मुफ्त रेवड़ियों’ ने कैसे डाला असर … ?

8 राज्यों के चुनावी नतीजों पर ‘मुफ्त रेवड़ियों’ ने कैसे डाला असर …

2020 से अब तक 8 राज्यों में चुनाव में मुफ्त वादे जीत का अहम फैक्टर साबित हुआ है. 5 फ्रीबीज इन सभी चुनावों में जीत-हार तय करने में बड़ी भूमिका निभा रही है.
कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश और हरियाणा में कांग्रेस की ताबड़तोड़ घोषणाओं से मुफ्त वादों पर बहस छिड़ गई है. हालांकि, यह पहली बार नहीं है. मुफ्त वादों के मुद्दा पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी हो चुकी है.लेकिन मामले की जटिलता को देखते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस ने इसे 3 जजों की बेंच के पास भेज दिया था.

सुप्रीम कोर्ट में रेवड़ी कल्चर पर आखिरी सुनवाई 1 नवंबर 2022 को हुई थी. उस वक्त तत्कालीन चीफ जस्टिस यूयू ललित ने जल्द ही मामले की सुनवाई के लिए बेंच बनाने की बात कही थी. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल होने से अब तक 8 राज्यों में चुनाव हो चुके हैं. इन राज्यों में मुफ्त चुनावी घोषणाएं जीत का बड़ा फैक्टर साबित हुआ है.

आइए इस स्टोरी में सुप्रीम सुनवाई, मुफ्त चुनावी वादे और इसका इलेक्शन पर होने वाले असर के बारे में विस्तार से जानते हैं…

फ्रीबीज यानी मुफ्त वादे क्या हैं?
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने हलफनामा दाखिल किया था. आयोग के मुताबिक फ्रीबीज की कोई स्पष्ट कानूनी परिभाषा नहीं है. आयोग ने कहा था कि परिस्थिति के हिसाब से फ्रीबीज की परिभाषा बदल जाती है.

आयोग ने उदाहरण देते हुए कहा था- प्राकृतिक आपदा या महामारी के दौरान जब जीवन रक्षक दवा, खाना या पैसा दिया जाता है, तो इसे लोगों के रक्षा का जरिया माना जाता है, लेकिन आम दिनों में अगर ये दिए जाएं तो इन्हें फ्रीबीज कहा जाता है.

भारत में फ्रीबीज यानी मुफ्त चुनावी वादे का टर्म अमेरिका से आया है. अमेरिकी राजनीति में फ्रीबीज शब्द सबसे पहले 1920 के दशक में इस्तेमाल हुआ था. फ्रीबीज शब्द का मतलब होता है, कोई ऐसी चीज जो आपको मुफ्त में दी जाती है.

फ्रीबीज पर ‘सुप्रीम’ सुनवाई में क्या हुआ था, 5 प्वॉइंट्स…

  1. जनवरी 2022 में सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई. कोर्ट ने कहा कि इसे हम गंभीरता से ले रहे हैं. कोर्ट ने चुनाव आयोग से एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा. मुफ्त चुनावी वादे पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक पार्टियां ज्यादा वादे कर देती है.
  2. अगस्त 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने फ्रीबीज पर डिटेल सुनवाई शुरू की. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के ढील-ढाले रवैए पर नाराजगी जताई. कोर्ट ने हलफनामा दाखिल करने को लेकर फटकार लगाते हुए कहा कि आप गंभीर होते तो यह नौबत नहीं आती.
  3. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि शायद ही कोई पार्टी मुफ्त की योजनाओं के चुनावी हथकंडे छोड़ना चाहती है. हम चाहते हैं कि इस पर एक्सपर्ट पैनल बनाया जाए. चुनाव आयोग सभी संबंधित संस्थाओं से सुझाव लेकर इसके फॉर्मेट के बारे में बताएं. हम फ्रीबीज की परिभाषा तय करेंगे.
  4. फ्रीबीज पर सुनवाई के दौरान तत्कालीन चीफ जस्टिस ने कहा कि चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक पार्टियां अवैध को तुरंत वैध कर देती है. चुनाव में कोई मतदाताओं को सिंगापुर ले जाने का वादा कर दे तो उसे कैसे रोका जा सकता है? आप और डीएमके ने सुनवाई का विरोध किया था.
  5. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि आप इस पर सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुलाते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोक-कल्याण और रेवड़ी कल्चर में अंतर पहचानने की जरुरत है. इसलिए हम इस मामले को बड़ी बेंच में ट्रांसफर कर रहे हैं.

