क्राइम से घिरा रहा बजरंग-दल ..?

1984 की बात है। विश्व हिंदू परिषद अयोध्या में राम-जानकी यात्रा निकालने की तैयारी कर रहा था। इसका कई संगठन विरोध कर रहे थे। VHP ने उस वक्त UP के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी से सुरक्षा मांगी, लेकिन अशांति की आशंका से उन्होंने इनकार कर दिया।

VHP ने इसके बावजूद रथयात्रा निकाली और संगठन से जुड़े युवाओं को इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी दी। यहीं से बजरंग दल का आइडिया मिला। वही बजरंग दल जिस पर बाद में तमाम हेट क्राइम के आरोप लगे और अब कर्नाटक में कांग्रेस ने सत्ता में आने के बाद इस पर बैन लगाने का वादा किया है।

इस वादे की तरफ इशारा करते हुए PM मोदी ने कर्नाटक के मूडबिद्री की चुनावी रैली में कहा- ‘ये वही कांग्रेस है जिसने पहले श्रीराम को ताले में बंद किया, अब बजरंगबली को बंद करने की बात कह रहे।’

बजरंग दल की शुरुआत से लेकर इस पर लगे आरोपों और प्रतिबंध लगाने के वादे तक की पूरी कहानी…

शुरुआतः रथयात्रा की सुरक्षा के नाम पर हुई थी शुरुआत

1960 के दशक की बात है। उस समय के RSS चीफ एमएस गोलवलकर मुंबई में हिंदू धार्मिक संप्रदायों को एक छत के नीचे एकजुट करने के लिए संन्यासियों के चुनिंदा समूह और धार्मिक संगठनों के प्रमुख से मिलते हैं।

इसके बाद गोलवलकर और एस. एस. आप्टे स्वामी चिन्मयानंद के सहयोग से विश्व हिंदू परिषद यानी VHP की स्थापना करते हैं। उद्धेश्य रखा गया कि हिंदू मंदिर बनवाए जाएंगे, गोहत्या और धर्मपरिवर्तन रोका जाएगा।

1980 के दशक में राम मंदिर आंदोलन ने जोर पकड़ लिया। विश्व हिंदू परिषद ने इसकी अगुआई की और युवाओं को भी इससे जोड़ने का अभियान चलाया। 1984 में विश्व हिंदू परिषद राम-जानकी रथ यात्रा निकालने की तैयारी कर रही थी।

इसी बीच कई संगठनों ने इस यात्रा का विरोध किया। इसके बाद परिषद ने रथ यात्रा के लिए उस वक्त UP के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी से सुरक्षा मांगी, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया।

विश्व हिंदू परिषद ने इसके बावजूद रथ यात्रा निकालने की ठानी। वहां मौजूद साधू-संतों ने विश्व हिंदू परिषद से जुड़े युवाओं को इस रथ यात्रा की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी। सैकड़ों युवा अयोध्या पहुंच गए। उस वक्त विनय कटियार के नेतृत्व में सुरक्षित रथ यात्रा निकाली गई।

यहीं से बजरंग दल का आइडिया मिला। 8 अक्टूबर 1984 को बजरंग दल की शुरुआत हुई और विनय कटियार को इसका अध्यक्ष बनाया दया।

इसे विश्व हिंदू परिषद की युवा वाहिनी बताया गया। इसके बाद से बजरंग दल के लोग भी राम मंदिर आंदोलन से जुड़ गए। 1986 के बाद दूसरे राज्यों में बजरंग दल बनाने का फैसला किया गया।

90 के दशक में VHP के पूर्व अध्यक्ष अशोक सिंघल, BJP नेता उमा भारती, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के साथ लाल घेरे में विनय कटियार।

आइडियोलॉजीः बजरंग दल का नारा है सेवा, सुरक्षा, संस्कार

बजरंग दल का प्रमुख उद्धेश्य अयोध्या में राम मंदिर बनवाना था। साथ ही मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर का विस्तार करवाना शामिल है।

बजरंग दल मुस्लिमों की डेमोग्राफिक ग्रोथ के खिलाफ रहा है। साथ ही धर्म परिवर्तन, गोहत्या और हिंदू संस्कृति में पश्चिमी प्रभाव का विरोध करता है।

बजरंग दल की आधिकारिक वेबसाइट में लिखा है कि बजरंग दल का गठन किसी के विरोध में नहीं, बल्कि हिंदुओं को चुनौती देने वाले असामाजिक तत्वों से रक्षा के लिए हुआ है।

