MP में पूर्व विधायक ले रहे हैं 3-3 पेंशन …!

एक दिन की विधायकी में भी पेंशन की लॉटरी:MP में पूर्व विधायक ले रहे हैं 3-3 पेंशन, एक लाख रुपए तक मिल रहे हैं

62 साल की उम्र या करीब 30 साल की सरकारी नौकरी के बाद एक कर्मचारी को न्यूनतम 9 हजार रुपए की पेंशन मिलती है। नेशनल पेंशन स्कीम में यह न्यूनतम 500 रुपए भी है, लेकिन अगर कोई मध्यप्रदेश में केवल एक दिन विधायक रह जाए तो वह न्यूनतम 35 हजार रुपए पेंशन का हकदार हो जाता है। MP में कई विधायक तो ऐसे भी हैं, जिन्हें 3-3 पेंशन मिल रही हैं।

प्रदेश के कर्मचारियों की ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग के बीच हाल ही में विधायकों की पेंशन का मामला भी उठा है। पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने विधानसभा में कहा कि जब विधायकों को पुराने नियमों से पेंशन मिल रही है तो कर्मचारियों को क्यों नहीं?  ….. ने पूर्व विधायकों को मिलने वाली पेंशन और सुविधाओं की पड़ताल की। आइए समझते हैं किसी विधायक या सांसद को अधिकतम कितनी पेंशन मिल सकती है?

ये है विधायकों की पेंशन का गणित…

मध्यप्रदेश में पूर्व विधायकों को हर माह 35 हजार रुपए पेंशन मिलती है। उनका एक कार्यकाल पूरा होने के बाद दूसरे कार्यकाल में हर साल 800 रुपए की बढ़ोतरी होती है। ऐसे में अगर कोई विधायक दो कार्यकाल पूरे कर लेता है तो करीब 39 हजार रुपए पेंशन मिलती है। इसके बाद वे जितने कार्यकाल पूरे करते हैं, उनकी पेंशन में हर बार 4 हजार रुपए की बढ़ोतरी होती जाती है। हालांकि, विधायकों को यह पेंशन तब मिलती है जब वे विधायक नहीं होते।

विधायक रहते समय उन्हें वेतन के अलावा भत्ते भी मिलते हैं। इसी तरह यदि कोई विधायक के अलावा पहले या बाद में सांसद भी रह चुका है तो उसे सांसद की पेंशन भी मिलती है। यदि कोई लोकसभा और राज्यसभा दोनों का सदस्य रह चुका है तो उसे दोहरी पेंशन यानी दोनों सदनों से मिलती है।

    

पहले 6 महीने न्यूनतम कार्यकाल था, अब सर्टिफिकेट मिलते ही पेंशन के हकदार

पहले यह नियम था कि किसी भी विधायक का 6 महीने का कार्यकाल होने पर ही वह पेंशन का हकदार होता था, लेकिन सरकार ने 2012 में इस नियम को संशोधित कर दिया। अब चुनाव जीतने का सर्टिफिकेट जारी होने के बाद ही विधायक पेंशन के हकदार हो जाते हैं। यानी कोई एक दिन का विधायक रहे तो उसे भी पेंशन ताउम्र मिलेगी। बता दें, 1990 से पहले नियम था कि पांच साल विधायक रहने पर ही पेंशन मिलेगी।

विधायकों-सांसदों की पेंशन पर सवाल क्यों उठा?

यह सवाल इसलिए उठता है, क्योंकि 1 अप्रैल 2005 से सरकारी कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बंद कर नेशनल पेंशन स्कीम लागू कर दी गई। नई पेंशन स्कीम में बीमा प्रीमियम की तरह सरकारी कर्मचारियों को खुद अंशदान करना पड़ता है। जितना ज्यादा अंशदान, रिटायरमेंट पर उतनी ज्यादा पेंशन। कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग लंबे समय से उठती रही है। आम जनता में यही धारणा बनी है कि चुने हुए नेता खुद अपने लिए वेतन-भत्ते बढ़ा लेते हैं, पर कर्मचारियों की मांगों को अनसुना कर दिया है।

BJP विधायक बोले- 10 लाख से ज्यादा की आमदनी वालों की पेंशन पर विचार हो

सांसद-विधायकों को दोहरी पेंशन के सवाल पर बीजेपी विधायक उमाकांत शर्मा ने कहा- 10 लाख से अधिक आय वाले, इनकम टैक्स देने वाले और उद्योगपति और दोहरी पेंशन के मुद्दे पर राजनीतिक दलों को विधानसभा और संसद में सहमति बनाना चाहिए।

OPS सरकारी खजाने पर बोझ तो विधायक-सांसदों को पुरानी पेंशन क्यों?

