न देखें अपराधियोें को राजनीतिक चश्मे से ..!
हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूंगा। —
ऐसी बात नहीं है कि एनकाउंटर सिर्फ उत्तरप्रदेश में ही होते हैं। लगभग सभी राज्यों में पुलिस और अपराधियों के बीच मुठभेड़ होना आम बात है। लेकिन, सांसद और विधायक रह चुके बाहुबली अतीक अहमद से जुड़े इस मामले से राजनीति गरमाने पर अचरज नहीं लगता। मुठभेड़ की जांच की मांग करना भी अव्यावहारिक नहीं लगता। लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि आखिर अतीक अहमद जैसे अपराधी इतने ताकतवर कैसे बन जाते हैं? इतने कि शासन-प्रशासन का इनके लिए कोई महत्त्व ही नहीं होता। अतीक के खिलाफ उत्तरप्रदेश में हत्या, अपहरण और फिरौती मांगने के दर्जनों मामले रहे, लेकिन वह कभी कानून के शिकंजे में नहीं आया। मामले दर्ज तो हुए पर जांच तक शुरू नहीं हुई। इसकी सीधी-सीधी वजह राजनीतिक संरक्षण ही मानी जाती है। राजनीति के अपराधीकरण को लेकर आरोप-प्रत्यारोप लगते रहते हैं। इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसे बढ़ावा देने में कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं है। पिछले साल यूपी विधानसभा चुनाव में जीते 403 विधायकों में से 158 के खिलाफ हत्या, अपहरण और बलात्कार के गंभीर मामले दर्ज थे। जब अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिल जाए, तो पुलिस-प्रशासन से निष्पक्ष जांच की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
आपराधिक किस्म के जनप्रतिनिधियों के आंकड़े हर राज्य में हैं। इसके सीधे मायने यही निकलते हैं कि चुनाव जीतने के लिए हर राजनीतिक दल अपराधी किस्म के लोगों पर दांव खेलने से नहीं चूकते। वैसे भी धनबल और बाहुबल की हार-जीत में अहम भूमिका रहती आई है। अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए राजनीतिक चश्मे से देखने की प्रवृत्ति सियासतदानों को छोड़नी होगी। नहीं तो कहीं अतीक अहमद और कहीं दूसरे ऐसे अपराधी राजनीतिक प्रश्रय पाकर ताकतवर बनते ही रहेंगे।