क्या पॉलीग्राफी टेस्ट से कोलकाता रेप कांड का असली सच सामने आ जाएगा?
क्या पॉलीग्राफी टेस्ट से कोलकाता रेप कांड का असली सच सामने आ जाएगा?
पॉलीग्राफ टेस्ट को लाई डिटेक्टर टेस्ट भी कहते हैं. यह एक ऐसा टेस्ट है जिसका इस्तेमाल यह जानने के लिए किया जाता है कि कोई व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ.
9 अगस्त को कोलकाता में एक अस्पताल के सेमिनार हॉल में 31 साल की ट्रेनी डॉक्टर का शव मिला. इस घटना ने देशभर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है. देश की बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए साथी डॉक्टर हड़ताल पर हैं.
वहीं दूसरी तरफ आज यानी 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई भी चल रही है. इस दौरान कोर्ट ने क्राइम सीन से छेड़छाड़ किए जाने की बात कहकर कोलकाता पुलिस को फटकार लगाई. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को कथित आरोपी संदीप घोष के पॉलीग्राफ टेस्ट पर कल शाम 5 बजे तक आदेश पारित करने का निर्देश दिया है.
सुनवाई के दौरान जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा- कोलकाता पुलिस की भूमिका पर संदेह है. जांच में ऐसी लापरवाही अपने 30 साल के करियर में नहीं देखी.
इस सुनवाई से पहले सियालदाह के एक जिला अदालत ने इस हफ्ते की शुरुआत में 33 साल के आरोपी संजय रॉय के पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए शुरुआती अनुमति भी दे दी थी. पॉलीग्राफ टेस्ट के जरिए सीबीआई यह पता लगाने का कोशिश करेगी कि आरोपी पूछताछ में झूठ तो नहीं बोल रहा है.
ऐसे में इस रिपोर्ट में विस्तार से जानते हैं कि आखिर ये पॉलीग्राफ क्या है, क्या पॉलीग्राफी टेस्ट से सच सामने आएगा और कोर्ट इसको मानता है.
क्या होता है पॉलीग्राफी टेस्ट
पॉलीग्राफ टेस्ट को आम भाषा में लाई डिटेक्टर टेस्ट भी कहा जाता है, यह एक ऐसा परीक्षण है जिसका इस्तेमाल यह जानने के लिए किया जाता है कि कोई व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ. इस टेस्ट में विभिन्न शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापा जाता है, जो किसी व्यक्ति के झूठ बोलने पर बदल सकती हैं. इनमें दिल की धड़कन, रक्तचाप, श्वसन दर और त्वचा की विद्युत चालकता शामिल हैं.
कैसे किया जाता है पॉलीग्राफी टेस्ट
रोहिणी एफएसएल में फॉरेंसिक साइकोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ पुनीत पुरी ने एबीपी न्यूज से बात करते हुए कहा कि पॉलीग्राफी टेस्ट में व्यक्ति के ब्लड प्रेशर, हार्ट रेट, पल्स रेट, शरीर से निकलने वाले पसीने की जांच, हाथ-पैरों का मूवमेंट आदि की जांच होती है. इस टेस्ट में मरीज को किसी भी तरह की दवाई नहीं दी जाती है.
उन्होंने बताया कि पॉलीग्राफ टेस्ट करते वक्त व्यक्ति से सामान्य सवाल पूछे जाते हैं. ताकि उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं का बेसलाइन रिकॉर्ड तैयार किया जा सके. इसके बाद, कुछ वास्तविक सवाल पूछे जाते हैं जिनका जवाब जानने के लिए टेस्ट किया जा रहा होता है. इस टेस्ट में अगर व्यक्ति झूठ बोल रहा है, तो उसकी शारीरिक प्रतिक्रिया बदल जाती हैं. इन प्रतिक्रियाओं को एक पॉलीग्राफ मशीन द्वारा मापा और रिकॉर्ड किया जाता है, जिसमें ग्राफिकल फॉर्मेट में डेटा दर्ज होता है.
पॉलीग्राफी टेस्ट में किन उपकरणों का किया जाता है इस्तेमाल
पॉलीग्राफी टेस्ट में कुछ सेंसर और इलेक्ट्रोड का इस्तेमाल किया जाता है. ये सवाल का जवाब देते वक्त शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर लगाया जाता है. इसके अलावा पॉलीग्राफी टेस्ट करते वक्त कार्डियो कफ, गैल्वैनिक स्किन रिस्पॉन्स (GSR) सेंसर और प्लेस्मोग्राफ का भी इस्तेमाल किया जाता है.
कार्डियो कफ रक्तचाप और दिल की धड़कन को मापता है. वहीं गैल्वैनिक स्किन रिस्पॉन्स सेंसर त्वचा की विद्युत चालकता को मापता है और प्लेस्मोग्राफ श्वसन दर को मापता है.
