संबंध बनाना स्त्री के लिए सुख नहीं ..!
यह एक ड्यूटी, जिसे शादी के वादे के बदले निभाना है; फिर भी गारंटी नहीं …
प्रेम और शादी का वादा करके रिश्ते बनाना धोखा तो है, विश्वासघात भी है, छल भी है, बेरहमी से स्त्री का दिल तोड़ देना भी है। ये भरोसे का मान न रखना है। यह अपने शब्दों से, अपनी बातों से, अपने वादों से पलट जाना भी है।
लेकिन इतना सब होने के बाद भी क्या ये बलात्कार है?
तेजी से बदल रही शहरी, आधुनिक दुनिया के सामने यह सवाल एक बड़े यक्षप्रश्न की तरह खड़ा है। इसका अंदाजा हर दिन हिंदी अखबारों के पिछले पन्नों पर छप रही उन खबरों से लगाया जा सकता है, जिसकी हेडलाइन कुछ इस तरह होती है – ‘शादी का वादा कर लड़की के साथ किया रेप।’ बड़ी संख्या में रोज पुलिस के पास दर्ज हो रही उन शिकायतों और कोर्ट में जा रहे मुकदमों से भी, जिसमें महिलाएं पुरुषों पर शादी के वादे पर रेप का आरोप लगा रही होती हैं।
हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट ने ऐसे ही एक मुकदमे में फैसला सुनाते हुए कहा कि चूंकि लड़के ने लिव इन में रहने से पहले लड़की से अपने विवाहित होने का तथ्य छिपाया नहीं था तो यह धोखाधड़ी और रेप का मामला नहीं है।
कहानी वही पुरानी है। एक पुरुष है और एक स्त्री। दोनों की मुलाकात होती है, प्यार होता है। घर-परिवार से दूर, महानगर में अकेले, प्रेम और साथी की तलाश में भटक रहे दो अकेले मनुष्य एक-दूसरे में प्रेम, पनाह और सहारा पाते हैं। पुरुष कहता है कि मेरी शादी तो हो चुकी है, लेकिन मैं उस शादी में खुश नहीं। पत्नी से तलाक लेने वाला हूं। लड़की यकीन कर बैठती है।
फिर एक दिन अपने बिछड़े परिवार के लिए पुरुष का प्रेम जाग उठता है। वो तलाक लेने की बजाय अपनी पुरानी शादी में लौटने का फैसला करता है। लड़की ठगा महसूस करती है तो पुलिस और अदालत की शरण लेती है।
इस कहानी में तो पुरुष शादीशुदा था, लेकिन ऐसी अनगिनत कहानियां भी हैं, जहां पुरुष भी उतना ही अकेला था, जितनी की स्त्री। पुरुष ने प्रेम का वादा किया, औरत ने वादे पर यकीन किया। कई साल दोनों साथ रहे। फिर एक दिन पुरुष अपना बोरिया-बिस्तर बांधकर चला गया और अपने माता-पिता की मर्जी से शादी कर ली।
छली गई लड़की ने फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आरोप था कि शादी का वादा कर उसके साथ रेप किया गया है। कोर्ट के पास भी इस सवाल का कोई अंतिम जवाब नहीं है। किसी केस में वो कहता है कि रेप हुआ है तो किसी केस में कहता है कि नहीं हुआ है।
अप्रैल 2019 का ये मामला है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एल नागेश्वर और एम.आर. शाह की पीठ ने छत्तीसगढ़ के एक केस में कहा, ‘शादी का झूठा वादा करके किसी महिला के साथ सेक्सुअल रिलेशनशिप बनाना बलात्कार है क्योंकि यह महिला के सम्मान पर चोट है।’ कहानी वही थी, जिसमें कई साल लिव-इन में रहने के बाद पुरुष ने घरवालों की पसंद से दूसरी स्त्री से विवाह कर लिया था।
वहीं ऐसे ही अन्य मामलों में कभी गोवा हाईकोर्ट, कभी बॉम्बे हाईकोर्ट तो कभी दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपी को यह कहकर बरी कर दिया कि लिव-इन रिलेशनशिप में सहमति से बने संबंध रिश्ता टूटने के बाद बलात्कार नहीं हो जाते।
पेंडुलम की तरह दाएं से बाएं और बाएं से दाएं डोल रही यह बहस दरअसल सबसे महत्वपूर्ण और बुनियादी सवाल को ही दरकिनार कर रही है। और वो सवाल है-एजेंसी का।
रिश्ते बनाने और तोड़ने की एजेंसी किसके पास है? क्या औरत के पास वो एजेंसी है? क्या औरत को इस तरह की परवरिश मिली है, जो उसे एक स्वतंत्रचेतना, अपनी बुद्धि, विचार और दिमाग वाले मनुष्य में तब्दील कर सके। जहां वो प्यार और रिश्तों में अपनी देह देने से पहले शादी का वादा न मांगे।
