जलवायु परिवर्तन: समझदारी निवेश करने में, न कि कीमत चुकाने में
जब तक कार्बन वातावरण में घुलता जाएगा, ग्रह का गर्म होना जारी रहेगा
जलवायु परिवर्तन: समझदारी निवेश करने में, न कि कीमत चुकाने में
हम सब इन दिनों ‘विकार्बनीकरण’ की ‘कीमत’ पर चर्चा करते रहते हैं। देखा जाए तो इस समस्या को हल करने में खर्च किया गया पैसा व समय ‘निवेश’ है।
रेस्तरां में खाना खाने का बिल चुकाना उसकी कीमत अदा करना है। खाना बनाना सीखने के लिए प्रशिक्षण लेना निवेश है। इसी प्रकार, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से पीड़ित होना उसकी कीमत चुकाना है लेकिन जलवायु के खराब परिणामों से निपटने के लिए पैसा खर्च करना निवेश है। स्थितियों में इस अंतर के कुछ मायने हैं, जो अमरीका की बहुराष्ट्रीय तेल व गैस कंपनी एक्सॉन मोबिल ने अनजाने ही याद दिला दिए हैं। गत सप्ताह दर्ज की गई नियामक फाइलिंग में तेल कंपनी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इसे जीवाश्म ईंधन व्यवसाय को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की जो कीमत चुकानी पड़ेगी, उसका विस्तृत हिसाब-किताब देने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के 2050 के लिए नेट जीरो उत्सर्जन (आइईए एनजेडई) लक्ष्य अवास्तविक हैं। यह सही भी है, क्योंकि विश्व नेट जीरो प्रतिबद्धता के मार्ग पर आगे बढ़ता नहीं दिखाई दे रहा। एक्सॉन का कहना है, ‘ऐसी संभावना नजर नहीं आती कि समाज ‘आइईए के एनजेडई’ परिदृश्य के लिए जीवन जीने के वैश्विक मानकों के साथ कोई समझौता करेगा।
आइईए का नेट जीरो उत्सर्जन परिदृश्य दरअसल दूर की कौड़ी है। पर बहुत से अंशधारक ‘स्ट्रेस टेस्ट’ के तौर पर ऐसे विस्तृत ब्योरे देखना चाहते हैं। इनमें से आधे अंशधारकों ने 2022 में नेट जीरो लेखांकन के पक्ष में वोट दिया था। संभवत: उन्हें चिंता है कि जो आज का अतिमहत्त्वाकांक्षी लक्ष्य है, वह इस पीढ़ी में भी शायद ही रहे। और हो सकता है वे थोड़े खिन्न हों कि एक्सॉन ने जो जानकारी साझा की है, वह प्रभावी है और अस्पष्ट चार्ट के जरिये भावी नकद प्रवाह को दर्शाती है। पर वैश्विक जीवन मानकों का तर्क देकर एक्सॉन ने इतना संकेत देने की कोशिश जरूर की है कि अगले तीन दशकों में मानवता के सामने कैसी परिस्थितियां होंगी। विडम्बना ही है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर वर्षों से संदेह पैदा करने वाली एक्सॉन अब इसे लेकर हमारे प्रोत्साहन को कम कर रही है। ज्यादा महत्त्वपूर्ण यह है कि कंपनी की टिप्पणी विकार्बनीकरण को लेकर जनमानस की सोच को दर्शाती है।
हो सकता है लोग जीवाश्म ईंधन जलाना बंद करने के लिए जरूरी और ज्यादा खर्च से जी चुराएं। पर यह तस्वीर का केवल एक पहलू है। अगर समाज वैश्विक जीवनशैली के मानकों से समझौता करना नहीं स्वीकारता है तो इसका अर्थ होगा जलवायु परिवर्तन की अनदेखी के परिणाम भुगतना, जैसे बाढ़, सामूहिक पलायन, खाद्य आपूर्ति घटना और अन्य भयावह व अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाले प्रभावों का सामना करना। एक्सॉन की समाज द्वारा ‘जीवन मानकों’ से समझौता न करने के प्रति दी गई चेतावनी इस तथ्य पर भी प्रकाश डालती है कि जलवायु परिवर्तन को लेकर अकर्मण्य बने रहना हो सकता है आपको जीवन की त्वरित सुविधाएं और आराम दे दे पर दीर्घावधि में यह जीवन की गुणवत्ता अवश्य कम कर देगा। एक्सॉन प्रवक्ता के शब्दों में ‘ऊर्जा गरीबी’ स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक विकास सबको प्रभावित करती है। जीवाश्म ईंधन को जलाने से होने वाले नुकसान झेलना मुश्किल होता जा रहा है। इसका एक भयावह उदाहरण है 2019-20 में ऑस्ट्रेलियाई जंगलों में लगी आग, जिसमें कैलिफोर्निया के करीब आधे क्षेत्रफल के बराबर हिस्सा जल गया था। इससे वहां के बच्चों को कुछ ऐसी स्वास्थ्य समस्याएं हो गईं जो उन्हें जीवन भर तकलीफ देंगी। उस वक्त की कई गर्भवती महिलाओं को आग का धुआं श्वास के साथ अंदर लेने के चलते समय पूर्व प्रसव हुआ। ‘साइंस ऑफ द टोटल इनवायरनमेंट’ पत्रिका में छपे एक अध्ययन के अनुसार, जंगलों में आग लगने से खराब हुई हवा के चलते अमरीका में ही हर साल 4000 लोगों की मृत्यु समय पूर्व हो जाती है और 36 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हो जाता है। एल्बर्टा, कनाडा में पहले से ही जंगलों में आग के सीजन का जोखिम सामने है और पांच माह तक जंगलों में आग की आशंका के चलते उठने वाले धुएं से पूर्वी अमरीका तक की हवा प्रदूषित होने की आशंका है।
जब तक कार्बन वातावरण में घुलता जाएगा, ग्रह का गर्म होना जारी रहेगा; जंगलों में आग की ये घटनाएं और ज्यादा होंगी व अधिक विनाशकारी हाेंगी। इससे आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वास्थ्य संबंधी खतरे बढ़ते जाएंगे। क्या तब यही समाज वाकई में इस प्रकार की कीमत चुकाने को तैयार होगा, जो अभी जीवाश्म ईंधन त्यागने से होने वाली मामूली-सी परेशानी उठाने के लिए तैयार नहीं है? विश्व इस वर्ष के अंत तक पश्चिमी प्रशांत सागर से उठने वाले अल नीनो प्रभाव के लिए तैयार दिख रहा है। मौसम के ये प्रतिरूप ही दुनिया का तापमान बढ़ाने, ऑस्ट्रेलियाई जंगलों में आग, अफ्रीका में अकाल और कोरल रीफ विनाश का कारण बनते हैं। आने वाले दशकों में ग्लोबल वार्मिंग के कारण अल नीनो प्रभाव और तीक्ष्ण हो सकते हैं। जर्नल ‘साइंस’ में छपे एक और अध्ययन के अनुसार, अकेले अल नीनो प्रभाव के कारण ही अर्थव्यवस्था में अगली सदी तक 84 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होने की आशंका है।