जयपुर -4 मुख्यमंत्री देने वाले ब्राह्मण समाज ने क्यों बुलाई महापंचायत?

4 मुख्यमंत्री देने वाले ब्राह्मण समाज ने क्यों बुलाई महापंचायत?

50-60 विधायकों से 17 पर सिमटे, अब दोनों पार्टियों की वोट बैंक पर नजर

राजस्थान बीजेपी ने चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी को प्रदेशाध्यक्ष बना दिया। सीपी जोशी के अध्यक्ष बनने के साथ ही राजस्थान में एक बार फिर ब्राह्मणों के पॉलिटिकल महत्व पर चर्चा होने लगी है।

इस फैसले से बीजेपी ने राजस्थान में अपने सबसे अहम वोट बैंक में से एक ब्राह्मण समाज को साधने की कोशिश की है। हालांकि बड़ा सवाल ये भी है कि इस फैसले से जो दूसरे जातीय समीकरण प्रभावित होंगे, बीजेपी उन्हें कैसे साधेगी।

सीपी जोशी का अध्यक्ष बनना कोई संयोग नहीं है। समाज के पॉलिटिकल महत्व को इसी बात से समझ सकते हैं कि कुछ दिन पहले हुई ब्राह्मण महापंचायत में बीजेपी-कांग्रेस के कई बड़े नेता भी पहुंचे थे। जाट समाज की तरह ब्राह्मणों ने भी अपने पॉलिटिकल रिप्रजेंटेशन की बात कही थी।

2023 विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे राजस्थान में राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ समाज और संगठन भी सक्रिय होने लगे हैं। नेता भी अपने-अपने समाज के इन कार्यक्रमों में पहुंचकर समाज से जुड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।

पिछले 2 सप्ताह पर नजर डालें तो जाट और ब्राह्मण समाज ने बड़ी सभाएं कर अपनी ताकत दिखाई है। 5 मार्च को जहां जयपुर में जाट महाकुंभ हुआ तो वहीं 19 मार्च को जयपुर में ही ब्राह्मण महापंचायत हुई। अब 2 अप्रैल को राजपूतों की बड़ी पंचायत भी जयपुर में होने जा रही है।

भास्कर ने एक्सपट्‌र्स के माध्यम से समझने की कोशिश की कि राजस्थान की राजनीति में ब्राह्मण कितने महत्वपूर्ण हैं ? कभी विधानसभा में 60 विधायकों की संख्या अब 17 पर क्यों सिमट गई है? और सबसे बड़ा सवाल- 4 मुख्यमंत्री देने वाले समाज को क्यों बुलानी पड़ी महापंचायत?

पढ़िए स्पेशल रिपोर्ट…

जयपुर में हुई ब्राह्मण महापंचायत में शामिल समाज के लोग।
जयपुर में हुई ब्राह्मण महापंचायत में शामिल समाज के लोग।

पहले समझिए वर्तमान में राजनीति में समाज का प्रतिनिधित्व

बीजेपी में 9 साल बाद ब्राह्मण अध्यक्ष, कांग्रेस में 12 साल से नहीं

कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों में अध्यक्ष के पद पर भी कई ब्राह्मण नेता रहे। बीजेपी ने हाल ही में सीपी जोशी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया है। इससे पहले 2009 से 2013 के बीच अरुण चतुर्वेदी अध्यक्ष थे। उनसे पहले महेश चंद्र शर्मा, ललित किशोर चतुर्वेदी, भंवरलाल शर्मा, रघुवीर सिंह कौशल और हरिशंकर भाभड़ा अध्यक्ष रहे।

वहीं अगर कांग्रेस की बात करें तो पार्टी को पिछला अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी के रूप में मिला था। वे 2007 से 2011 के बीच अध्यक्ष रहे थे। उनसे पहले बीडी कल्ला, गिरिजा व्यास, गिरधारी लाल व्यास, जयनारायण व्यास सहित कई प्रदेशाध्यक्ष रहे।

