बीहड़ में डाकुओं की कुलदेवी…
बीहड़ में डाकुओं की कुलदेवी…
यहां निर्भय गुर्जर चढ़ाता था घंटा:पुलिस को चुनौती देकर पहुंचा था मंदिर, महिला बनकर किए थे माता के दर्शन …
औरैया से 20 किलोमीटर दूर बीहड़ के जंगलों के बीच माता मंगलकाली का मंदिर है। यहां नवरात्रि पर भक्तों का जन सैलाब उमड़ता है। मान्यता है कि यहां हर मुराद पूरी होती है। मगर, डकैत निर्भय और अग्रेंजों की जुल्म की जुड़ी कहानियां इसे अलग पहचान देती हैं। यहां हर नवरात्रि पर निर्भय घंटा चढ़ाने आता था। वह हर बार पुलिस को चकमा दे देता था। कहा जाता है कि 1857 में अंग्रेजों ने जब देवकली गांव को तोपों से उड़ाया, तब भी यह मंदिर बच गया था। मंदिर में आज भी डकैतों के चढ़ाए घंटे लगे हैं। लोग इनके किस्से भी बड़े चाव के साथ सुनते हैं।
चलिए आपको मंदिर से जुड़ी हुई रोचक कहानी से रूबरू करवाते हैं…
- सबसे पहले पढ़िए मंदिर से जुड़ी निर्भय गुर्जर की कहानी...
दाढ़ी-मूंछ कभी नहीं बनवाता था निर्भय गुर्जर
मंदिर के पुजारी विष्णु दत्त ने बताया कि मंदिर से डाकुओं के जाने की बात कोई बहुत पुरानी नहीं है। यहां के बच्चे भी डकैत निर्भय गुर्जर को जानते हैं, क्योंकि वो यहीं का ही रहने वाला भी था। हम लोगों ने तो उसको देखा भी है। लंबा-चौड़ा और बड़े-बड़े बाल रखना उसका शौक था। दाढ़ी और मूंछ वो कभी नहीं बनवाता था। बस जब ज्यादा लंबी हो जाती थी तो खुद काट देता था।
पुजारी ने बताया कि गुर्जर यहां हर नवरात्रि अपने नाम का घंटा माता रानी को चढ़ाने आता था। पुलिस को इस बात की जानकारी रहती थी। पुलिस भी हर बार गुर्जर को पकड़ने के लिए जाल बिछाती थी, लेकिन कामयाब कभी नहीं हो पाई। इस काम के लिए निर्भय हमेशा नई तरकीब बनाता था और पुलिस को चकमा दे देता था।
भक्तों को प्रसाद बांटता था निर्भय गुर्जर
पुजारी ने बताया कि उसकी माता में अटूट भक्ति थी। वो यहां कई दिन आकर रुकता भी था। लेकिन किसी से कुछ बोलता नहीं था। इसके अलावा नवरात्रि में तो उसका आना तय रहता था। वो यहां आकर भक्तों के लिए प्रसाद बनवाता था और मुंह ढककर खुद सबको बांटता था। उस समय मंदिर में लोग दिन ही दिन आया करते थे। सब को पता था यहां डाकू आते हैं इसलिए लोग डरते थे।
पुलिस के सामने चढ़ाया था मंदिर में घंटा
पुजारी ने बताया कि एक बार की बात है, डाकू गुर्जर के नवरात्रि में मंदिर में रुकने की खबर पुलिस को लग गई। उसको पकड़ने के लिए मंदिर में MP और यूपी दोनों राज्यों की पुलिस तैनात की गई। मंदिर के चप्पे-चप्पे पर पुलिस खड़ी थी। मंदिर तक आने के लिए 100 सीढ़ियां थीं और हर सीढ़ी पर पुलिसकर्मी खड़े हुए थे।
नवरात्रि के 9 दिन तक पुलिस ऐसे ही तैनात रही, लेकिन अष्टमी के दिन निर्भय गुर्जर पुलिस के सामने घंटा चढ़ाकर चला गया और पुलिस उसको पकड़ नहीं पाई।
साड़ी पहनकर मंदिर पहुंच गया था गुर्जर
पुजारी ने बताया कि उस दिन निर्भर गुर्जर महिला बनकर मंदिर आया। उसने साड़ी पहन रखी थी। उसने पहले सभी भक्तों के साथ खड़े होकर पूजा की। उसके बाद प्रसाद बांटा और सबके आखिरी में अपने नाम का घंटा मंदिर में बांध दिया। फिर बीहड़ के जंगलों में भाग गया।
किसी भक्त ने जब निर्भय गुर्जर के नाम का घंटा देखा तो पुलिस को जानकारी दी। पुलिस उसको बहुत देर तक ढूंढती रही लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। आखिरी में पुलिस उसका घंटा उतारकर साथ ले गई। लेकिन उसके बाद भी वो यहां पर घंटा चढ़ाता रहा।
बबूल के पेड़ के बीच में बनाया था रास्ता
