भोपाल। आम जनता में सांसद एवं विधायकों को 3-3 प्रकार की पेंशन से पब्लिक में नाराजगी बढ़ रही है। सरकार ने शासकीय कर्मचारियों की पेंशन बंद कर दी है। अग्निपथ योजना के माध्यम से सैनिकों की पेंशन भी बंद कर दी गई है। लोगों का कहना है कि सांसद और विधायकों की पेंशन तत्काल बंद कर दी जानी चाहिए।
3-3 तरह की पेंशन का प्रावधान असंवैधानिक है
पेंशन का मतलब होता है किसी भी व्यक्ति को उसकी महत्वपूर्ण सेवा के बदले उसकी वृद्धावस्था में जीवन यापन के लिए सहायता उपलब्ध कराना। जनप्रतिनिधियों के मामले में यह सिद्धांत पूरी तरह से खत्म हो जाता है। कम आयु के पूर्व विधायक को भी पेंशन मिलती है। जबकि उसे 65 वर्ष की आयु के बाद पेंशन मिलनी चाहिए।
परिवीक्षा अवधि में यदि कर्मचारी की सेवा समाप्त हो जाए तो उसे पेंशन नहीं मिलती लेकिन कोई विधायक या सांसद अपने निर्वाचन के तत्काल बाद किसी कारण से पद मुक्त हो जाए या इस्तीफा दे दे अथवा सरकार गिर जाए तब भी उसे पेंशन दिए जाने का प्रावधान है। सवाल यह है कि जब सेवा ही नहीं की तो पेंशन किस बात की।
एक नेता विधायक चुना जाए तो विधानसभा से पेंशन। फिर सांसद चुन लिया जाए तो संसद से पेंशन और यदि उसे मिसा एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था तो मीसाबंदी की पेंशन। मध्यप्रदेश में कई नेताओं को 3-3 प्रकार की पेंशन मिल रही है। यह भी असंवैधानिक है। राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकारी जब प्रमोशन पाकर भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाता है तो उसे 2-2 प्रकार की पेंशन का प्रावधान नहीं है। सांसद चुने जाने पर विधायक की पेंशन अपने आप बंद होनी चाहिए। जीवन यापन के लिए सिर्फ एक पेंशन मिलनी चाहिए।
पेंशन अधिकार नहीं उपकार है
जब कर्मचारियों को पेंशन देने की बात आती है तो नेताओं को सारे सिद्धांत पता होते हैं लेकिन अपनी पेंशन के नाम पर सब कुछ भूल जाते हैं। कुछ नेता तो ऐसे हैं जो विधायक का वेतन, सांसद का पेंशन और मीसाबंदी का पेंशन ले रहे हैं। उन्हें याद दिलाने की जरूरत है कि पेंशन उनका अधिकार नहीं है। यह जनता के टैक्स से उन पर किए जाने वाला उपकार है।