सिकुड़ती झीलें नए संकट का खतरा ..?

साइंस जर्नल में प्रकाशित लगभग 2,000 झीलों के एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि 1992 से 2020 तक दुनिया की 53 प्रतिशत सबसे बड़ी झीलों में प्रतिवर्ष 19 से 24 गीगाटन पानी की गिरावट आई है, जो एक साल में संयुक्त राज्य अमरीका द्वारा उपयोग किए जाने वाले पानी की कुल मात्रा के बराबर है। यह गिरावट शुष्क और नम दोनों क्षेत्रों में आई है। अध्ययन में कहा गया है कि झीलों के पानी के रुझानों की सटीक ट्रैकिंग और पानी के नुकसान में योगदान करने वाले कारकों की पहचान से 2 अरब लोगों को प्रभावित करने वाली जल प्रबंधन रणनीतियों का मार्गदर्शन करने में मदद मिल सकती है।

दरअसल ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण जलाशयों के सूखने से कृषि और पीने योग्य पानी की आपूर्ति पर दबाव बढ़ रहा है, पौधों और मछलियों के आवास खतरे में पड़ रहे हैं, जलविद्युत उत्पादन क्षमता कम हो रही है और समुद्री मनोरंजन और पर्यटन पर खतरा मंडराने लगा है। झीलों के सूखने के महत्त्वपूर्ण आर्थिक परिणाम हो सकते हैं। कम पानी की उपलब्धता कृषि उत्पादकता को प्रभावित करती है, जिससे फसल खराब होती है और सिंचाई लागत में वृद्धि होती है। जब झीलें सूखती हैं तो उपलब्ध जल संसाधन कम हो जाते हैं, जिससे वैकल्पिक जल स्रोतों पर दबाव बढ़ जाता है और संभावित रूप से जल आवंटन को लेकर विवाद भी पैदा होते हैं। दुनिया भर में सिकुड़ती झीलों से न केवल जैव विविधता को खतरा है बल्कि मीठे पानी के इन स्रोतों पर निर्भर समुदाय भी जोखिम में हैं। जलवायु परिवर्तन झीलों के सूखने में अहम कारक है। झीलों का सूखना एक गंभीर वैश्विक चिंता है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिए स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोगात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी झीलों की रक्षा करें, न केवल अपने लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी।

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