कम वेतन वाली नौकरियां सुरक्षित नहीं, चुनौतियों से कैसे लड़ पाएंगे युवा

इंडस्ट्री 5.0 के लिए क्या भारत तैयार …कम वेतन वाली नौकरियां सुरक्षित नहीं, चुनौतियों से कैसे लड़ पाएंगे युवा

क्या आपने “जनसांख्यिकीय लाभांश” यानी डेमोग्राफिक डिविडेंड शब्द सुना है?

मुझे यकीन है कि हां। डेमोग्राफिक डिविडेंड आर्थिक उत्पादकता में वृद्धि को संदर्भित करता है। जो तब होता है जब कार्यबल का आकार (16-64 वर्ष) आश्रितों की संख्या के सापेक्ष बढ़ता है। जनसांख्यिकी लाभांश तब होता है जब कोई देश उच्च प्रजनन दर वाली ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था से कम प्रजनन दर और मृत्यु दर वाली शहरी औद्योगिक अर्थव्यवस्था में जनसांख्यिकीय संक्रमण से गुजरता है।

भारत का डेमोग्राफिक अवसर है चुनौती भी

यह जनसांख्यिकीय लाभांश आर्थिक विकास के लिए एक बल है, लेकिन स्वत: नहीं। भारत को इसका फायदा उठाने के लिए सही नीतियों की जरूरत है। इन नीतियों में शामिल हैं:

  • कार्यबल की गुणवत्ता में सुधार के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में निवेश, (बी) एक नवाचार-अनुकूल वातावरण बनाना।
  • महिलाओं को कार्यबल में खींचने के लिए लैंगिक समानता को बढ़ावा देना।

आज हमारा फोकस है स्किलिंग और अप्रेंटिसशिप यानी शिक्षुता पर।

लेकिन उससे पहले, बड़ी बात समझें।

पांच औद्योगिक क्रांतियां

दुनिया ने अब तक पांच औद्योगिक क्रांतियां देखी हैं।

1 इंडस्ट्री 1.0 – 1780 के आस-पास शुरू होकर, पहली क्रांति भाप और पानी द्वारा संचालित मशीनों द्वारा उत्पादित वस्तुओं पर केंद्रित थी।

2 इंडस्ट्री 2.0 – सौ साल बाद जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन में दूसरी क्रांति (तकनीकी क्रांति) शुरू हुई। इसमें औद्योगिक प्रक्रियाएं शामिल थीं। जो इलेक्ट्रिकल एनर्जी द्वारा ऑपरेट मशीनों का उपयोग करती थीं।

3 इंडस्ट्री 3.0 – एक और सौ साल बाद, 1970 के आसपास, उद्योग 3.0 ने रोबोटिक्स, कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक्स के उपयोग के माध्यम से स्वचालन देखा।

4 इंडस्ट्री 4.0 – यह क्रांति 4 चीजों का यूज करती है

(i) साइबर-फिजिकल सिस्टम (CPS)

(ii) इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT)

(iii) क्लाउड कंप्यूटिंग

(iv) कॉग्निटिव कंप्यूटिंग

5 इंडस्ट्री 5.0 – नवीनतम क्रांति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मानव-मशीन सहयोग होगा। यहां आदमी और मशीन साथ-साथ काम करेंगे। ए़़डवांस टेक्नोलॉजी के यूज से रोबोट मनुष्यों को तेजी से काम करने में मदद करेंगे।

इस प्रकार

उद्योग 1.0 – 1780 – मशीनीकरण, जल और भाप शक्ति

उद्योग 2.0 – 1870 – बड़े पैमाने पर उत्पादन, बिजली, असेंबली लाइन

उद्योग 3.0 – 1970 – कंप्यूटर, स्वचालित उत्पादन, इलेक्ट्रॉनिक्स, रोबोटिक्स

उद्योग 4.0 – 2000 – साइबर-भौतिक सिस्टम, IoT, डेटा एनालिटिक्स, मशीन लर्निंग

उद्योग 5.0 – 2020 – मानव-रोबोट सहयोग, संज्ञानात्मक प्रणाली, अनुकूलन

भारत की तत्काल चुनौती

यह एक ज्ञात फैक्ट है कि भारत में हाई सैलरी, औपचारिक क्षेत्र की नौकरियां बहुत कम हैं। भारतीय कामकाजी आबादी (लगभग 50 करोड़) का 80 प्रतिशत से अधिक अनौपचारिक क्षेत्र में काम करता है। कम वेतन वाली नौकरियों में, जहां कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है।

यदि आर्थिक पिरामिड को ध्वस्त होने से बचाना है, तो भारत को अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियां उत्पन्न करने और उनमें बड़ी संख्या में युवाओं को जोड़ने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 स्वीकार करती है कि स्किलिंग शिक्षा का अभिन्न अंग है, और बड़े पैमाने पर स्किलिंग और रीस्किलिंग की जरूरत है।

इस सन्दर्भ में, अप्रेंटिसशिप (शिक्षुता) कार्यक्रम युवाओं की रोजगार क्षमता बढ़ाने की कुंजी है, जो उन्हें चौथी और पांचवीं औद्योगिक क्रांति का हिस्सा बनने में मदद करेंगे।