एक जनवरी 2004 के बाद भर्ती हुए केंद्रीय कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन योजना की जगह नई पेंशन योजना (NPS) लागू हुई और उसके बाद राज्य सरकारों ने अलग-अलग तारीखों पर इसे लागू किया। कर्मचारियों के लिए तो 19 साल पहले ही पुरानी पेंशन व्यवस्था को खत्म कर दिया गया, लेकिन देश में अभी भी पूर्व सांसदों और पूर्व विधायकों को पुराने तर्ज पर ही पेंशन और दूसरी सुविधाएं भी मिलती हैं।

जब केंद्र सरकार ने ओपीएस की जगह एनपीएस लाने का फैसला किया था तो इसके पीछे बड़ी वजह सरकारी खजाने पर पड़ रहे बोझ को बताया गया था। सरकारी खजाने की स्थिति को बेहतर करने का हवाला देकर पुरानी पेंशन व्यवस्था की जगह नई पेंशन व्यवस्था लागू की गई थी, जिसमें सरकार की देनदारी कम हो गई थी और कर्मचारियों का अंशदान बढ़ गया था।

अब बताते हैं माननीयों को कहां मिलती है पेंशन और कहां नहीं

गुजरात में नहीं मिलती पेंशन, पंजाब में ‘वन एमएलए, वन पेंशन’ सिस्टम

8 राज्यों ने विधायकों की पेंशन के लिए ऊपरी सीमा तय की है। बताते हैं कि मणिपुर के एक पूर्व विधायक को 70 हजार रुपए की पेंशन मिलती है जो देश में सबसे ज्यादा है। केवल गुजरात ऐसा राज्य है जहां पूर्व विधायकों को पेंशन नहीं मिलती है।

मार्च 2022 में पंजाब में भगवंत मान की अगुवाई में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने पंजाब में पूर्व विधायकों के लिए पेंशन से जुड़ा बड़ा फैसला लिया। उन्होंने एक विधायक एक पेंशन योजना लागू कर दी। दरअसल, पंजाब में कई पूर्व विधायकों को 5 से 6 लाख रुपए महीने तक की पेंशन मिल रही थी।

राजस्थान में भी मिलती है मोटी रकम

राजस्थान में एक बार विधायक बन जाने पर शख्स प्रति महीने 35 हजार रुपए पेंशन का हकदार बन जाता है। दो या उससे ज्यादा बार विधायक बनने पर उसकी पेंशन में इजाफा होते जाता है। दूसरी बार विधायक बनने पर पेंशन में 8 हजार रुपए की बढ़ोतरी हो जाती है। ऐसे ही हर बार 8-8 हजार रुपए की राशि बढ़ते जाती है। 2022 के आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान में 483 पूर्व विधायकों पर राज्य सरकार 37 करोड़ रुपए खर्च कर रही थी।

हरियाणा में पेंशन पर मोटी रकम खर्च

हरियाणा सरकार ने भी 2018 में पूर्व विधायकों के पेंशन को तर्कसंगत बनाने की कोशिश की थी। इसके लिए विधानसभा से एक कानून भी बनवाया। इसके बावजूद वहां ‘वन एमएलए वन पेंशन’ का फॉर्मूला लागू नहीं हो पाया। 2020 के आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा में 286 पूर्व विधायकों पर पेंशन मद में हर महीने ढाई करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो रहा था। यानी हरियाणा सरकार उस वक्त इस मद में सालाना 30 करोड़ खर्च कर रही थी।

बिहार, महाराष्ट्र में भी भारी खर्च

बिहार में भी पूर्व विधायकों को पूर्व सांसदों की तुलना में हर महीने ज्यादा पेंशन मिल रही है। वहां पूर्व एमएलए को हर महीने 35 हजार रुपए पेंशन मिलती है। बिहार में एक हजार से ज्यादा पूर्व विधायक पेंशन का लाभ उठा रहे हैं और इन पर हर साल 60 करोड़ से ज्यादा का सरकारी खर्च हो रहा है।

महाराष्ट्र सरकार विधानसभा के 668 पूर्व विधायकों और विधान परिषद के 144 पूर्व विधायकों की पेंशन का खर्च उठा रही है। यहां पांच साल का कार्यकाल पूरा होने पर हर महीने 50 हजार रुपए पेंशन दी जाती है। इससे ज्यादा अवधि होने पर हर साल के लिए दो हजार रुपए के अनुपात में हर महीने ज्यादा पेंशन दी जाती है। महाराष्ट्र में पूर्व विधायकों की पेंशन पर सालाना 75 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होता है।

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