था है। यह एकेडमिक और इंफ्रास्ट्रक्चर को देखकर मार्किंग करती है। इस संस्थान का काम किसी भी कॉलेज-यूनिवर्सिटी को ग्रेड देना होता है।

यह ग्रेडिंग संस्थानों में शिक्षकों की संख्या, संस्थानों में सिलेबस कितने बदल रहे हैं, उन संस्थानों में कराए जाने वाले सेमिनार और पब्लिकेशन, कॉलेज-यूनिवर्सिटी में वाजिब इन्फ्रास्ट्रक्चर, लाइब्रेरी, लैब, स्मार्ट क्लास रूम, प्ले ग्राउंड जैसी सुविधाओं के आधार पर दी जाती है।

 

क्यों जरूरी होता है नैक एक्रीडिएशन
नैक एक्रीडिएशन के चलते संस्थान खुद को अपडेट रखते हैं। इस ग्रेडिंग से भविष्य में होने वाले प्रवेश पर फर्क पड़ता है। छात्र यह देखता है कि यूनिवर्सिटी या कॉलेज की नैक ग्रेड कितनी है।

उसी आधार पर ही वह एडमिशन लेता है। अगर कोई बाहर से पढ़ाई करने आता है तो वह भी नैक की ग्रेड पर विश्वास करके ही आता है। वहीं अगर वह विदेश पढ़ने जा रहा है तो भी उसकी वर्तमान नैक ग्रेड का भी फर्क पड़ता है।

नैक एक्रीडिएशन नहीं होने का क्या होता है नुकसान
नैक एक्रीडिएशन और उसकी ग्रेड के आधार पर ही संस्थाओं को केंद्र सरकार से फंडिंग मिलती है। बी ग्रेड या उससे ऊपर की ग्रेडिंग होने पर 20 करोड़ से ज्यादा की ग्रांट मिलती है।

वहीं अगर ग्रेड ए प्लस प्लस हो तो वो संस्थान खुद डिस्टेंस मोड में टीचिंग शुरू कर सकते हैं। इसी तरह अगर ए ग्रेड यूनिवर्सिटी के टीचर्स कोई रिसर्च प्रोजेक्ट भेजते हैं तो वो तुरंत मंजूर होता है। इसी के आधार पर यूनिवर्सिटी और कॉलेज की रेपुटेशन बनती है।

नैक की पीयर टीम के चेयरमैन और कोटा ओपन यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर कैलाश सोडानी बताते हैं कि एजुकेशन सिस्टम और संस्थाओं को बेहतर बनाने के लिए नैक जरूरी है।

अच्छी ग्रांट मिलती है, संस्थानों पर भी दबाव रहता है कि वे अपने आपको आगे दिखाने के लिए सिलेबस से लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर तक सब कुछ अपडेटेड रखते हैं। नैक को लेकर गंभीरता बरतनी चाहिए।

नैक का प्रोसेस और उसका ग्रेडिंग साइकिल
नैक का प्रोसेस अलग-अलग स्तर पर चलता है। इसके लिए पहले यूनिवर्सिटी और कॉलेज अपने स्तर पर अपने संस्थान की एक रिपोर्ट बनाते हैं। ये रिपोर्ट नैक के दिए हुए पैरामीटर्स के अनुसार बनानी होती है। इसमें नैक की मांगी जानकारियां दी जाती है।

इसे सेल्फ स्टडी रिपोर्ट कहा जाता है। इस रिपोर्ट को सब्मिट करने के बाद नैक पीयर टीम का विजिट होता है। जो रिपोर्ट कॉलेज या इंस्टीट्यूट की ओर से भेजी जाती है।

यह टीम व्यक्तिगत रूप से पहुंचकर उसका मूल्यांकन करती है। इसके बाद यह टीम अपनी रिपोर्ट सब्मिट करती है। टीम की रिपोर्ट और संस्थान से मिली सेल्फ स्टडी रिपोर्ट के आधार पर संस्थान को नैक एक्रीडिएशन और ग्रेडिंग दी जाती है।

ग्रेडिंग साइकिल
नैक में ए प्लस प्लस से लेकर सी ग्रेड तक हासिल करने वाले संस्थान को नैक से मान्यता प्राप्त माना जाता है। इसमें सबसे अच्छी ग्रेड ए प्लस प्लस होती है। वहीं सबसे खराब ग्रेड सी होती है। वहीं, डी ग्रेड हासिल करने वाले संस्थान को नैक एक्रीडेटेड नहीं माना जाता।

