विद्यार्थियों में बढ़ रहा है अवसाद, आत्महत्या के मामले भी …!

अच्छी संगत, स्वस्थ संवाद और सराहना से होता है बचाव …

हमारे देश में औसतन हर 40 मिनट में एक विद्यार्थी आत्महत्या कर लेता है। असंख्य विद्यार्थी डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। आखिर विद्यार्थियों में आत्महत्या, डिप्रेशन अथवा अन्य मनोवैज्ञानिक विकारों का क्या कारण है? यह बात समझनी होगी कि यदि किसी मछली को पेड़ों पर छलांग लगाने को कहकर उसकी प्रतिभा का आकलन किया जाए, तो यह विवेकपूर्ण नहीं होगा। साथ ही मछली मर भी जाएगी। कोचिंग संस्थानों में निरंतर होने वाली आंतरिक परीक्षाओं और रैंकिंग से विद्यार्थियों पर निरंतर मानसिक दबाव बनता है। जिन विद्यार्थियों की रैंक नीचे आती है, उनके शिक्षकों व माता पिता का दायित्व बनता है कि वे उन्हें निराश नहीं होने दें। विद्यार्थियों की मानसिक स्थिति में करियर का चुनाव भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

विद्यार्थियों की रुचि के विषय नहीं मिलने के कारण जनित कुंठा से डिप्रेशन में आने वाले छात्रों की संख्या से कई गुना ज्यादा संख्या उन छात्रों की होती है, जो डॉक्टर या इंजीनियर बनने के शौक में संबंधित विषय ले लेते हैं, पर वे उस दिशा में इतना परिश्रम नहीं कर पाते हैं और विफल होने की आशंका से डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। हार्मोनल परिवर्तन के कारण किशोर व युवा विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित होकर एकतरफा प्रेम के शिकार हो जाते हैं। कच्ची उम्र के उथले प्रेम और अपरिपक्वता के चलते कई विद्यार्थी अपना करियर बर्बाद कर लेते हैं। अभिभावकों का मित्रवत व्यवहार एवं समझाइश कर इन स्थितियों से बचा जा सकता है।

कुछ साल पहले आई एक फिल्म में बताया गया था कि अभिभावकों को करियर या कोर्स का चुनाव केवल बच्चों की रुचि के आधार पर करना चाहिए। यह सही भी है, लेकिन कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण कारक भी हैं, जिनका ध्यान रखना आवश्यक है। जिस क्षेत्र में छात्र जाना चाहता है, वहां रोजगार की संभावनाएं तथा उस क्षेत्र में जाने के लिए आवश्यक परिश्रम की सामर्थ्य व इच्छाशक्ति का ध्यान रखना भी जरूरी है। सपनों को जमीनी हकीकत पर आकर परखना होगा। सामर्थ्य से कई गुना अधिक लक्ष्य व सपने अंततोगत्वा आत्महत्या और डिप्रेशन का कारण बन सकते हैं। अभिभावकों को छात्रों को बचपन से ही अच्छा साहित्य पढ़ने और श्रेष्ठ वक्ताओं को सुनने की आदत विकसित करनी चाहिए, ताकि वे मानसिक रूप से परिपक्व होकर खुद के लिए सही निर्णय लेने की क्षमता विकसित कर सकें। कई अभिभावक बच्चों पर अपने सपने और इन्हें पूरा करने का बोझ लाद देते हैं। ऐसा करने की बजाय इस मामले में करियर काउंसलर्स का परामर्श लिया जा सकता है। जीवन में स्कूल या कॉलेज की रैंक ही सफलता का एकमात्र कारण या गारंटी नहीं है। आजकल मेडिकल, इंजीनियरिंग अथवा प्रशासनिक सेवाओं के अलावा स्वरोजगार सहित देश-विदेश में सीखने और करने के सैकड़ों विकल्प हैं। यह समझना जरूरी है।

अभिभावकों को प्रतिभाशाली विद्यार्थियों के साथ बार-बार तुलना और अपने बच्चे की निंदा से बचना चाहिए। बच्चों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए तथा उनकी समय-समय पर सराहना भी की जानी चाहिए। बच्चे कोचिंग या अन्य किसी उच्च शिक्षा के लिए जब पहली बार परिवार से दूर होते हैं तो वे अकेलेपन के कारण भी डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं। अभिभावकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे अकेलापन महसूस ना करें। बच्चों को शुरू से ही योग व प्राणायाम की आदत डालनी चाहिए। इससे वे शारीरिक के साथ ही मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे। अच्छे मित्रों की संगत, परिवार से निरंतर संवाद, सहयोग, समर्थन, प्रेरणा व गाइडेंस बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। जिन परिवारों में बच्चों से मित्रवत व्यवहार व संवाद होता है वहां बच्चों के भटकने की आशंकाएं न्यूनतम होती हैं।

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