मंदिर के पुजारी ने आगे बताया कि बीहड़ के जंगलों में सबसे ज्यादा पेड़ बबूल के लगे थे। बबूल के पेड़ लंबे और घने होते हैं। डकैतों ने इन्हीं पेड़ों के सहारे जंगल में गुप्त रास्ते बनाए थे। जंगल को ऊपर से देखने पर सिर्फ बबूल के घने पेड़ दिखते थे लेकिन उसी के अंदर से एक रास्ता सीधे मन्दिर में आता था। अधिकतर डकैत उसी रास्ते से मंदिर में आते थे।
- अब पढ़िए अंग्रेजों के जुल्म से जुड़ी हुई कहानी
तोप का एक भी गोला मंदिर को हिला नहीं पाया
डाकुओं के अलावा इस मंदिर से जुड़ी एक और कहानी है…वो है अंग्रेजों के हमले की। पुजारी ने बताया, साल 1857 में अंग्रेजी सेना ने तोप से औरैया के देवकली गांव को उड़ा दिया था। इसी गांव के पास ये मंदिर बना था।
अंग्रेजों ने तब इस मंदिर पर भी तोप से गोले बरसाए थे, लेकिन तब इस मंदिर की एक भी ईंट वो लोग गिरा नहीं पाए थे। थक हारकर अंग्रेज यहां से चले गए थे। उसके बाद गांव के लोगों ने इसी मंदिर में शरण ली थी।
फूलन देवी माता को चढ़ाती थी नारियल
पुजारी ने आगे बताया कि यहां डेढ़ दशक से अधिक समय तक डाकुओं का राज रहा है। क्योंकि बीहड़ में जंगलों के बीच बसा था। उस वक्त यहां पहुंचना भी मुश्किल होता था। मंदिर में डकैत मलखान सिंह, फूलन देवी और माधौ सिंह जैसे बड़े डकैत माथा टेकने आते थे। फूलन देवी तो हर नवरात्रि यहां पर नारियल चढ़ाने आया करती थी। वो अपने हाथों से नारियल फोड़ कर माता को जल चढ़ाती थी। उसके बाद जय भवानी के जयकारे लगाती थी।
हालांकि 2006 में डाकुओं के खात्मे के बाद इस मंदिर के लिए पक्का रास्ता बनवाया गया। सीधे सड़कें बनवाई गईं। साथ ही लाइट की भी व्यवस्था की गई। जिससे आसानी से भक्त यहां पर आ सकें।
- अब पढ़िए निर्भय गुर्जर के डकैत बनने की कहानी
औरैया के पचदौरा गांव में एक बेहद गरीब घर में साल 1961 में एक बच्चा जन्म लेता है। बच्चे के घर में मां-बाप के अलावा 5 बहनें और एक भाई था। बच्चे का परिवार बेहद ही गरीब था। जब वो बच्चा थोड़ा बड़ा हुआ तो बच्चे के मामा उसके पिता समेत पूरे परिवार को अपने गांव गंगदासपुर ले आए।
वहां उन लोगों को थोड़ी जमीन कमाने-खाने के लिए दे दी। वो लड़का अपने मामा के यहां ही बड़ा होता है। मामा के घर आने के बाद उस बच्चे के परिवार की स्थिति थोड़ा सही हो जाती है। उनका जीवन आराम से बीतने लगता है। लेकिन गांव वालों को उस बच्चे के परिवार का गांव में रहना पसंद नहीं आता था। गांव वाले आए दिन बच्चे के मामा से झगड़ा करते और उसकी जमीन हड़पने की कोशिश करते।
गांव वालों ने कई बार तो मामा की पिटाई भी की। पूरा गांव एक तरफ हो गया और लड़के का मामा एक तरफ। उस लड़के से मामा की तकलीफ बर्दाश्त नहीं हुई। जिसके बाद उसने हथियार उठा लिए। वो हथियार उठाने वाला लड़का ही आगे चलकर मशहूर डकैत निर्भय गुर्जर बना।
निर्भर का गैंग यूपी-दिल्ली से लेकर कर्नाटक तक फैला हुआ था। लालाराम और डाकू जय सिंह गुर्जर की गैंग छोड़ने के बाद उसने साल 1990 में खुद की गैंग बना ली थी। उसकी गैंग में 70 से ज्यादा डाकू शामिल हो गए थे। उसके संपर्क बहुत दूर तक फैले हुए थे। बड़े-बड़े अपराधी उससे संपर्क साधते और अलग-अलग राज्यों के अमीर लोगों का अपहरण करने की सलाह देते थे।
निर्भय की वारदातों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था। एमपी और यूपी की सरकारों पर दबाव बढ़ता जा रहा था। अब तक निर्भय पर लूट, अपहरण और हत्या के 200 से ज्यादा मामले दर्ज हो चुके थे। दोनों राज्यों की सरकारों ने ढाई-ढाई लाख रुपए का इनाम घोषित कर दिया था।
एसटीएफ की कई टीमों को जंगल में उतार दिया गया था। आखिरकार यूपी पुलिस कामयाब हुई और 7 नवंबर 2005 को औरैया जिले से सटे बीहड़ में यूपी एसटीएफ टीम से मुठभेड़ के दौरान गुर्जर मारा गया।