वर्ना सोचिए कि जो व्यक्ति अपनी बातों से मुकर रहा है, अपने किए वादे तोड़ रहा है, जो धोखा दे रहा है, वो तो यूं भी शादी के लायक नहीं। फिर लड़की को यह राहत क्यों नहीं महसूस होती कि अच्छा हुआ, उसके छल का पता पहले ही चल गया। शादी के बाद पता चलता कि यह शख्स अपने शब्दों, अपनी बातों से इस तरह पलट जाता है, जिसका जमीर और रीढ़ इतनी कमजोर है तो क्या होता।
शादी के बाद अपना असली रंग दिखा देने वाला आदमी तो औरत के लिए राहत और खुशी का सबब होना चाहिए, लेकिन होता इसका ठीक उल्टा है। वो जीवन में दुख और त्रासदी का सबब बन जाता है। लड़की को यह लगता है कि सेक्स के लिए तो वो राजी ही इस शर्त पर हुई थी कि यह आदमी मुझसे शादी करेगा।
यानी स्त्री के लिए सेक्स सुख नहीं है, एक ड्यूटी है, एक कीमत जो वो शादी के लिए अदा कर रही है। और शादी सिर्फ शादी भर नहीं है। शादी एक सामाजिक सुरक्षा है, गांरटी है। जीवन भर की सोशल सिक्योरिटी की गारंटी, सिर पर छत की गारंटी, सामाजिक और पारिवारिक स्वीकार्यता की गारंटी। इज्जत की गारंटी।
दिक्कत सेक्स नहीं है। दिक्कत ये गारंटी है, जो बिना शादी के नहीं मिलती। और गारंटी तो दुनिया में कहीं, किसी चीज की नहीं होती। गारंटी कार्ड के साथ कोई रिश्ता नहीं आता। गारंटी सिर्फ एक ही चीज की इस दुनिया और समाज ने ले रखी है- औरत की इज्जत की गारंटी।
अगर माता-पिता, संस्कृति और समाज लड़की को इस तरह पाल रहे हैं कि उसके शरीर में उसकी इज्जत है और इस शरीर की सो कॉल्ड पवित्रता ही इज्जत की गारंटी है तो फिर वो उस गारंटी के पीछे पगलाई पुलिस, कोर्ट, कचहरी, थाने के चक्कर लगाएगी ही।
अगर उसे ये बताया गया होता कि शरीर सिर्फ एक शरीर है, जिससे हम सांस लेते हैं, खाना खाते हैं, जिंदा रहते हैं। जिस शरीर में हम संसार का सब सुख और सब दुख भोगते हैं। यह शरीर अपनी शाश्वतता और गहराई में पवित्र है। यह सिर्फ स्त्री ही नहीं, सभी मनुष्यों के लिए पवित्र है। इसलिए इसकी पवित्रता का आदर करना चाहिए।
लेकिन तुम्हारी पवित्रता शरीर के अंग विशेष में नहीं है। फर्क नहीं पड़ता कि तुमने प्रेम किया और प्रेम को अपनी देह में जिया भी। फर्क सिर्फ इस बात से पड़ता है कि प्रेम में छल, झूठ और धोखा नहीं होना चाहिए। हर प्रेम सुंदर और पवित्र है, अगर उसमें सिर्फ दो चीजें न हों– धोखेबाजी और जबर्दस्ती।
लेकिन हमने लड़की को यह सब कुछ नहीं सिखाया। हमने अपने लड़कों को गैरजिम्मेदार और बेलगाम बनाया। अपने लड़कों को भी नहीं सिखाया कि शब्दों में कितनी ताकत है। अपनी बात का मान रखना चाहिए। सच्चा होना चाहिए। सिर्फ सेक्स पाने के लिए झूठे प्रेम का वादा नहीं करना चाहिए। किया हुआ वादा निभाना चाहिए।
हमने लड़की को सिखाया कि इज्जत शरीर में है और लड़के को सिखाया कि वह बिना नकेल का घोड़ा है। लड़की इज्जत बचाती है और लड़के इज्जत लेते हैं। हमने अपने इस सो कॉल्ड वाहियात संस्कारों के नाम पर लड़का और लड़की दोनों की मनुष्यता को खत्म कर दिया।
एक को इतना कमजोर और निरीह बना दिया और दूसरे को इतना ताकतवर कि उसकी मर्दानगी का जहर खुद उसकी भी मनुष्यता को खा गया।
जिस लड़के ने प्रेम करते हुए, चूमते हुए, हाथों में तुम्हारा हाथ लेते हुए कहा था कि वो तुमसे प्रेम करता है, वो लड़का तब भी झूठ बोल रहा था। वो सिर्फ सेक्स करना चाहता था। तुम इतनी डरपोक न होती तो उसका झूठ देख पाती। तुम इतनी निरीह न होती तो शादी का वादा मांगती ही नहीं। सिर्फ चूमे जाने को, हाथ पकड़े जाने को भविष्य की, जिंदगी की गारंटी भी न मान लेती। तुम बस जीती उस पल को। तुम देखती कि यह रिश्ता कहां जा रहा है। तुम इंतजार करती।
और इस बीच तुम वो सब भी कर रही होती जो तुम्हारे स्वायत्तता, सत्ता, आत्मनिर्भरता और खुशी की गारंटी होता। ये गारंटी वो लड़का कभी नहीं था। वो सिर्फ तुम थी। अकेले, अपने लिए। तुमने कभी यकीन नहीं किया क्योंकि तुम्हें यकीन करना सिखाया ही नहीं गया।