पानी के प्रबंधन में हमारी चूक के गंभीर परिणाम झेलने होंगे

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की स्टडी में दावा किया गया है कि अगर आपको बुढ़ापे से बचना है तो ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं। अगर शरीर में पानी की आपूर्ति ठीक रही तो आप तमाम तरह की बीमारियों से भी मुक्त हो जाएंगे। हर व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि 3.7 लीटर पानी पिए।

महिलाओं के लिए ये 2.7 लीटर है। बाकी कुछ इस तरह के भोजन हों जो कि आपकी 20% पानी की जरूरत को पूरा कर सकें। पर सवाल है कि दुनिया में जब 200 करोड़ लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हों तो ऐसे में उस रिपोर्ट का क्या करें जो पर्याप्त पानी पीने के लिए कहती है।

दुनिया भर में 8.29 लाख लोग सिर्फ गंदे पानी के कारण डायरिया के शिकार हो जाते हैं जबकि साफ पानी मुहैया कराके 5 साल की उम्र के 2.79 लाख बच्चों को अकाल मृत्यु से रोका जा सकता है। जिस तरह से दुनिया में जल की स्थिति बनी हुई है, ऐेसे में कितना पानी हमारे हिस्से में आएगा? घटते पानी का सबसे बड़ा कारण यह है कि भले हमने सभी तरह के प्रबंधन पर दक्षता हासिल की हो, लेकिन पानी के प्रबंधन पर हम चूक गए हैं।

अपने ही देश को देखिए। दुनिया की 17% आबादी अकेले भारत में है, ऐेसे में माना जा रहा है कि 2050 तक पानी एक विकराल समस्या के रूप में हमारे सामने होगा। आंकड़ों के अनुसार 1960 में पूरे देश में 30 लाख ट्यूबवेल थे। अगले 50 वर्षों में यह संख्या 30 करोड़ तक पहुंच गई।

आज करीब 71% से अधिक खेतों की सिंचाई ट्यूबवेल से होती है। वर्षा का पानी और उससे खेती-बाड़ी का समय जा चुका। हमने यह सारा तारतम्य खुद ही बिगाड़ दिया। पहले तो आज वर्षा का समय पर ना होना ही संकट बन चुका है। दूसरी बड़ी बात यह भी है कि अब खेती के स्वरूप बदल गए और अब हम सिंचाई आधारित खेती पर काम करते हैं।

वैसे तमाम तरह के प्रयोग भी हो रहे हैं। इनमें खासतौर से ‘कैच द रेन’ की एक बड़ी भूमिका भी है। आज देश में कई जगह वर्षा जल को समेटने का काम हो रहा है। 2009-10 में ‘हैस्को’ ने अपनी नदी को सूखने से बचाने के लिए जो प्रयोग किया, वह आज बड़े रूप में व्यापक हो गया।

सीधी और सरल पहल, जिसमें प्रकृति के विज्ञान को समझते हुए अपने जलागमों में वनों के अभाव में जल छिद्रों को जमा दिया। यह प्रयोग नमामि गंगे से लेकर देश की अन्य नदियों को सींचने के लिए काम आ रहा है।

हम अभी भी पानी के दो महत्वपूर्ण मुद्दों को नहीं समझ पा रहे हैं। एक गंदे पानी से हम जीवन और बीमारियों के बड़े संकट में घिरे हैं, वह एक विषय है। और दूसरा जब-जब पानी की कमी होगी तब-तब पानी और प्रदूषित होगा। इस नियम का बिना पालन करते हुए हम दूषित पानी से मुक्त नही हो सकते।

इसलिए जल संग्रहण के बड़े कार्यों को परिणाम न देना भविष्य के लिए कष्टकारी साबित हो सकता है। पानी को गंभीरता से नहीं समझे, तो आने वाले समय में हम बहुत बड़े कष्टों की तरफ चले जाएंगे। मतलब कल चाहिए तो आज जल जुटाइए।

दुनिया में 4.6 अरब लोग किसी न किसी रूप में जलसंकट से गुजर रहे हैं। वर्ल्ड रिसर्च ऑफ वाटर इंस्टीट्यूट के अनुसार जल की कमी से अर्थव्यवस्था को हर साल 3000 करोड़ डॉलर नुकसान होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *