इंदौर। खेल के प्रति युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूलों में खेल मैदान बनाने का नियम है। मगर इसका पालन ‘मैदानी’ नहीं हो रहा। स्कूल में करीब आधा एकड़ खेल भूमि होना जरूरी है, लेकिन बड़ी संख्या में स्कूल इसके बिना ही संचालित हो रहे हैं। खेल मैदान के अभाव में युवाओं के सफल खिलाड़ी बनने के सपने पैर नहीं पसार पा रहे।
पहले स्कूलों में आठवां (अंतिम) पीरियड खेलकूद का होता था। आठवें पीरियड की घंटी अब भी बजती है, लेकिन ऐसे स्कूलों की संख्या बहुत बड़ी है जहां खेलने के लिए मैदान ही नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के एक मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि खेल मैदान के बिना कोई स्कूल संचालित नहीं हो सकता। मध्य प्रदेश में स्कूल की मान्यता लेने के लिए खेल मैदान की अनिवार्यता है। गली-गली स्कूल खुल रहे हैं, जिनके पास मैदान नहीं होते। आम लोगों को आंखों से दिखता है, लेकिन जिम्मेदार को नहीं।
पैसों के खेल में बिना खेल मैदान के निजी स्कूल खुल जाते हैं। मिडिल स्कूल के लिए एक हजार वर्गफीट जमीन, जबकि हाई स्कूल/ हायर सेकंडरी स्कूल के लिए आधा एकड़ खेल भूमि जरूरी है। मान्यता मिलने के बाद भी मान्यता के नवीनीकरण के लिए जांच होती है। मगर कागजी फाइलों में मैदानी हकीकत दब जाती है।
ऐसे होता है ‘खेल’ :
– मान्यता लेने के लिए जो जगह दर्शाते हैं, स्कूल उसके बजाय कहीं अन्य जगह होता है।
– स्कूल की जमीन के पास स्थित बगीचे या मैदान का किरायानामा दिखाकर मान्यता ले ली जाती है।
– गत वर्ष इंदौर में एक ही जमीन का किरायानामा लेकर कई स्कूलों ने मान्यता का आवेदन कर दिया था।
जिले के आंकड़े
3000 के करीब स्कूल हैं इंदौर में
1100 शासकीय स्कूल हैं इनमें
1900 हैं निजी स्कूल
30 प्रतिशत स्कूलों के पास मैदान नहीं हैं
349 करोड़ रुपये का बजट मप्र सरकार ने खेलो इंडिया मप्र के लिए आवंटित किया है
मैंने अहिल्याश्रम स्कूल में खेलना शुरू किया था। स्कूल में मैदान नहीं होता तो शायद मैं खेलने नहीं जाती और कभी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर नहीं बन पाती। जिन स्कूलों में मैदान नहीं हैं, वे विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खेल रहे हैं।
-बिंदेश्वरी गोयल, पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर
मेरे स्कूल में खेल मैदान था। खेल का एक पीरियड होता था। खेल शिक्षक थे। यहीं से खेल के प्रति गंभीरता बढ़ी। अब सिर्फ बड़े स्कूलों में ही खेल मैदान होते हैं। तब स्पोर्ट्स क्लब कल्चर इतना ज्यादा नहीं था।
-संध्या अग्रवाल, पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान
स्कूलों से ही खिलाड़ी निकलते हैं। यही उम्र होती है, जब खिलाड़ी की प्रतिभा को तराशा जा सकता है। स्कूल में खेल मैदान का नियम तो है, लेकिन इसका पालन नहीं होता। सिर्फ बजट बढ़ाने या खेलो इंडिया जैसे आयोजन से खिलाड़ियों का विकास नहीं होगा। प्रशासन को खेल मैदानों की सुध लेना होगी।
-ओम सोनी, उपाध्यक्ष, मप्र ओलिंपिक संघ
स्कूल में खेल मैदान होना अनिवार्य है। यदि स्वयं का मैदान नहीं है तो वे मैदान किराये पर लेकर उसका किरायानामा दर्शा देते हैं। इसके आधार पर नवीनीकरण हो जाता है।
-अक्षय सिंह राठौर, जिला परियोजना अधिकारी