UP में ही क्यों बनते हैं गैंगस्टर्स ..!
UP में ही क्यों बनते हैं अतीक जैसे गैंगस्टर्स ….
4 लाख करोड़ के सरकारी ठेके हैं सबसे बड़ी कमाई…इन पर कंट्रोल बनाता है डॉन …
उत्तर प्रदेश में गैंगस्टर और गैंगवॉर कोई नई बात नहीं है। 1970 के दशक में बाहुबली छात्रनेता से विधायक बने रविंद्र सिंह की गोरखपुर स्टेशन पर हत्या हो या 1997 में उनके उत्तराधिकारी वीरेंद्र प्रताप शाही का लखनऊ में सड़क चलते मर्डर…
उत्तर प्रदेश और खासतौर पर पूर्वांचल में हर गली में गैंगस्टर-शूटर आम हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर इतने लोग गैंगस्टर बनते क्यों हैं?
गुंडागर्दी को ग्लैमराइज करने वाली कहानियां कहीं गरीबी का हवाला देती हैं, तो कहीं परिवार पर अत्याचार और अन्याय का…। इन वजहों से कोई व्यक्ति बदला लेने के लिए एक खून तो कर सकता है…मगर ऐसा क्या है जो उसे गैंगस्टर बनाए रखता है?
जवाब है पैसा। लेकिन दबंगई से जमीन कब्जाने, सेटलमेंट और रंगदारी से मिलने वाले पैसे से कहीं बड़ा एक सरकारी सिस्टम भी है जो खासतौर पर UP में गैंगस्टर्स को लुभाता है।
जी हां, गैंगस्टर्स को बाहुबल के साथ धनबल के शिखर पर ले जाने वाला ये सिस्टम है…सरकारी टेंडर।
सड़क बनाने से लेकर बालू निकालने तक या मछली पालने से लेकर रेलवे स्क्रैप तक हर काम का ठेका जारी होता है। UP में बाहुबली की ताकत इसी से आंकी जाती है कि उसके इलाके के कितने टेंडर उसकी मर्जी से खुलते हैं। यानी कितने ठेके उसके चहेतों को मिलते हैं।
आजादी के 76 साल में ये ठेके, सरकारी दफ्तरों से निकलकर ऑनलाइन तो हो गए…मगर सरकारें इनको अपराधियों और गैंगस्टर्स से मुक्त नहीं कर पाईं।
देश में 2020-21 में सरकारों ने कुल 17 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के कामों के लिए ई-टेंडर जारी किए थे। इनमें से 22% से ज्यादा उत्तर प्रदेश में थे।
जानिए, कैसे UP में सरकारी ठेकों की राजनीति ने अपराधी और अपराधियों के टकराव ने बाहुबली नेता तैयार किए हैं…
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