फ्रीबीज कैसे डाल रहा चुनाव में असर?
मुफ्त वादे चुनाव को प्रभावित करते हैं और राजनीतिक दलों को सत्ता तक पहुंचाने में मददगार भी साबित होते हैं. पिछले कुछ सालों से 5 मुफ्त घोषणाएं चुनाव में गेमचेंजर साबित हुईं. इनमें महिलाओं को मासिक भत्ता और मुफ्त बस यात्रा, फ्री बिजली स्कीम्स, मुफ्त अनाज योजना, किसान सम्मान निधि और मुफ्त एलपीजी गैस सिलेंडर प्रमुख हैं.

कर्नाटक में 5 गारंटी ने बिगाड़ा बीजेपी का गेम- हाल ही में कांग्रेस के 5 गारंटी ने कर्नाटक में बीजेपी का गेम बिगाड़ दिया है. कर्नाटक की 228 में से कांग्रेस को 135 सीटों पर जीत मिली, जबकि बीजेपी 116 से 65 पर सिमट गई.

लोकनीति-सीएसडीएस सर्वे के मुताबिक बेरोजगारी और गरीबी के साथ ही रिश्वतखोरी का मुद्दा चुनाव में हावी रहा. कांग्रेस ने इसको देखते हुए 5 गारंटी स्कीम की घोषणा कर दी. कांग्रेस ने इस 5 गारंटी को राहुल गांधी का वचन बताकर प्रचार किया.

कांग्रेस की 5 गारंटी में महिलाओं को 2000 रुपए मासिक भत्ता, युवाओं को बेरोजगारी भत्ता, घरों में 200 यूनिट तक फ्री बिजली जैसे अहम घोषणाएं शामिल हैं. कांग्रेस की तरह बीजेपी ने भी कई मुफ्त वादे का ऐलान किया था.

बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में हर परिवार को 3 एलपीजी सिलेंडर, आधा लीटर दूध फ्री में देने जैसी मुफ्त घोषणाएं की. हालांकि, यह ज्यादा प्रभावी नहीं हो पाया.

फ्रीबीज ने हिमाचल में भी हिला दी बीजेपी की सत्ता- हिमाचल में भी फ्री स्कीम्स ने बीजेपी को तगड़ा नुकसान पहुंचाया. पार्टी अध्यक्ष के गृह-राज्य में ही बीजेपी बुरी तरह हार गई. हिमाचल में ओल्ड पेंशन स्कीम और 5 लाख सरकारी नौकरी बड़ा मुद्दा बना.

सत्ता में आई कांग्रेस ने चुनाव से पहले महिलाओं को 1500 रुपए पेंशन देने की घोषणा की थी, जो कारगर साबित हुआ. हिमाचल में कांग्रेस ने 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की भी घोषणा की, जो गेमचेंजर का काम किया.

कांग्रेस की तरह बीजेपी ने भी फ्री स्कीम्स की कई घोषणाएं की. इनमें साल में 3 एलपीजी सिलेंडर मुफ्त, लड़कियों को स्कूटी और साइकिल देने की घोषणा प्रमुख थी.

इन राज्यों में भी फ्रीबीज ने जीत-हार में निभाया अहम रोल
कर्नाटक-हिमाचल ही नहीं, मुफ्त वादे ने कई चुनावों में जीत-हार तय करने में बड़ी भूमिका निभाई है. 2022 के यूपी चुनाव में बीजेपी ने कॉलेज जाने वाली लड़कियों को मुफ्त में स्कूटी और महिलाओं को साल में 2 गैस सिलेंडर देने का वादा किया था. चुनाव में जीत-हार तय करने में यह अहम कारक बना.