राजस्थान में सबसे ज्यादा यूनिवर्सिटी
राजस्थान में बड़ी संख्या में यूनिवर्सिटी और कॉलेज हैं। देश की सर्वाधिक यूनिवर्सिटीज राजस्थान में ही हैं। राजस्थान में सेंट्रल, स्टेट, प्राइवेट, डीम्ड सहित तमाम यूनिवर्सिटीज मिलाकर इनकी संख्या 92 है।

वहीं कॉलेज के मामले में भी राजस्थान चौथे स्थान पर हैं। राजस्थान में 3 हजार 694 कॉलेज हैं। वहीं जिलों की बात करें तो पूरे देश में जयपुर जिला सबसे ज्यादा कॉलेजों के मामले में दूसरे स्थान पर है। जयपुर में 671 कॉलेज हैं।

नैक एक्रीडिएशन नहीं मिलने की तीन वजह

पहला : नैक के लिए पर्याप्त टीचर और बढ़िया इंफ्रास्ट्रक्चर सबसे जरूरी चीज होती है। सरकार की ओर से कॉलेज यूनिवर्सिटी खोल तो दी जाती हैं। मगर ना तो उनके इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए सही पैसा दिया जाता है ना ही शिक्षकों की भर्तियां होती हैं। इसके कारण संस्थान नैक कराने से डरते हैं, क्योंकि ये दो चीज नहीं होने से नैक की ग्रेड खराब मिलती है

दूसरा : संस्थान भी अपनी ओर से लापरवाही बरतते हैं, नैक के लिए जो चीजें जरूरी हैं वो करते नहीं। प्राइवेट संस्थान इंफ्रास्ट्रक्चर तो खड़ा कर लेते हैं मगर पैसा बचाने के चक्कर में अच्छी फैकल्टी नहीं रखते। गुरुवार को ही सीएम ने फिर नए 16 कॉलेज खोलने की घोषणा की। गुरुवार को विधानसभा में सतीश पूनिया ने भी कहा कि कॉलेज में ना फैकल्टी है ना भवन। सिर्फ कागज में चल रहे।

तीसरा : नैक की ओर से भी निरीक्षण में देरी होती है। टाइम पर पीयर टीमें आती नहीं, जो संस्थान अच्छा पैसा खर्च कर सकते हैं उनसे प्रभावित होकर ग्रेड दे दी जाती है, समय पर रिव्यू नहीं होते।

​​​​​​किन चीजों के मामले में खराब है शिक्षण व्यवस्था

कुलपतियों की नियुक्ति
राजस्थान की यूनिवर्सिटीज में नियुक्त होने वाले कुलपतियों की नियुक्ति की प्रक्रिया हमेशा से सवालों के घेरे में रही है। कुलपतियों की अकादमिक योग्यताओं को लेकर लगातार सवाल खड़े किए जाते रहे हैं।

हाल ही में राजस्थान में राजस्थान यूनिवर्सिटी जयपुर, सुखाड़िया यूनिवर्सिटी उदयपुर सहित कई यूनिवर्सिटी के कुलपतियों की योग्यता पर सवाल उठे। राजस्थान में भी कुलपतियों की गलत नियुक्ति और संस्पेंशन को लेकर भी कोर्ट में मामले चल रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट और कई हाईकोर्ट के पुराने निर्णयों में कोर्ट यह बता चुके हैं कि कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर राज्य सरकारों को यूजीसी रेगुलेशन की पूरी तरह पालना करना जरूरी है, लेकिन ऐसा नहीं होता और कुलपति भी नैक कराने को लेकर गंभीरता नहीं बरतते।

शिक्षकों की भर्तियां
इसी तरह राजस्थान में यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में शिक्षकों की भर्तियों को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। खासतौर से यूनिवर्सिटीज में शिक्षकों के अपॉइंटमेंट को लेकर भारी अनियमितताएं अब तक सामने आती रही हैं।

राजस्थान यूनिवर्सिटी (RU) जयपुर, सुखाड़िया यूनिवर्सिटी उदयपुर, जयनारायण व्यास (JNVU) यूनिवर्सिटी जोधपुर सहित कई यूनिवर्सिटीज में शिक्षक भर्तियों में धांधलियां सामने आई हैं।

इसे लेकर राजभवन के स्तर पर नियुक्त की गई जांच समितियों की रिपोर्ट्स में अवैधानिकताएं उजागर हो जाने के बावजूद प्रकरण को रफा-दफा कर दिया जाता है।

