रिफाइंड तेल कई प्रक्रियाओं से तैयार होता है …! तो क्या ये खाने लायक है?

रिफाइंड तेल कई प्रक्रियाओं से तैयार होता है, तो क्या ये खाने लायक है? खुद ही जान लीजिए

खाना पकाने के लिए आमतौर पर रिफाइंड तेल का ही इस्तेमाल होता है। ये हल्का होता है, आसानी से मिल जाता है और क़ीमत भी कम होती है। बड़े पैमाने पर निर्माण के लिए और लंबे समय तक रखने के लिए इसे रासायनिक तरीक़े से तैयार किया जाता है। लेकिन इसे तैयार करने की ये प्रक्रिया ही हमारी सेहत को हानि पहुंचाती है। नियमित रिफाइंड तेल का इस्तेमाल वज़न बढ़ने, मधुमेह, हृदय संबंधी समस्याओं जैसे ब्लॉकेज और यहां तक कि कैंसर का भी कारण बन सकता है। तो फिर सवाल उठता है कि आख़िर कौन-सा तेल सुरक्षित है?

कैसे तैयार होता है रिफाइंड तेल

तेल को रिफाइंड करने के लिए 6-7 रसायन का इस्तेमाल होता है, जैसे आईएनएस 319/ टीबीएचक्यू, आईएनएस 900ए / ई 900ए / डीएमपीएस आदि। फिर जब इसे दोबारा रिफाइंड किया जाता है, तब इन रसायनों की संख्या बढ़ाकर 12-13 कर दी जाती है। फिर जब तक रिफाइंड तेल प्राप्त नहीं हो जाता तब तक तेल को 200 डिग्री से अधिक तापमान पर लगभग आधे घंटे तक गर्म किया जाता है। इतना अधिक तापमान होने की वजह से तेल में मौजूद पौष्टिक तत्व पूरी तरह से ख़त्म हो जाते हैं।

अगली प्रक्रिया है डेओडोरिज़ेशन, जिसमें तेल को दो बार गर्म किया जाता है। इससे तेल का प्राकृतिक स्वाद और महक पूरी तरह से ख़त्म हो जाती है। यही नहीं, कुछ रिफाइंड तेल में अप्राकृतिक सुगंध और स्वाद भी मिलाया जाता है जिससे उसकी ख़ुशबू और स्वाद अलग हो जाता है। इतनी लंबी प्रक्रिया के बाद जो तेल तैयार होता है वह पूरी तरह से पोषणहीन होता है, इसे ही रिफाइंड तेल कहते हैं।

इसका सेहत पर असर पड़ता है

तेल से हमारे शरीर को वसा के साथ-साथ प्रोटीन भी मिलता है। परंतु तेल को रिफाइंड करने के बाद इनका पोषण निकल जाता है। इसमें इस्तेमाल होने वाले ख़तरनाक रासायनिक पदार्थ और लंबी प्रक्रिया शरीर के लिए नुक़सानदेह होती है। इसके नियमित सेवन से कई गंभीर बीमारियां घेर सकती हैं, जैसे- हड्डियों और जोड़ों के दर्द की समस्या, सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित होना, हृदय से संबंधित बीमारियां आदि। अनसैचुरेटेड फैट्स के जमा होने से कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना भी सामने आ सकता है।

तेल के उपयोग में कुछ ग़लतियां भी हैं

हमेशा ध्यान रखें कि कभी भी दो तेल मिलाकर खाना नहीं बनाना चाहिए। कई बार हम दो प्रकार के तेल जैसे सरसों और सोयाबीन को मिलाकर खाना बना लेते हैं, लेकिन हर तेल का गुण अलग होता है। कुछ तेल जल्दी गर्म हो जाते हैं और कुछ ज़्यादा समय लेते हैं। अनुचित मिश्रण या फिर तेल को कई बार गर्म करने से उसमें फ्री रैडिकल्स बन जाते हैं, उसमे गंध ख़त्म हो जाती है, एंटी ऑक्सीडेंट्स भी नहीं बचते, जिसके चलते कई बीमारियां हो सकती हैं। इससे हाज़मा भी ख़राब हो सकता है। नियमित खानपान में सरसों का तेल, तिल का तेल, मूंगफली का तेल, देसी घी का इस्तेमाल कर सकते हैं। इनमें ओमेगा-3, ओमेगा-6 और ओमेगा-9 सहित कई पोषक तत्व होते हैं जो शरीर को लाभ पहुंचाते हैं।

… तो सही तेल कौन-सा है?

नारियल का तेल और कच्ची घानी मूंगफली का तेल दोनों ही फ़ायदेमंद हैं। नारियल तेल एंटी-वायरल, एंटी-फंगल गुणों से भरपूर होता है, जो हृदय, मस्तिष्क और बालों के लिए फ़ायदेमंद होता है। मूंगफली के तेल में वो सभी पोषक तत्व होते हैं जिनकी शरीर को आवश्यकता होती है। संतृप्त वसा (जैसे घी, नारियल तेल) का प्रयोग करना इसलिए भी सही है क्योंकि ये तलने के दौरान तुलनात्मक रूप से स्थिर रहते हैं। सरसों का तेल (कच्ची घानी या कोल्ड प्रेस) भी स्वास्थ्यवर्धक होता है।

देसी घी का सेवन ज़रूरी है

देसी घी में हमारे शरीर के लिए कई आवश्यक फैटी एसिड, कई विटामिन जैसे- विटामिन-ए, विटामिन-ई, विटामिन-के2, विटामिन-डी और कैल्शियम, सी एल ए और ओमेगा-3 जैसे तत्व भी अच्छी मात्रा में मौजूद होते हैं। इनकी हमारे शरीर को अत्यंत आवश्कता होती है। इसलिए देसी घी आहार में ज़रूर शामिल करें।

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