बीजेपी ने 9 साल बाद ब्राह्मण समाज से किसी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया है तो कांग्रेस में 12 साल से इस पद पर समाज के किसी नेता को मौका नहीं मिला है।

फिलहाल 17 विधायक, 2 मंत्री, 2 सांसद

राजस्थान में फिलहाल 17 ब्राह्मण विधायक हैं। वहीं डॉ. बीडी कल्ला और डॉ. महेश जोशी के रूप में दो कैबिनेट मंत्री हैं। 2 ब्राह्मण सांसद हैं। जिनमें से एक सीपी जोशी को बीजेपी ने अध्यक्ष बना दिया है। वहीं केंद्र में फिलहाल राजस्थान से कोई भी ब्राह्मण मंत्री नहीं है।

केंद्रीय रेल व डाक संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ब्राह्मण महापंचायत में भगवान परशुराम पर डाक टिकट जारी किया।
केंद्रीय रेल व डाक संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ब्राह्मण महापंचायत में भगवान परशुराम पर डाक टिकट जारी किया।

महापंचायत में अश्विनी वैष्णव का पहुंचना एक सियासी संकेत!

रविवार को हुई ब्राह्मण महापंचायत में रेलमंत्री अश्निनी वैष्णव भी पहुंचे। आमतौर पर राजनीतिक रूप से ज्यादा सक्रिय नहीं रहने वाले अश्विनी वैष्णव इस पंचायत में नारे लगाते दिखे। उनका ये अवतार राजस्थान के सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बन गया।

उनका इस तरह पंचायत में पहुंचना कई तरह के सियासी संकेत देता है। बीजेपी ने ब्राह्मण चेहरे के रूप में सीपी जोशी को अब प्रदेशाध्यक्ष बना दिया है। ऐसे में सीएम के चेहरे की लड़ाई में अश्विनी वैष्णव का रोल राजस्थान में क्या होगा, यह देखना भी रोचक होगा।

3 पॉइंट में समझिए कैसे कम हुआ समाज का प्रभाव

1970 से थोड़ा-थोड़ा कर कांग्रेस से छिटकने लगे

राजस्थान की कास्ट पॉलटिक्स को लेकर राजनीतिक विश्लेषक और एसडीएस-लोकनीति के संयोजक प्रोफेसर संजय लोढ़ा बताते हैं कि 1980 के बाद राजस्थान में टू-पार्टी कॉम्पीटिशन हो गया। गैर कांग्रेसी कई पार्टियों बीजेपी में मर्ज हो गई।

अब फिर कांग्रेस और साथ ही दूसरी पार्टियों का ध्यान एससी और एसटी वर्ग की ओर गया। यहां से एससी-एसटी वोट जुटाने की प्रक्रिया शुरू हुई।

इसे तीसरी लोकतांत्रिक उथल-पुथल कहा गया और इसका परिणाम ये हुआ कि ब्राह्मणों का वर्चस्व धीरे-धीरे कम होता गया। चाहे संख्यात्मक हो या पदाधिकारियों की संख्या। इस दौर में जाट, गुर्जर, माली, एससी-एसटी प्रभावी होते रहे।

हाईकमान से कनेक्टिविटी रही, मगर काडर विकसित नहीं हुआ

ब्राह्मणों के राजस्थान की राजनीति में पिछड़ने के पीछे एक अहम कारण उनकी पॉलिटिकल एक्टिविटी नहीं होना रही। एक्सपर्ट का दावा है कि जितने भी संघ या संगठन बने वो धार्मिक एक्टिविटी में ज्यादा जुड़े रहे, वहीं पॉलिटिकल विजन वाले नेता या संगठन नहीं बने, ना ही उनकी वर्किंग रही।

