सड़क किनारे के स्टॉल खाने को इंस्टाग्राम-रेडी स्टेटस की गति से परोस सकते हैं

‘कम से कम मुझे 20 रुपया मिल रहा है सर एक वड़ा पाव बेचने से, देखिए उन किसानों का हाल, 500 किलो प्याज बेचने पे दो रुपया मिला है इस बेचारे को।’ मुंबई में सड़क किनारे वड़ा पाव बेचने वाला, एक ग्राहक को ये कहते हुए मोबाइल पर खबर दिखा रहा था, जो एक 58 वर्षीय किसान की खबर थी। खबर कुछ इस तरह थी।

महाराष्ट्र के एक गांव से किसान राजेंद्र तुकाराम चव्हाण सोलापुर कृषि उत्पादन बाजार समिति में 512 किलो प्याज की नीलामी के लिए पहुंचे और यह प्याज 512 रु. में बिकी। बाजार समिति ने 512 रु. में से भी 509.50 रु. माल भाड़ा, लोडिंग, वजन तुलाई के काट लिए और उसे 2.49 रु. की रसीद दी।

उसे बाद की तारीख का 2 रु. का चैक मिला, 49 पैसे नहीं थे क्योंकि अमूमन बैंक जीरो के आसपास राउंड फिगर में ट्रांजेक्शन करता है। किसान ने 500 किलो प्याज उगाने में 40 हजार रु. खर्च किए और बदले में 2 रु. मिले, यही वास्तविक खबर है।

इस बातचीत से मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि क्या यह सड़क किनारे वड़ा पाव बेचने वाला अपनी पूरी जिंदगी खाने का यह धंधा कर पाएगा, भले उसने किसानी छोड़ने का निर्णय लिया हो? मेरा दिमाग चलने लगा और कई सवाल आए। आप कब आखिरी बार सड़क किनारे खाने वाले की दुकान पर नाश्ते या कटिंग चाय के लिए रुके थे? क्या आप अपनी कार से बाहर आते भी हैं?

अगर आप हाईवे पर वॉशरूम यूज करने के लिए बाहर आते हैं, तो क्या आप कह सकते हैं कि आपने दूसरे अनजान व्यक्ति से सार्थक बातचीत की? आपको ऐसा नहीं लगता कि सड़क किनारे ढेर दुकानें होने के बावजूद, कोविड के बाद से आप उन्हें भुगतान करते हुए, टोकन लेते हुए, उसे किचन काउंटर पर देते हुए और अपने स्नैक्स लेते हुए आपको हमेशा खीझ होती है या अपसेट होते हैं? हममें से ज्यादातर लोगों के लिए पहले तीन सवालों का जवाब न होगा, जबकि आखिरी सवाल का जवाब हां होगा।

अब मेरी तरह दिमाग के घोड़े दौड़ाएं और किशोरावस्था की यादें ताजा करें, जहां माता-पिता अचानक कहीं रुककर पहले-से तय दुकान से उसकी पोहा, वड़ा, जलेबी आदि बनाने की तारीफ करके खरीदते थे। हर सामान की एक दुकान होती थी, जिसके बारे में सिर्फ हमारे पिता को मालूम होता था।

आज भी हमें उन दुकानों के नाम याद हैं। मुझे लगता है रोड ट्रिप में बाहर उतरकर खाने का फन-एडवेंचर हमने खो दिया है। 85% भारतीय सड़क यात्रा करते हैं (13.5% ट्रेन, 1.5% हवाई यात्रा करते हैं) और मैं दावे से कहता हूं कि लोग सड़क किनारे खाने का लुत्फ लेना चाहते हैं, जैसा 70-80 के दशक में हम आनंद उठाते थे।

कम से कम विकसित देशों में यह कॉन्सेप्ट फिर से वापस आ रहा है, उसकी मुख्य वजह महंगाई है और लोग कोविड से पहले की तरह स्टार रेस्तरां नहीं जा पा रहे हैं। लेकिन वे बड़े पैमाने पर सड़क के किनारे खाने का फिर से अनुभव ले रहे हैं।

सड़क किनारे के स्टॉल खाने को इंस्टाग्राम-रेडी स्टेटस की गति से परोस सकते हैं, पर यह सिर्फ उन्हीं डिश तक सीमित हैं, जहां लोग कतार में खड़े होकर एक ही डिश मांगें। पर यह उनकी सीक्रेट रेसिपी डिश होनी चाहिए, सिर्फ जिसके लिए लोग चलकर आएं। भारत में हमारे पास सड़क किनारे स्टॉल लगाकर पारिवारिक सफल बिजनेस करने वाली कई कहानियां हैं। बस हमें उन्हें कॉपी-पेस्ट करके और अपनी खास डिश तैयार करने की जरूरत है।

फंडा यह है कि अगर आप सड़क किनारे कोई खाने का बिजनेस करना चाहते हैं तो इसका ख्याल रखें कि बजट और सुविधा एक ही छत के नीचे हो। इसमें सभी पहलुओं में स्वच्छता शामिल हो- यह कम से कम अभी के लिए फूड बिजनेस में सबसे कमजोर कड़ी है।

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