डूबता बिहार, कटता बंगाल कौन जिम्मेदार?

डूबता बिहार, कटता बंगाल कौन जिम्मेदार?

   भागलपुर में मची तबाही के लिए नेपाल और बरसात को कोस रही मीडिया रिपोर्टिंग ये बताने कि लिए काफी है कि टीवी रिपोर्टिंग मर चुकी है. राहत और बचाव की खामियों से आगे न तो रिपोर्टर सोच पा रहा है और ना ही डेस्क पर बैठे लिखाड़ी. ग़म और आंसुओं को कैसे माल बना कर बेचा जाए सारा फोकस इसी पर है. पिछले साल भी सारा फोकस इसी पर था, अगले साल भी सारा फोकस इसी पर रहेगा. बरसात भी हर साल होगी, नेपाल भी वहीं रहेगा जहां वो आज है. इसमें से कुछ भी बदलने वाला नहीं है. सरकार और मीडिया के लिए ये सबसे अच्छी स्थिति है कि बरसात हर साल आती है और पड़ोस में ऊंचे पहाड़ों पर बसा है नेपाल. 

   भागलपुर में तबाही भी हर साल आती है. 1950 में ही वैज्ञानिक कपिल भट्टाचार्य ने ये बता दिया था कि बाढ़ से भागलपुर बर्बाद हो जाएगा. तब कपिल भट्टाचार्य को विकास विरोधी वैज्ञानिक बताया गया. तब कपिल भट्टाचार्य की रिपोर्ट पर विचार कर रही सरकार को विकास विरोधी बताया गया. ये वो दौर था जब पश्चिम बंगाल में गंगा नदी पर फरक्का बैराज बनाने का विचार सामने आया था. वैज्ञानिक कपिल शर्मा ने तब इसका विरोध करते हुए कहा था कि फरक्का के कारण बंगाल के मालदा, मुर्शीदाबाद के साथ बिहार के पटना, बरौनी, मुंगेर, भागलपुर और पूर्णिया हर साल पानी में डूबेंगे. 1971 में बिहार में अब तक की सबसे बड़ी बाढ़ आई. ये वही साल है जिस साल फरक्का बैराज बन कर तैयार हुआ. फरक्का बैराज बनने के बाद गंगा नदी का बहाव अवरुद्ध हुआ और नदी में गाद बढती गई. 

    गंगा बिहार के ठीक मध्य से होकर गुजरती है. यह पश्चिम में बक्सर जिले से राज्य में प्रवेश करती है और भागलपुर तक 445 किलोमीटर की दूरी तय करती हुई झारखंड और फिर बंगाल में प्रवेश कर जाती है. बिहार की ज्यादातर नदियां गंगा में ही मिलती हैं और गंगा ही उनका पानी बंगाल की खाड़ी तक पहुंचाती है. फरक्का बैराज बनने से पहले गैर बरसाती मौसमों में बिहार में गंगा की औसत गहराई 12-14 मीटर हुआ करती थी जो अब मात्र 6-7 मीटर रह गई है. मतलब गाद भरने से गंगा उथली हो गई है और अब वो सोन, गंडक, बूढ़ी गंडक समेत दर्जनों नदियों का पानी ढो पाने में सक्षम नहीं है. 

  2016 में जब बिहार की राजधानी पटना में गंगा का पानी घुसा और पटना और भागलपुर में तकरीबन तीन सौ लोग बाढ़ से मरे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर फरक्का बैराज हटाने की मांग की. लेकिन तबाही को विकास समझने-समझाने वाली 1950 वाली सोच 2016 में भी मौजूद रही और फरक्का के मसले पर केंद्र सरकार ने विचार तक नहीं किया. बिहार के जल संसाधन विभाग के अनुसार 21 अगस्त 2016 को पटना में भारी बाढ़ आई थी, जिसमें पटना का जलप्रवाह 32 लाख घनसेक नापा गया था. यह एक रिकॉर्ड था, वो भी ऐसे समय में जब बिहार में सामान्य से कम बारिश हुई थी.