खराब एजुकेशन सिस्टम
यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में न तो पर्याप्त संख्या में शिक्षक उपलब्ध हैं और न ही पढ़ाई के लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर मौजूद है। नए-नए कॉलेज और यूनिवर्सिटीज खोल दी जाती हैं, लेकिन शिक्षकों और कर्मचारियों का हमेशा अभाव रहता है। इससे टीचिंग और रिसर्च के काम बुरी तरह प्रभावित होते हैं।

अधूरा इन्फ्रास्ट्रक्चर और शिक्षकों की भारी कमी के चलते कॉलेज हो या यूनिवर्सिटी नैक के लिए सालों तक अप्लाई ही नहीं करते हैं। ऐसे में नैक का एक्रीडिएशन भी नहीं मिल पाता है। राजस्थान में पीपुल-टीचर रेशियो 27 है।

कौन हैं जिम्मेदार
उच्च शिक्षा को बेहतर बनाने को लेकर हमने एक्सपर्ट से बात की तो उन्होंने हर स्तर पर बरती जाने वाली लापरवाही के बारे में बताया। एक्सपर्ट्स ने बताया कि केंद्र सरकार से लेकर यूनिवर्सिटी तक कॉलेज तक सभी अपने स्तर पर लापरवाही बरतते हैं।

केंद्र सरकार-एमएचआरडी
देशभर की यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों को बेहतर बनाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार के अधीन आने वाले मानव संसाधन विकास मंत्रालय की होती है।

एमएचआरडी की जिम्मेदारी देश की एजुकेशन व्यवस्था मजबूत करने, उसकी खामियों को दूर करने और कानूनों का उल्लंघन या गलत तरीके से शिक्षण व्यवस्था चलाने वाले संस्थाओं के विरूद्ध कार्रवाई करने की होती है।

लेकिन विभाग की ओर से इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है। केंद्र सरकार स्वयं ही अनेक फर्जी यूनिवर्सिटीज की सूची जारी करती है, इसके बावजूद इन्हें चलाने वाले दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कारगर कार्रवाई नहीं होती।

यूजीसी-एआईसीटीई
देश की उच्च शिक्षण व्यवस्था को रेगुलेट करने के लिए यूजीसी और एआईसीटीई जैसी बॉडीज बनाई गई हैं। इनका काम यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों पर लगातार नजर रखना, उन्हें मान्यता देना, उनमें नए सिलेबस को चलाने की स्वीकृति देना, उनमें शिक्षकों–कर्मचारियों की नियुक्तियों में नियमों की पालना सुनिश्चित करने जैसी जिम्मेदारियां होती हैं।

लेकिन दोनों ही एजेंसी इसे पूरा करने में खास सफल नहीं रही हैं। कुछ सालों पहले उदयपुर की राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड यूनिवर्सिटी में हजारों फर्जी डिस्टेंस लर्निंग डिग्रियां बांटे जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी को फटकार लगाई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा था कि इस मामले में यूजीसी की लापरवाही रही, जिसके चलते हजारों छात्रों को फर्जी डिग्रियां मिली। अभी भी यूनिवर्सिटीज में यूजीसी के नियमों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं, लेकिन यूजीसी की ओर से समय रहते इन मसलों पर ध्यान नहीं दिया जाता।

राजभवन
राजस्थान की सभी स्टेट यूनिवर्सिटीज सीधे तौर पर राजभवन के अधीन आती हैं। प्रदेश के राज्यपाल सभी यूनिवर्सिटीज के चांसलर होते हैं। ऐसे में यूनिवर्सिटीज में तमाम तरह की नियुक्तियों से लेकर शिक्षण व्यवस्था और प्रशासनिक गतिविधियों पर नियंत्रण की जिम्मेदारी राजभवन की होती है।

राजभवन के पास किसी भी यूनिवर्सिटी में जांच करने और दंड देने का अधिकार होता है। यूनिवर्सिटीज के बारे में सैकड़ों गंभीर शिकायतें राजभवन को की जाती हैं, लेकिन ये शिकायतें सिर्फ जांच तक ही सीमित रह जाती हैं।

राज्य सरकार
किसी भी स्टेट के यूनिवर्सिटीज कॉलेज को बेहतर बनाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी वहां की राज्य सरकार की होती है। लेकिन राजस्थान में उच्च शिक्षा सरकार की प्राथमिकता से दूर नजर आती है। यही वजह है देश में सबसे ज्यादा कॉलेजों के मामले में राजस्थान चौथे स्थान पर है।