2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में मुफ्त कोरोना वैक्सीन बड़ा मुद्दा बन गया था. बीजेपी ने सरकार में आने पर सबको मुफ्त में वैक्सीन लगवाने की घोषणा की थी. यह मामला कोर्ट में भी गया, लेकिन कोर्ट ने घोषणा पर रोक से इनकार कर दिया.

बीजेपी को इस सबका बड़ा फायदा मिला और बिहार में दूसरी बड़ी पार्टी बन गई. उस वक्त जेडीयू के साथ सरकार बनाने में भी कामयाब हुई थी.

इसी तरह 2021 के बंगाल चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने जमकर मुफ्त योजनाओं की घोषणा की थी. ममता ने एससी- एसटी वर्ग को सालाना 12 हजार रुपए और निम्‍न वर्ग के लोगों को 6 हजार रुपए देने की घोषणा की थी. इसके अलावा तृणमूल ने घर पर ही राशन पहुंचाने का ऐलान किया था.

ममता बनर्जी ने फ्रीबीज के सहारे तीसरी बार सत्ता वापसी करने में कामयाब हुई.

बिहार, यूपी और बंगाल के अलावा पंजाब चुनाव (2022), दिल्ली चुनाव (2020) और तमिलनाडु चुनाव (2021) में भी फ्री स्कीम्स गेमचेंजर साबित हुआ. दिल्ली और पंजाब में आप को और तमिलनाडु में डीएमको को स्पष्ट बहुमत मिला.

फ्रीबीज तुरंत फायदेमंद, इसलिए वोटर्स होते हैं प्रभावित
ड्यूक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डैन एरीली ने फ्रीबीज पर विस्तार से लिखा है. एरीली के मुताबिक मुफ्त वादे कीमत से ज्यादा भावनाओं से जुड़ा हुआ होता है, इसलिए लोगों पर यह सीधा और तुरंत असर करता है.

एरीली आगे कहते हैं- मुफ्त वादे के बारे में सुनने के बाद लोगों के व्यवहार का पैटर्न बदल जाता है और उनका किसी एक पक्ष की ओर झुकाव बढ़ता है. एरीली इसके पक्ष में स्टार्टअप्स कंपनियों द्वारा मार्केंटिंग टूल के लिए दिए जाने वाले मुफ्त उपहार का भी उदाहरण देते हैं.

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक भारत में राजनीतिक दलों ने जब से व्यवसायिक रणनीतिकारों का सुझाव लेना शुरू किया है, तब से फ्रीबीज में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. भारत में अमूमन सभी दल अब चुनावी रणनीति तैयार करने के लिए व्यवसायिक रणनीतिकारों की मदद ले रहे हैं.

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत भट्टाचार्य एक इंटरव्यू में कहते हैं, ‘चुनाव से पहले मुफ्त वादों की घोषणा पर लगाम लगाना जरूरी है, लेकिन यह आसान नहीं है. वोटबैंक की वजह से पॉलिटिकिल पार्टियां रिस्क नहीं लेना चाहती है.’

जाते-जाते जानिए फ्री और वेलफेयर स्कीम्स में अंतर जानिए
1. फ्री स्कीम्स की घोषणा अमूमन चुनाव से पहले किया जाता है, जिससे वोट का फायदा हो. वहीं वेलफेयर स्कीम्स सरकार बनने के बाद लागू की जाती है.

2. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि आजीविका चलाने के लिए या आजीविका मिशन के तहत ट्रेनिंग देने के लिए लागू की गई स्कीम्स को फ्रीबीज नहीं कहा जा सकता है. कोर्ट ने मनरेगा का उदाहरण दिया था

3. वेलफेयर स्कीम्स लोगों के जीवन को बेहतर बनाती है. इससे रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा में मदद मिलती है. मिड-डे मिल को वेलफेयर स्कीम्स माना जाता है.

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