राजस्थान की राजनीति में ब्राह्मणों की स्थिति को लेकर विश्लेषक कहते हैं कि राजनीतिक एकता नहीं होना और क्षेत्रों में बंटे होने के कारण ब्राह्मणों को नुकसान हुआ। ब्राह्मणों में कभी जातीय कट्‌टरता नहीं रही। इस वजह से हमेशा ब्राह्मण लीडर्स सराहे गए।

एक बड़ी समस्या ये थी कि राजस्थान में मेवाड़, मारवाड़, ढूंढाड़ के ब्राह्मण नेताओं को कभी भी एक-दूसरे के क्षेत्रों से समर्थन और साथ नहीं मिला।

जयनारायण व्यास, बीडी कल्ला और गिरिजा व्यास इसके अच्छे उदाहरण हैं। साथ ही अपनी सेकंड जनरेशन को भी ब्राह्मण लीडरशिप बहुत ज्यादा पॉलिटिक्स में आगे नहीं ला पाई।

इतिहास में राजनीति में समाज की हिस्सेदारी

आजादी के आंदोलनों में प्रदेश के कई ब्राह्मण नेताओं का बड़ा रोल रहा। नतीजतन जब आजादी के बाद प्रदेश का गठन हुआ और जिम्मेदारी सौंपने की बारी आई तो शुरुआती दौर में प्रदेश के मुखिया ब्राह्मण नेता ही बने।

उस दौर में संगठन में पदाधिकारियों की संख्या हो या चाहे सरकार में विधायकों की, समाज की बड़ी हिस्सेदारी थी। 1931 की जातीय जनगणना में तो ब्राह्मण दूसरा सबसे बड़ा वोट बैंक था।

पहली विधानसभा में थे 60 ब्राह्मण विधायक

राजनीति विज्ञान के शिक्षक और राजनीति विश्लेषक प्रोफेसर अरुण चतुर्वेदी कहते हैं कि आजादी के बाद शुरुआती विधानसभाओं में ब्राह्मण रिप्रजेंटेशन काफी अच्छा था। उस दौर में लिखी गई रिसर्ड सिसन की किताब द कांग्रेस पार्टी इन राजस्थान में भी ऐसा ही कुछ जिक्र मिलता है।

सिसन अपनी किताब में राजस्थान के जातिगत हालातों की स्थिति पर बात करते हुए बताते हैं कि राजस्थान में 1946 से 1948 के बीच देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की पीसीसी यानी प्रांतीय कांग्रेस कमेटी में सबसे ज्यादा 46 प्रतिशत पदाधिकारी ब्राह्मण थे।

उनके बाद 33 प्रतिशत महाजन थे। किसान 9 प्रतिशत, एससी-एसटी 3 प्रतिशत, मुस्लिम 2 प्रतिशत और राजपूत 1 प्रतिशत थे। यही ट्रेंड लगभग 1965 तक बरकरार रहा, हालांकि इसमें थोड़े बहुत उतार-चढ़ाव होते रहे।

पीसीसी में ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व

1946-48 : 46

1948-50 : 49

1954-56 : 34

1956-58 : 35

1958-60 : 40

1963-65 : 39

40 प्रतिशत तक टिकट ब्राह्मण समुदाय को मिलते थे

रिचर्ड सिसन लिखते हैं उस दौर में तमाम पॉलिटिकल पार्टीज की ओर से ब्राह्मणों को बड़ी संख्या में टिकट दिए जाते थे। 1951-52 में कांग्रेस की ओर से 41 प्रतिशत टिकट ब्राह्मण उम्मीदवारों को दिए गए।

वहीं विपक्षी दलों में भी 10 प्रतिशत टिकट ब्राह्मणों को मिले। कांग्रेस ने उसके अलावा जाट समुदाय के उम्मीदवारों को 20 प्रतिशत, महाजनों को 17 प्रतिशत, मुस्लिमों को 5 प्रतिशत और राजपूत उम्मीदवारों को 2 प्रतिशत टिकट दिए।