सीनियर जर्नलिस्ट नीलांजन मुखोपाध्याय अपनी किताब ‘द आरएसएस: आइकॉन्स ऑफ द इंडियन राइट’ में लिखते हैं कि बजरंग दल की शुरुआत VHP के एक मिलिटेंट विंग के रूप में हुई थी जो राम जन्मभूमि आंदोलन को आक्रामक बना सके।

मुखोपाध्याय बताते हैं कि एक संगठन के रूप में यह अधिक उग्र था और कुछ हद तक हिंसक साधनों का भी उपयोग करता था। शुरुआत में इसे राम सेना के हनुमान जैसे सिपाहियों के रूप में पेश किया गया।

1984 में रथयात्रा के लिए ‘सशक्त’ और ‘हट्टे-कट्टे’ लोगों को इसमें शामिल किया गया। VHP ने युवाओं से इसका हिस्सा बनने और साधुओं को सुरक्षा कवच प्रदान करने को कहा।

सदस्यों की भर्ती के लिए उन्हें इसका हिस्सा बनाने का कार्यक्रम यानी दीक्षा समारोह भी आयोजित किया गया था।

मुखोपाध्याय के मुताबिक 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद से ही आंदोलन का सारा मकसद पूरा हो गया था। इसके बाद कुछ समय तक बजरंग दल के लिए अधर वाली स्थिति रही।

इसी बीच लालकृष्ण आडवाणी ने अटल बिहारी वाजपेयी का प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ कर दिया। यानी एक प्रकार से BJP को भी यह अहसास हो चुका था कि अब राम मंदिर पर उसे बीच का रास्ता निकालना पड़ेगा।

हालांकि साल 1997 के बाद बजरंग दल एक बार फिर तेजी से उभरा और जबरन धर्मांतरण को रोकने का बीड़ा उठाया। 1999 में ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस और उनके बेटों को ओडिशा के एक गांव में भीड़ द्वारा जिंदा जला दिया गया था। ईसाई समुदाय ने स्टेंस की हत्या का आरोप उस समय बजरंग दल पर ही लगाया था।

हालांकि वाधवा आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बजरंग दल यह दावा करता है कि इसमें उसका हाथ नहीं था, क्योंकि रिपोर्ट के मुताबिक हत्या के दोषी करार दिए गए दारा सिंह और बजरंग दल के बीच किसी तरह का संबंध नहीं पाया गया था।

22 जनवरी 1999 की रात को ग्राहम अपने दो बेटों के साथ अपनी गाड़ी में बैठे थे। तभी कुछ लोगों ने उन पर जबरन धर्म परिवर्तन करवाने का आरोप लगाते हुए उन्हें जमकर पीटा और फिर गाड़ी में आग लगाकर तीनों को जिंदा जला दिया था।

VHP की वेबसाइट के अनुसार बजरंग दल अब पब्लिक ओपिनियन बनाने और संगठन के विस्तार के लिए ‘आंदोलनकारी गतिविधियों’ को अंजाम देने लगा।

ये आंदोलन धार्मिक स्थलों का रेनोवेशन, गौरक्षा, दहेज और छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ काम करने लगा। साथ ही हिंदू परंपराओं और मान्यताओं का अपमान करने वाली एक्टिविटी के विरोध में अभियान भी चलाने लगा।

बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय संयोजक सुरेंद्र जैन कहते हैं, ‘चाहे हिंदू समाज के लिए कल्याणकारी कदम उठाना हो, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत पहुंचाना हो या कांवड़ यात्रा में सहयोग करना, हम हर काम करते हैं। हमने लॉकडाउन के दौरान भी हरसंभव मदद की। हम पूरे देश में स्किल ट्रेनिंग सेंटर चलाते हैं। बजरंग दल में 14-35 साल की उम्र के युवाओं को शामिल किया जाता है।’

विवादः बजरंग दल की आलोचना और विवाद

बजरंग दल पर 1992 में अयोध्या में बाबरी विध्वंस में शामिल होने के भी आरोप लगे। ह्यूमन राइट्स वॉच यानी HRW ने 1998 में दक्षिण-पूर्वी गुजरात में ईसाइयों पर हमलों में बजरंग दल का हाथ होने का दावा किया था।

इस दौरान दर्जनों चर्च और प्रार्थना हॉल को जला दिया गया था। बजरंग दल पर 2002 के गुजरात दंगों में भी शामिल होने का आरोप है।

अप्रैल 2006 में बजरंग दल के दो कार्यकर्ता बम बनाने के दौरान मारे गए। इसी से जुड़े ग्रुप पर साल 2003 में महाराष्ट्र के परभणी मस्जिद में धमाका करने के आरोप लगे। हालांकि 2016 में कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