इस जल प्रवाह में बड़ा हिस्सा सोन नदी पर बने बाणसागर बांध से अचानक छोड़ा गया 5 लाख घनसेक पानी और इसी नदी की एक सहायक नदी उत्तर कोयल से आया 11.69 लाख घनसेक पानी का था. ये पानी अचानक न छोड़ा गया. अचानक हुआ भारी जलप्रवाह भीषण बाढ़ का कारण बना.  बिहार सरकार ने केंद्र सरकार को बताया कि 21 अगस्त को आए उच्चतम प्रवाह को पटना से फरक्का तक की 370 किलोमीटर की दूरी तय करने में आठ दिन लग गए. जबकि बक्सर से पटना तक की 143 किलोमीटर की दूरी तय करने में पानी को केवल 4 घंटे ही लगते हैं.

     भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर के प्रोफेसर राजीव सिन्हा ने  गंगा का हवाई सर्वे किया था. सर्वे के बाद उन्होंने बताया, “गाद का जमाव सचमुच में बहुत ज्यादा है. यह अविश्वसनीय है!” सिन्हा गंगा में गाद की समस्या का अध्ययन करने के लिए बिहार सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ दल का सदस्य थे.

 उथली होने के साथ-साथ अब गंगा का स्वभाव भी बदला है. ऐसा लगता है कि बरसात के मौसम में गंगा फरक्का में जाकर ठहर जाती है. अंजाम ये होता है कि ये अपनी सहायक नदियों का पानी नहीं खींच पाती है और इसकी सहायक नदियां उफना जाती हैं. गंगा की सहायक धाराओं के उफनाने से पूरा उत्तर बिहार डूब जाता है. 

    बिहार एक तो वैसे ही निचला इलाका है, जहां स्वभाविक रूप से गंगा में वेग घटने लगता है. इतना ही नहीं पटना और फरक्का के बीच दुनिया में सबसे ज्यादा गाद लाने वाली नदियां  कोसी, गंडक और घाघरा‌ हैं. ये तीनों यहां गंगा में मिलती हैं. इसलिए प्राकृतिक रूप से यहां गंगा में बहुत गाद आती है जो इन नदियों के मुहाने पर जमा हो जाती है.  

    गंगा में अब पहले जैसा प्रवाह नहीं रहा. यही वजह है कि गंगा अब खुद गाद को बहाकर ले जाने में सक्षम नहीं रह गई है. पिछले कुछ दशकों में गंगा और इसकी सहायक नदियों पर ढेरों बांध और बैराज बने हैं. गंगा जब बिहार में प्रवेश करती है तो इसका अपना पानी लगभग समाप्त हो चुका होता है. फिर मानसून में बारिश भी पहले की तरह नहीं होती. गंगा के जलग्रहण क्षेत्र में दीर्घकालिक बारिश के दौर घटे हैं, जिसकी वजह से नदी में निरंतर प्रवाह नहीं रहता जो गाद को बहाने में सहायक है.

       गंगा में गाद भरने से सिर्फ बिहार ही प्रभावित नहीं है. पश्चिम बंगाल में फरक्का के नजदीक कटाव और भी गंभीर है. पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में नदी कई धाराओं में बंटकर 10-15 किलोमीटर चौड़े क्षेत्र में फैल गई है. बैराज की रुकावट से नदी का पानी पीछे की तरफ फैला है. यहां गंगा के दाहिने किनारे पर राजमहल की चट्टानी पहाड़ियां पानी के बहाव को रोकती हैं. नतीजतन नदी के बाएं किनारे ने फैलते हुए एक बड़ा सा घुमाव लिया है. घुमाव लेने में इसने जमीन का एक बड़ा हिस्सा निगल लिया है और लगभग इतना ही बड़ा हिस्सा टापुओं के रूप में उगला भी है, जिन्हें यहां के लोग चार कहते हैं. नदी विशेषज्ञ कल्याण रुद्र ने फरक्का पर गहरा शोध किया है. उनकी 2004 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1979 और 2004 के बीच मालदा में 4,247 हेक्टेयर जमीन कट गई थी.

  हैरानी है कि तबाही की इन वजहों पर कोई चर्चा नहीं हो रही. न तो दोनों राज्यों की विधानसभाओं में तबाही की मूल वजहों पर कोई चर्चा होती है और ना ही लोकसभा में बिहार और पश्चिम बंगाल के सांसद मूल वजहों पर कोई चर्चा कर पाते हैं. मीडिया से तो ऐसी उम्मीद ही अब नहीं की जा सकती. उम्मीद बिहार और पश्चिम बंगाल की उसी जनता से की जा सकती है जो हर साल तबाह और बर्बाद हो रही है. यही जनता एक दिन फरक्का बैराज का अंत लिखेगी.

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