हालांकि विपक्षी दलों में राजपूतों को मिलने वाले टिकटों की संख्या 50 प्रतिशत से भी ज्यादा होती थी। प्रदेश में यह सिलसिला 1967 के चुनावों तक लगभग ऐसा ही रहा।

मगर इसके बाद इस संख्या में गिरावट आती चली गई। 1957 में कांग्रेस ने 31 प्रतिशत टिकट ब्राह्मणों को दिए, वहीं 1962 और 1967 में यह संख्या 30-30 प्रतिशत रही।

चार ब्राह्मण सीएम रहे, शुरुआती तीनों मुख्यमंत्री ब्राह्मण

ब्राह्मण लीडरशिप का राजस्थान में डोमिनेंस इसी से समझा जा सकता है कि राजस्थान के गठन के बाद सीएम रहे शुरुआती तीनों राजनेता ब्राह्मण थे।

प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री हीरालाल शास्त्री बने, उसके बाद प्रभावशाली जयनारायण व्यास और टीकाराम पालीवाल राजस्थान के सीएम रहे।

इन तीनों का कार्यकाल 1949 से 1954 के बीच रहा। मगर शुरू में तीन ब्राह्मण सीएम देने वाले राजस्थान में हरिदेव जोशी के बाद कोई ब्राह्मण सीएम नहीं रहे।

जाट और ब्राह्मण महापंचायतों में दोनों समुदायों के अपने-अपने मुद्दे सामने आए, मगर अपने समुदाय का सीएम बनाने का मुद्दा दोनों सभाओं में कॉमन रहा।

पहले जाट समुदाय ने उनका सीएम बनाने की मांग की तो बाद में ब्राह्मण समुदाय ने भी अपना मुख्यमंत्री बनाने की बात की। ब्राह्मण पंचायत में सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रमुख नेता पहुंचे।

भले ही पंचायत के गैर राजनीतिक होने का दावा किया जाता रहा मगर चुनाव से ठीक पहले ब्राह्मण समुदाय ने भी हुंकार भर दी है।

जयपुर में हुई ब्राह्मण पंचायत में सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रमुख नेता पहुंचे।
जयपुर में हुई ब्राह्मण पंचायत में सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रमुख नेता पहुंचे।

महापंचायत में पहुंचे थे ये प्रमुख नेता

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव, बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी, राज्यसभा सांसद घनश्याम तिवाड़ी, प्रदेश के केबिनेट मंत्री डाॅ. महेश जोशी, उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डॉ. अरुण चतुर्वेदी, तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया, डॉ. रघु शर्मा, भजनलाल शर्मा, रामचरण बोहरा, रामलाल शर्मा, अशोक लाहौटी, अशोक परनामी, पुष्पेंद्र भारद्वाज, महेश शर्मा, विजय बैंसला, गोलमा देवी सहित बीजेपी-कांग्रेस के कई नेताओं ने शिरकत की थी।

राजस्थान में क्षत्रिय मॉडल, पॉलिसी मेकिंग में नहीं था रोल

प्रोफेसर संजय लोढ़ा बताते हैं कि आजादी से पहले राजस्थान की रियासतों में सामाजिक व्यवस्था का क्षत्रिय मॉडल था।

ब्राह्मणों की धार्मिक श्रेष्ठता हमेशा से रही, मगर रियासतों में सत्ता राजपूतों के हाथ में थी। समाज में राजपूतों को सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। राजपूत ब्राह्मणों का आदर करते थे मगर पॉलिसी मेकिंग और इम्पलीमेंटेशन में ब्राह्मणों का ज्यादा रोल नहीं था।

प्रोफेसर लोढ़ा बताते हैं कि आजादी के आंदोलन के दौरान अधिकांश आंदोलनों को ब्राह्मण ही लीड कर रहे थे।

