इनवेस्टर्स सोचते थे महिला बिजनेस नहीं चला पाएगी ! 48% आंत्रप्रेन्योर्स महिलाएं

इनवेस्टर्स सोचते थे महिला बिजनेस नहीं चला पाएगी:अब शार्क टैंक-1 में 48% आंत्रप्रेन्योर्स महिलाएं…सिर्फ मौके की जरूरत

SUGAR कॉस्मैटिक ब्रांड की को-फाउंडर और CEO विनीता सिंह को लोग टीवी रियलिटी शो ‘शार्क टैंक’ में देख चुके हैं। IIT मद्रास से B Tech और IIMअहमदाबाद से मैनेजमेंट की डिग्री लेने के बाद विनीता को 1 करोड़ के पैकेज का जॉब ऑफर मिला था। मगर आंत्रप्रेन्योरशिप के लिए उन्होंने यह ऑफर ठुकरा दिया। उनके ब्रांड की सफलता ने भारत में महिला आंत्रप्रेन्योर्स के लिए खासतौर पर एक मिसाल कायम की है। फोर्ब्स मैग्जीन ने दिसंबर, 2021 में उन्हें मोस्ट पावफुल विमेन इन बिजनेस की लिस्ट में शुमार किया था। 

आज वो बता रही हैं कि महिला आंत्रप्रेन्योर्स के लिए माहौल कितना बदला है और महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी क्या है…

जब मैंने अपना बिजनेस शुरू करने के बारे में सोचा था तब महिला आंत्रप्रेन्योर्स गिनती की ही होती थीं। यही नहीं, बिजनेस में इनवेस्ट करने वालों में भी ज्यादातर पुरुष ही होते थे।

उस दौर में मुझे भी ऐसे हालात का सामना करना पड़ता था जब किसी पोटेंशियल इनवेस्टर को अपनी बात समझाना बहुत मुश्किल हो जाता था। वो मेरे बिजनेस के बारे में समझ नहीं पाते थे जो महिलाओं की जरूरतों को पूरा करता है।

उन्हें इस बात की भी हिचक होती थी कि एक महिला कैसे अपना बिजनेस चलाएगी। उन्हें शक होता था कि कभी भी एक महिला की प्राथमिकता बदल सकती है और वो बिजनेस के बजाय परिवार पर ज्यादा फोकस कर सकती है।

इन हालात से मैं कभी-कभी दुखी तो होती थी, मगर इन बातों ने कभी मेरा इरादा कमजोर नहीं किया। मेरा सौभाग्य है कि उसके बाद मुझे बहुत अच्छे पार्टनर्स और निवेशक मिले जिन्होंने हर कदम पर मेरा हौसला बढ़ाया। आज मुझे लगता है कि उन अनुभवों ने दरअसल मेरा इरादा और अपने विजन पर मेरा भरोसा मजबूत किया था।

आज हालात बदल चुके हैं। भारत ने हमेशा ही मजबूत नेतृत्व करने वाली महिलाएं देखी हैं, लेकिन मेरा मानना है कि अब उनकी संख्या हर दशक में बढ़ती ही जा रही है।

आज हर क्षेत्र में महिलाएं इनोवेटिव आइडियाज ला रही हैं, नए बिजनेस मॉडल खड़े कर रही हैं। ये अद्भुत है। इसका मतलब है कि आंत्रप्रेन्योरशिप में महिलाओं का दखल बढ़ा है।

शार्क टैंक के सीजन-1 में आने वाले आंत्रप्रेन्योर्स में 48% महिलाएं थीं जो अपनी कंपनी का आइडिया और विजन समझा रही थीं। ये बहुत बड़ी उछाल है। किसी समय इंडस्ट्री में महिला आंत्रप्रेन्योर्स की हिस्सेदारी महज 2% हुआ करती थी।

आज महिलाएं अपनी कंपनियों के आईपीओ ला रही हैं। वो एक अरब डॉलर से ज्यादा वैल्युएशन वाली कंपनियां खड़ी कर रही हैं। अब मेनस्ट्रीम में ऐसी बातें नहीं होती हैं कि महिलाएं नहीं कर पाएंगी, वो सक्षम नहीं हैं।

मुझे लगता है कि महिलाओं के लिए स्किल्स और ट्रेनिंग प्रोग्राम्स चलाने से भी ज्यादा जरूरी है कि वो दूसरी महिलाओं को सफल होते देखें और उनकी सफलता से प्रेरणा ले सकें।

सिर्फ इंडस्ट्री ही नहीं घर और समाज में भी सोच बदलने की जरूरत है। अब घर के काम किसी एक जेंडर के लिए ही नहीं होते हैं। ऐसा नहीं है कि घर के काम सिर्फ महिलाओं को ही करने की जरूरत है।

मेरे घर पर मेरे पति और मेरी कंपनी के को-फाउंडर कौशिक मुखर्जी हर काम में मेरा पूरा साथ देते हैं। हम लोगों ने घर के काम आपस में बांट लिए हैं ताकि किसी एक पर ज्यादा दबाव न हो।

महिलाओं का स्वभाव नरम और ज्यादा सहानुभूति वाला होता है। इसीलिए ऐसा माना जाता है कि घर के काम उनके लिए ज्यादा मुफीद हैं। लेकिन आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं, बड़ी टीम्स को लीड कर रही हैं, बड़े अभियान चला रही हैं। हालात बदल रहे हैं और उम्मीद करती हूं कि भविष्य काफी बेहतर होगा।

आज महिलाएं सफलता के शिखर पर तभी पहुंचती हैं जब वो अपनी किस्मत खुद तय करती हैं। जब कोई महिला अपना सपना पूरा करती है तो ये सिर्फ उसकी उपलब्धि नहीं होती बल्कि वो कई दूसरी महिलाओं को प्रेरणा देती है।

महिलाओं में स्किल्स या क्षमता की कमी नहीं है, उन्हें मौके और भरोसे की जरूरत है। ऑर्गनाइजेशन्स के लिए जरूरी है कि वो एक सकारात्मक माहौल तैयार करें। साथ ही वर्क लाइफ बैलेंस बनाना बहुत जरूरी है।

ऑर्गनाइजेशन में काम करने वाले हर व्यक्ति को ये महसूस होना चाहिए कि वो अगर एक साथ कई रोल्स निभा रहा है तो कंपनी भी इसके लिए उसे सपोर्ट कर रही है। ये सिर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं, हर व्यक्ति के लिए जरूरी है।

हम एक जेंडर इक्वल और बेहतर भविष्य की ओर तभी बढ़ेंगे, जब आज कदम उठाएंगे। इसके लिए नेतृत्व और नीति निर्माण की भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के साथ ही केयर वर्क और प्रोडक्टिव रिसोर्स के तौर पर उनकी भूमिका को नए सिरे से परिभाषित करना होगा।

महिलाओं को बराबरी देने की ओर एक कदम ये भी होगा कि महिला-नेतृत्व वाली कंपनियों को भी उतने ही मौके दिए जाएं जो बाकी कंपनियों को मिलते हैं। हमें महिलाओं के लिए ट्रेनिंग और स्किल प्रोग्राम चलाने से ज्यादा इस बात पर ध्यान देना होगा कि उनके सामने महिलाओं की सफलता के रोल मॉडल्स हों।

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