इन सभी सेंसरों से मिले डेटा को एक ग्राफ पर रिकॉर्ड किया जाता है, जिसे पॉलिग्राम कहते हैं. इस ग्राफ का विश्लेषण करके यह पता लगाया जाता है कि व्यक्ति ने कब सच बोला और कब झूठ.
कहां किया जाता है इस टेस्ट का इस्तेमाल
जांच एजेंसियों में: पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों द्वारा अपराधियों से पूछताछ के दौरान पॉलीग्राफी टेस्ट का उपयोग किया जाता है. इसका उद्देश्य संदिग्ध व्यक्तियों की शारीरिक प्रतिक्रियाओं का परीक्षण करके सत्यता की पुष्टि करना है.
सरकारी और निजी क्षेत्रों में: कुछ सरकारी और निजी संगठन अपने कर्मचारियों या उम्मीदवारों की सत्यनिष्ठा की जांच के लिए इस टेस्ट का उपयोग कर सकते हैं.
साइकोलॉजिकल रिसर्च में: मनोवैज्ञानिक अध्ययन में भी पॉलीग्राफी टेस्ट का इस्तेमाल किया जाता है ताकि यह समझा जा सके कि व्यक्ति किस परिस्थिति में झूठ बोलता है और उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाएं कैसे बदलती हैं.
क्या पॉलीग्राफ टेस्ट से सच सामने आएगा?
पॉलीग्राफ टेस्ट वैज्ञानिक रूप से 100 फीसदी सटीक टेस्ट नहीं हैं. विशेषज्ञों की मानें तो अभियुक्त काफी अभ्यास कर ले तो टेस्ट में बिना पकड़ में आए अपने झूठ के सहारे पास भी हो सकता है.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में साल 2018 में ब्रिटेन में पॉलीग्राफ टेस्ट लेने वालों को ट्रेनिंग देने वाले प्रोफेसर डॉन ग्रुबिन ने बताया, “अगर आप टेस्ट से पहले अपने जूते में एक कंकर डाल लेते हैं, तो आपके शरीर से ज्यादा पसीना आता है और इंसान की शारीरिक प्रतिक्रिया को बदल देता है, ऐसे में जब पॉलीग्राफी टेस्ट देने वाला व्यक्ति झूठ बोल रहा होता है तो उस वक्त उसके शरीर में बदलाव नहीं होता है.”
वहीं कुछ अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि कई बार लोग इस टेस्ट के देने के ख्याल से ही तनाव में आ जाते हैं. ऐसे में भले ही वे सच बोल रहे हों और निर्दोष हों, लेकन उनके तनाव में रहने के कारण या शारीरिक प्रतिक्रिया बदलने के कारण इस टेस्ट में फंसने का डर सता रहा होता है.
क्या पॉलीग्राफ का नतीजा स्वीकार्य है?
पॉलीग्राफ टेस्ट को कोर्ट में सबूत के तौर पर अदालत में पेश नहीं किया जा सकता. लेकिन अगर टेस्ट करने पर नए सुराग मिलते हैं, तो पुलिस इसे कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश कर सकती है.
इस सवाल के जवाब में वकील प्रियंवदा ठाकुर ने एबीपी से बातचीत में कहा, ‘ इस तरह के टेस्ट का इस्तेमाल खासतौर पर जांच एजेंसियों की जांच को दिशा देने या कुछ सुराग पाने के लिए किया जाता है और कई मामलों में यह फायदेमंद भी रहा है.
उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियों का कहना है कि जब अभियुक्त आपके साथ कॉपरेट करने के लिए तैयार न हो तो उस पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करने के बदले पॉलीग्राफी टेस्ट से जानकारी निकलवाना आसान हो जाता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कहा था कि एक गलत रास्ते के विकल्प के तौर पर दूसरा गलत रास्ता अपनाना सही नहीं है.
अब कोलकाता रेप-मर्डर मामले की पूरी टाइमलाइन समझिए
- 08 अगस्त – कोलकाता में देर रात हैवानियत के बाद ट्रेनी डॉक्टर की हत्या कर दी गई .
- 09 अगस्त – मामले के सामने आने के कुछ घंटों बाद ही आरोपी संजय रॉय की गिरफ्तारी हुई.
- 12 अगस्त – इस पूरे मामले से की गुस्साए डॉक्टरों ने देशव्यापी हड़ताल किया.
- 13 अगस्त – कलकत्ता हाईकोर्ट ने दिए सीबीआई जांच के आदेश.
- 14 अगस्त – रात में भीड़ ने आरजी कर अस्पताल पर किया हमला. आरोप है कि हमले के आड़ में सबूत मिटाने की कोशिश की गई थी.
- 17 अगस्त – अस्पताल में हिंसा तोड़फोड़ के 30 आरोपियों की गिरफ्तारी.
- 19 अगस्त – सीबीआई को मिली आरोपी संजय के टेलिग्राफिक टेस्ट की मंजूरी.