यही वजह रही कि आजादी के बाद पहली लोकतांत्रिक उथल-पुथल में कांग्रेस लीडरशिप ब्राह्मण, कायस्थ, सिंघवी, कोठारी वगैरह के हाथ में थी। कांग्रेस का इन समुदायों में अच्छा होल्ड था।

मगर जैसे-जैसे राजनीतिक चुनौतियां बढ़ने लगी, दूसरी राजनीतिक पार्टियां उभरने लगी वैसे-वैसे कांग्रेस को यह समझ आ गया कि वह सिर्फ अपर कास्ट के बूते सत्ता में नहीं आ सकती है।

उस दौर में लैंड रिफॉर्म कर कांग्रेस ने जाट समुदाय को साधा। कांग्रेस इस दौर में ओबीसी जिनमें जाट और माली थे, उनकी ओर गई।

कांग्रेस ने दूसरों की तरफ देखा तो ब्राह्मण बीजेपी की ओर शिफ्ट हुए

राजनीतिक जानकार कहते हैं कि शुरुआती दौर में ब्राह्मण कांग्रेस काे सपोर्ट करते थे। जब कांग्रेस ने दूसरी जातियों को अकोमोडेट करना शुरू किया तो ब्राह्मण रिप्लेस होते गए।

ऐसे में जो रिप्लेस हुए वे बीजेपी के पास जाने लग गए। मगर अब बीजेपी के सामने भी यही संकट है। ऐसे में अब बीजेपी भी दूसरी जातियों की तरफ अपना फोकस करने लगी है। फिलहाल राजस्थान बीजेपी और कांग्रेस की राजनीति में ब्राह्मण 70-30 के अनुपात में बटे हैं।

राजस्थान में ब्राह्मणों के राजनीतिक दखल को लेकर इतिहासकार डॉ. भानू कपिल कहते हैं कि शुरुआती दौर में समाज के हर वर्ग ने ब्राह्मणों को लीडर माना।

पढ़े-लिखे होने, विनम्र होने के चलते सेंट्रल लीडरशिप से ब्राह्मण नेताओं का अच्छा कनेक्शन रहा। मगर धीरे-धीरे कास्ट कॉम्बिनेशन पॉलिटिक्स में ब्राह्मण पिछड़ते गए।

डॉ. कपिल बताते हैं कि ब्राह्मण मुख्य रूप से नौकरीपेशा व्यक्ति रहा। सभी पार्टियों में ब्राह्मणों की पॉजिशन नम्बर टू हो गई। राइट विंग पार्टीज में वैश्य नम्बर वन बन गए। वहीं कांग्रेस में पॉलिटिकली डोमिनेंट क्लास जैसे जाट व अन्य नम्बर वन रहे।

जयपुर के विद्याधर नगर में 19 मार्च को हुई ब्राह्मण महापंचायत में काफी संख्या में लोग जुटे। इस दौरान समाज से जुड़े कई मुद्‌दों को लेकर चर्चा की गई।
जयपुर के विद्याधर नगर में 19 मार्च को हुई ब्राह्मण महापंचायत में काफी संख्या में लोग जुटे। इस दौरान समाज से जुड़े कई मुद्‌दों को लेकर चर्चा की गई।

राइट विंग पॉलिटिक्स में ब्राह्मणों को मिली जगह

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि राजस्थान में जैसे-जैसे राइट विंग पॉलिटिक्स प्रभावी होती गई, ब्राह्मण उनकी ओर खिंचते चले गए। भानू कुमार शास्त्री राइट विंग पॉलटिक्स का बड़ा नाम थे।

इसके बाद बीजेपी में हरिशंकर भाभड़ा, ललित किशोर चतुर्वेदी, भंवरलाल शर्मा, दामोदर आचार्य, रघुवीर सिंह कौशल जैसे कई नेता हुए। जो बीजेपी में प्रमुख नेताओं में गिने जाने लगे।