स्किलिंग और अप्रेंटिसशिप

अप्रेंटिसशिप यानी शिक्षुता और डिग्री अप्रेंटिसशिप कार्यक्रम कौशल विकास और शिक्षा को एक साथ लाते हैं। अप्रेंटिसशिप कार्यक्रमों में, छात्र को वास्तविक दुनिया की चीजें सीखने और पैसे कमाने में मदद करने के लिए, वास्तविक ऑन-द-जॉब प्रशिक्षण को शैक्षणिक पाठ्यक्रम का या व्यावसायिक प्रशिक्षण का हिस्सा बनाते हैं।

उदाहरण: एक प्रशिक्षु इलेक्ट्रिशियन हफ्ते में दो दिन इलेक्ट्रिकल कॉन्ट्रैक्टर के ऑफिस में काम कर सकता है। हफ्ते में एक दिन स्थानीय तकनीकी स्कूल में विद्युत सिद्धांत और सुरक्षा के बारे में सीख सकता है।

भारत में एक अप्रेंटिसशिप सिस्टम मौजूद है, लेकिन कौशल और नौकरियों में जितनी आवश्यकता है, उतनी इसकी स्केल नहीं है।

अफसोस की बात है कि निजी क्षेत्र और राज्य सरकारों के बीच जागरूकता की कमी सहित कई कारणों से भारत में अप्रेंटिसशिप फेल रही है।

भारत में अप्रेंटिसशिप को कंट्रोल करने वाले कानून शिक्षुता अधिनियम, 1961 है, जो कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) के अप्रेंटिसशिप भारत (AI) विंग द्वारा प्रशासित है।

अप्रेंटिसशिप का जर्मन मॉडल

जर्मनी दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस है। उस सफलता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा इसका सफल अप्रेंटिसशिप मॉडल रहा है।

1) जर्मन अप्रेंटिसशिप प्रणाली सैद्धांतिक और व्यावहारिक प्रशिक्षण के संयोजन वाली व्यवसायिक शिक्षा की दोहरी प्रणाली है। यह उच्च गुणवत्ता वाला प्रशिक्षण प्रदान करता है और युवाओं को कार्यबल के लिए तैयार करता है।

2) जर्मन प्रणाली तीन मुख्य इकाइयों के बीच एक साझेदारी है- (i) संघीय सरकार, (ii) राज्य, और (iii) नियोक्ता। संघीय सरकार प्रणाली के लिए धन उपलब्ध कराती है और अप्रेंटिसशिप के लिए रूपरेखा निर्धारित करती है। अप्रेंटिसशिप प्रणाली को लागू करने के लिए राज्य जिम्मेदार हैं और वे अप्रेंटिसशिप कार्यक्रमों को विकसित करने और अनुमोदित करने के लिए नियोक्ताओं के साथ काम करते हैं। नियोक्ता प्रशिक्षुओं के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं और वे उन्हें उनके प्रशिक्षण के दौरान वेतन देते हैं।

3) जर्मनी में अप्रेंटिसशिप आम तौर पर दो से तीन साल के बीच होती है। इस समय के दौरान, प्रशिक्षु सप्ताह में दो से तीन दिन कार्यस्थल पर बिताते हैं, जहाँ वे अपने चुने हुए व्यवसाय के व्यवहारिक कौशल सीखते हैं। वे सप्ताह में एक या दो दिन स्कूल में भी बिताते हैं, जहाँ वे अपने व्यापार के सैद्धांतिक आधार सीखते हैं।

4) अप्रेंटिसशिप के अंत में, शिक्षु अंतिम परीक्षा देते हैं। यदि वे पास हो जाते हैं, तो उन्हें पूर्णता का प्रमाण पत्र दिया जाता है। यह पूरे जर्मनी में नियोक्ताओं द्वारा मान्यता प्राप्त है, और यह प्रशिक्षुओं को नौकरी के बाजार में एक महत्वपूर्ण लाभ देता है।

लेकिन जर्मनी में भी, नौजवानों के लिए अप्रेंटिसशिप पाना मुश्किल हो सकता है। अप्रेंटिसशिप की मांग अक्सर आपूर्ति से अधिक होती है, और इससे प्रतीक्षा सूची लंबी हो सकती है। अप्रेंटिसशिप की लागत भी अधिक हो सकती है, जो उन्हें कुछ युवाओं की पहुंच से बाहर कर सकती है।

इसे भारत में लागू करें

जर्मन अप्रेंटिसशिप प्रणाली को भारत में कई तरीकों से लागू किया जा सकता है।

1) सबसे पहले, एक राष्ट्रीय अप्रेंटिसशिप ढांचा तैयार करें। यह अप्रेंटिसशिप के लिए मानक निर्धारित करेगा और युवाओं के लिए अप्रेंटिसशिप ढूंढना आसान बना देगा।

2) अप्रेंटिसशिप लेने के इच्छुक युवाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करें। इससे कम आय वाले परिवारों के युवाओं के लिए अप्रेंटिसशिप को अधिक किफायती बनाने में मदद मिलेगी।

3) भारत में अप्रेंटिसशिप उद्योग, विश्वविद्यालयों और प्रशिक्षुओं के बीच एक त्रिपक्षीय व्यवस्था होनी चाहिए। सरकारों को इसकी सुविधा देनी चाहिए।

सारांश

यदि भारत को वाकई विश्वगुरु बनना है, तो बड़े परिवर्तन करने का समय यही है।

आज का करिअर फंडा है कि बड़ी युवा आबादी भारत की स्ट्रेंथ है, जिसे एक मजबूत अप्रेंटिसशिप सिस्टम से सही मौके दिए जा सकते हैं।

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