2024 के आम चुनाव 2004 की तरह साबित नहीं होंगे
- स्पीकअप – नतीजे कैमिस्ट्री व गणित से तय होंगे
कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस को लगने लगा है कि 2024 के चुनावों में 2004 का इतिहास दोहराया जा सकता है। 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने चुनाव लड़ा था, लेकिन शाइनिंग इंडिया का नारा वोटरों को लुभाने में नाकाम रहा। भाजपा 182 से 138 सीटों पर आ गई। कांग्रेस 118 से बढ़कर 145 सीटों तक जा पहुंची। वामदलों के 59 सांसदों की मदद से यूपीए ने गठबंधन सरकार बनाई।
लेकिन कांग्रेस का खुद का वोट-शेयर 2004 में कितना था? मात्र 26.53 प्रतिशत। 2019 में कांग्रेस को 52 सीटें मिली थीं और कांग्रेस के रणनीतिकार जानते हैं कि 2024 में इसमें मामूली इजाफा ही किया जा सकता है। ऐसे में यूपीए को सरकार बनाने के लिए गठबंधन सहयोगियों की खासी मदद की जरूरत होगी।
राहुल गांधी इस बात को समझते हैं कि सरकार बनाने के लिए उन्हें विपक्षी नेताओं को जगह देना होगी। जैसे कि ममता बनर्जी, जिनकी टीएमसी 2024 के चुनावों में दूसरी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में उभर सकती है। वैसी स्थिति में यूपीए-3 की सरकार टीएमसी के समर्थन बिना नहीं बन सकेगी, जैसे कि 2004 में सरकार वामदलों के समर्थन बिना नहीं बन सकती थी। लेकिन इसी बिंदु पर आकर 2004 और 2024 के बीच तुलनाएं समाप्त हो जाती हैं। अव्वल तो 2004 की तुलना में आज कांग्रेस बहुत कमजोर है।
2014 से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था, जब उसे लोकसभा चुनावों में सौ से कम सीटें मिली हों, लेकिन 2014 में वह 44 और 2019 में 52 सीटों पर सिमट गई थी। इससे पहले उसका न्यूनतम स्कोर 1999 में 114 सीटें था। दूसरे, नरेंद्र मोदी भी अटल बिहारी वाजपेयी नहीं हैं और 2024 की बीजेपी 2004 की बीजेपी नहीं है। उसने गठबंधन सहयोगियों को भले गंवा दिया हो, लेकिन 2019 में भाजपा ने अपना सर्वोच्च वोट-शेयर (37.4%) हासिल किया था।
2024 के चुनाव-परिणामों का निर्णय कैमिस्ट्री और गणित के तालमेल से होगा। मोदी इन चुनावों को प्रेसिडेंशियल-शैली में लड़ेंगे और चूंकि विपक्ष के पास कोई सर्वमान्य चेहरा नहीं है, इसलिए उनकी जीत की डगर आसान हो जाएगी। अलबत्ता 2019 की तुलना में मोदी का करिश्मा घटा है।
अगर विपक्ष ने चुनाव से पूर्व प्रधानमंत्री पद के लिए किसी चेहरे पर सहमति बना भी ली- मान लीजिए राहुल गांधी के नाम पर- तो यह भी मोदी के लिए फायदे का ही सौदा रहेगा। अगर मोदी और राहुल के बीच आमने-सामने का मुकाबला होता है तो इसमें किसी को संदेह नहीं कि किसकी जीत होगी।राज्यवार विश्लेषण बताता है कि 2019 में भाजपा को मिली 303 सीटें आठ राज्यों में उसके तूफानी प्रदर्शन का परिणाम थीं।
इन राज्यों में उसने प्रतिद्वंद्वी का सूपड़ा साफ कर दिया था, ये थे :
गुजरात (26/26), राजस्थान (24/25), उत्तराखंड (5/5), हिमाचल प्रदेश (4/4), दिल्ली (7/7), मध्य प्रदेश (28/29), कर्नाटक (25/28) और हरियाणा (10/10)। यानी अकेले इन आठ राज्यों में ही भाजपा ने 135 में से 129 सीटें जीत ली थीं।
2024 में लगता तो नहीं कि वह इस प्रदर्शन को दोहरा पाएगी, लेकिन उसे उम्मीद है कि इसकी भरपाई वह ओडिशा, असम, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में पहले से बेहतर प्रदर्शन से कर लेगी। फिर भी तीन ऐसे राज्य हैं, जो उसके सामने जटिल समस्या बने हुए हैं : पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और बिहार। इनके पास 130 सीटें हैं और वे आने वाली संसद के स्वरूप का निर्धारण कर सकते हैं। महाराष्ट्र और बिहार में भाजपा ने अपने दो बड़े गठबंधन सहयोगियों शिवसेना और जदयू को गंवा दिया है। पिछले चुनाव में इन दो दलों ने एनडीए के लिए 34 सीटों का योगदान दिया था।
2019 में भाजपा ने महाराष्ट्र में शिवसेना को 23 सीटें दी थीं, जिनमें से उसने 18 जीतीं। बिहार में उसने जदयू और लोजपा को 23 सीटें दी थीं। लेकिन 2024 में वह महाराष्ट्र और बिहार में पहले से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। महाराष्ट्र में भाजपा शिंदे सेना को 12 सीटें दे सकती है, लेकिन बिहार में उसका मुकाबला जदयू-राजद के मजबूत गठजोड़ से होगा। सम्भावना कम ही है कि वह 2019 में बिहार में जीती 17 सीटों से बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी।
सबसे बड़ी चुनौती पश्चिम बंगाल से मिलने वाली है। 2019 में बंगाल में भाजपा के लिए अपने द्वारा जीती गई 18 सीटों को बचाए रखना मुश्किल होगा। लेकिन 2024 के चुनावों की कुंजी एक बार फिर यूपी के पास होगी। 2014 में भाजपा ने वहां ऐतिहासिक 71 और 2019 में 62 सीटें जीती थीं। यानी नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं, यह बहुत कुछ योगी आदित्यनाथ पर निर्भर करने जा रहा है।
- 2019 में भाजपा को मिली 303 सीटें आठ राज्यों में उसके तूफानी प्रदर्शन का परिणाम थीं। लेकिन इस बार तीन ऐसे राज्य हैं, जो उसके सामने समस्या बने हुए हैं। सबसे बड़ी चुनौती बंगाल में है। सबसे महत्वपूर्ण राज्य एक बार फिर यूपी होगा।