30 से 35 सीटों को प्रभावित करते हैं ब्राह्मण

नेता और जानकार मानते हैं कि राजस्थान में ब्राह्मण 30 से 35 सीटों पर प्रभावी होते हैं। इन सीटों पर ब्राह्मण जिता भी सकते हैं और डैमेज भी कर सकते हैं। ब्राह्मण नेताओं को कई मौके मिले मगर जब भी सीएम या किसी बड़ी पॉजिशन पर रहने के बावजूद अपनी स्ट्रैंथ के हिसाब से लोगों को ला नहीं पाए। एक बैलेंसड पॉलिटिकल इमेज हमेशा ब्राह्मणों ने रखी। ब्यूराेक्रेसी में भी राजस्थान में ब्राह्मण समाज का प्रभाव लगातार बना रहा।

राजस्थान में अब तब छह स्पीकर ब्राह्मण रहे

राजस्थान में अबतक छह ब्राह्मण स्पीकर रहे। पहले स्पीकर नरोत्तम लाल जोशी थे, उनके बाद निरंजन नाथ आचार्य, राम किशोर व्यास स्पीकर रहे।

इनके बाद 80 के दशक में गिरीराज प्रसाद तिवारी और 90 के दशक में हरिशंकर भाभड़ा भी विधानसभा अध्यक्ष रहे। भाभड़ा के बाद लम्बे समय तक कोई ब्राह्मण स्पीकर नहीं बना। वर्तमान में डॉ. सीपी जोशी स्पीकर हैं।

ब्राह्मण महापंचायत में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हुई।
ब्राह्मण महापंचायत में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हुई।

इंदिरा गांधी के समय 11 ब्राह्मण सीएम थे, अब सिर्फ 1

राजस्थान के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि राजस्थान के साथ-साथ पूरे देश की राजनीति में ब्राह्मण डोमिनेंस कम हुआ। इंदिरा गांधी के दौर में 11 प्रदेश के सीएम ब्राह्मण हुआ करते थे। मगर आज सिर्फ ममता बनर्जी को छोड़ दिया जाए तो कोई और ब्राह्मण सीएम नहीं।

मगर वहां भी बंगाली प्रभाव ज्यादा है। राजस्थान में एक दौर में टॉप नेताओं में 7 से 8 नेता ब्राह्मण हुआ करते थे। वहीं कांग्रेस में भी ब्राह्मणों की स्थिति मजबूत थी, मगर राम मंदिर अभियान के बाद ब्राह्मण बीजेपी की ओर शिफ्ट हो गए। आज दोनों पार्टियों में काडर के रूप में ब्राह्मण कमजोर हैं।

दोनों पार्टियों में कई नेता हुए मगर साइडलाइन किए गए

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस में कई प्रमुख ब्राह्मण नेता हुए, मगर सेंट्रल लीडरशिप और स्टेट में कई नेताओं से राजनीति मतभेद के चलते साइडलाइन कर दिए गए।

बीजेपी में जहां हरिशंकर भाभड़ा, भंवरलाल शर्मा, घनश्याम तिवाड़ी, ललित चतुर्वेदी जैसे नेता रहे। वहीं कांग्रेस में बीडी कल्ला, डॉ. गिरिजा व्यास, डॉ. सीपी जोशी जैसे कई प्रभावी नेता रहे।

सभी वर्ग लोकतंत्र में अपना स्थान बनाना चाहते हैं : घनश्याम तिवाड़ी

राज्यसभा सांसद और राजस्थान के कद्दावर नेता घनश्याम तिवाड़ी कहते हैं कि सबको अवसर देने और सोशल इंजीनियरिंग के चलते सभी वर्गों की इच्छा लोकतंत्र में अपना स्थान बनाने की होती है।

सभी पार्टियां और राजनीतिक दल इसको संतुलित करने का काम करती हैं। लोकतंत्र में जिस पार्टी के कैडर में जो व्यक्ति और पार्टियों मजबूत होंगी उसको स्वभाविक लाभ मिलेगा।

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