इसके बावजूद 99 प्रतिशत कॉलेजों के पास नैक एक्रीडिएशन नहीं है। इसी तरह सरकारी कॉलेजों में भी शिक्षकों की भारी कमी है।

पिछले सालों में भारी संख्या में नए कॉलेज तो खोले दिए गए हैं, लेकिन अब तक वहां बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर भी नहीं है और शिक्षकों की उपलब्धता तो भगवान भरोसे है। लेकिन सरकारों का इस पर कोई ध्यान नहीं है।

यूनिवर्सिटी-कॉलेज की वर्किंग बॉडीज
यूनिवर्सिटीज में बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट/सिंडिकेट और एकेडमिक काउंसिल महत्वपूर्ण बॉडीज होती हैं। इसमें जहां बॉम का काम प्रशासनिक निर्णय और आवश्यक कानून निर्माण का होता है।

इनमें राज्य सरकार के नामित सदस्यों का बहुमत होता है। लेकिन सरकार के नामित सदस्य ही सरकार के निर्देशों का उल्लंघन कर निर्णयों में सहभागिता निभाते हैं।

इसी तरह यूनिवर्सिटीज में नए सिलेबस बनाना, उन्हें लागू करना और टीचिंग क्वालिटी को बनाए रखने की जिम्मेदारी एकेडमिक काउंसिल की होती है। इसमें अधिकांश सदस्य शिक्षक ही होते हैं। इसके बावजूद समय रहते हुए पाठ्यक्रम में सुधार नहीं किया जाता।

शिक्षा पर खर्च जब तक नहीं बढ़ेगा तब तक हाल नहीं सुधरेंगे : प्रो. भानु कपिल
बीएन यूनिवर्सिटी के डॉ. भानु कपिल कहते हैं कि सरकार और प्राइवेट प्लेयर्स के दिशा विहीन इम्पलीमेंटेशन के कारण प्रदेश में ऐसी स्थिति बनी है।

कोई भी यूनिट बने हुए कानूनों का इम्पलीमेंटेशन नहीं करना, सही रिक्रूटमेंट प्रोसेस का नहीं होना, सिलेबस काे अपग्रेड नहीं होना, बजट की अनुपलब्धता, बढ़ता हुआ स्टूडेंट्स का एब्सेंटीजम, एम्पलॉयबल और रिसर्च ओरिएंटेंड अप्रोच नहीं होने से नैक को लेकर दिक्कतें होती हैं।

सरकार, राजभवन, यूजीसी, प्राइवेट प्लेयर्स, रेग्युलेटिंग बॉडीज टूथलैस टाइगर हैं। सरकारों की कमजोर इच्छाशक्ति और नैक में जिस तरह के मापदंड निर्धारित किए गए हैं उसे पूरा करने में सरकार और निजी संस्थान अक्षम हैं।

इन मापदंडों को लागू करने से और उसमें लगने वाले निवेश से देश और आने वाली पीढ़ी को कितना फायदा हो सकता है इस ओर किसी का ध्यान नहीं है, न ही जरूरत महसूस हो रही है।

ये मापदंड भी जमीनी धरातल से दूर हैं। जब तक जीडीपी का खर्च शिक्षा पर बढ़ेगा नहीं तब तक नैक के दिए मापदंडों के नजदीक नहीं पहुंच सकते। सिर्फ संख्या बढ़ाने को लेकर खोले गए गुणवत्ता विहीन संस्थान इस गड़बड़ी का सबसे बड़ा कारण है।

देश में सबसे ज्यादा कॉलेजों में जयपुर दूसरे स्थान पर
देशभर में एक जिले में सबसे ज्यादा कॉलेज के मामले में राजस्थान का जयपुर जिला दूसरे और सीकर 10वें स्थान पर है। जयपुर में 671 कॉलेज हैं।

वहीं बेंगलुरु अरबन में सबसे ज्यादा 1058 कॉलेज हैं। वहीं सीकर में 308 कॉलेज हैं। सीकर 10वें स्थान पर है। जयपुर और बेंगलुरु सिर्फ 2 ही जिले हैं, देश में जहां 500 से ज्यादा कॉलेज हैं। लेकिन जयपुर के इन 671 कॉलेजों में से सिर्फ 12 कॉलेजों के पास ही नैक एक्रीडिएशन है।

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