VHP नेता प्रवीण तोगड़िया को अप्रैल 2003 में अजमेर में बजरंग दल के कार्यकर्ताओं को त्रिशूल बांटने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

सितंबर 2008 में नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटी यानी NCM ने कर्नाटक और ओडिशा के NDA शासित राज्यों में सांप्रदायिक हिंसा के लिए बजरंग दल को आरोपी ठहराया।

NCM के उस वक्त के चेयरमैन मोहम्मद शफी ने कहा कि हमारी टीमें दोनों राज्यों से लौट आई हैं। बजरंग दल के कार्यकर्ता दोनों जगहों पर इन हमलों में शामिल हैं। NCM दोनों राज्यों में सांप्रदायिक झड़पों की पूरी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को जल्द ही भेजेगा।

5 अक्टूबर 2008 को नेशनल कमीशन फॉर वुमन यानी NCW ने कर्नाटक में चर्च पर हुए कई सारे हमलों में बजरंग दल की भूमिका को गंभीरता से लिया। वहीं नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटी ने सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाले ऐसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया।

बजरंग दल के कार्यकर्ता लड़के लड़कियों के बाहर घूमने के खिलाफ कथित तौर पर मॉरल पुलिसिंग वाली कई घटनाओं में शामिल रहे हैं।

14 फरवरी 2011 को UP के कानपुर में वैलेंटाइन डे मना रहे प्रेमी जोड़ों से बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने सजा के रूप में उनसे कान पकड़वाकर उठक बैठक कराई। इस दौरान कई जगहों पर युवक-युवतियों को मारा-पीटा भी गया।

साल 2015 के बाद बजरंग दल के लोगों पर गौरक्षा के नाम मुस्लिमों और निचली जाति के हिंदुओं को निशाना बनाने का आरोप लगा।

2016 में गुजरात के ऊना में बजरंग दल पर 4 दलित युवकों को पीटने का आरोप लगा। बजरंग दल ने इन लोगों पर जिंदा गायों को मारने का आरोप लगाया था।

इसी साल फरवरी में हरियाणा में भिवानी के लोहारू गांव में दो मुस्लिमों को गोतस्करी के संदेह में जिंदा जला दिया गया। यहां भी हत्या का आरोप 28 साल के बजरंग दल के सदस्य मोनू मानेसर पर लगा। मृतक जुनैद और नासिर राजस्थान के भरतपुर के रहने वाले थे।

बैन की मांगः बाबरी विध्वंस के बाद बैन लगा, मांग कई बार उठी

बाबरी विध्वंस के बाद 1992 में नरसिम्हा राव सरकार ने बजरंग दल पर बैन लगा दिया गया था। हालांकि, एक साल बाद ही इस बैन को हटा भी लिया गया था।

बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की मांग कई बार उठी…

29 जनवरी 2013: लोक जनशक्ति पार्टी के नेता और तत्कालीन केंद्रीय उर्वरक मंत्री राम विलास पासवान ने कर्नाटक और ओडिशा में हुई हिंसा में नाम आने पर विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।

23 अक्टूबर 2008: मालेगांव और मोडासा विस्फोटों में हिंदू समूहों के कथित रूप से शामिल होने की खबरों के बाद बजरंग दल और हिंदू जागरण मंच पर प्रतिबंध लगाने की जोरदार मांग की गई। इसको लेकर राज्यसभा में हंगामा भी हुआ। माकपा नेता बृंदा करात ने शून्यकाल के दौरान मामले को उठाया।

इस दौरान माकपा सदस्यों ने कहा कि देश आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाई में एकजुट है, लेकिन इस खतरे से निपटने के लिए दो मापदंड नहीं होने चाहिए।

उन्होंने बजरंग दल और हिंदू जागरण मंच पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा कि जब भी कोई आतंकी हमला होता है, केवल एक विशेष समुदाय को आतंकवादी के रूप में दिखाया जाता है।

13 अक्टूबर 2008: राष्ट्रीय एकता परिषद यानी NIC के दिन भर के विचार-विमर्श के बाद उस समय के केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के बारे में कहा कि सुझाव प्राप्त हुए हैं और हम देखेंगे कि क्या कार्रवाई की जा सकती है।

11 अक्टूबर 2008: राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठक से दो दिन पहले इसके सदस्य और पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने VHP और बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की मांग की।

18 मार्च 2002: NDA की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस, समता पार्टी और जदयू ने लोकसभा में VHP और बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की मांग की।

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