सेव और जीरामन में मगन रहने वाले इंदौरी इन दिनों मां अहिल्या को याद कर इंदौर गौरव उत्सव मना रहे हैं। उत्सव में इंदौरियों की सहभागिता कम और प्रशासन की सक्रियता ज्यादा नजर आती है। मां अहिल्या को उनके कुशल प्रशासन के लिए याद किया जाता है। पुरुष केंद्रीत भारतीय सामाजिक व्यवस्था में उन्होंने उस दौर में नेतृत्व किया, जब महिलाओं पर बंदिशें ज्यादा थीं। सवा दो सौ साल बीतने के बाद भी हालात में उतना अंतर नहीं दिखता। अब इंदौरी सरकार (नगर निगम) की प्रशासनिक कमान एक महिला हर्षिका सिंह के हाथ है। नगर सरकार में महिला पार्षदों की संख्या भी बराबर है, लेकिन पति ही उन्हें पार्षद मानने को तैयार नहीं। स्वयं को ‘माननीय’ मानने की मृगतृष्णा में घूम रहे पार्षद पतियों को निगम की बैठक में निगमायुक्त ने आइना दिखा दिया। जो नेता स्वयं अपने घर की महिलाओं को समानता का अधिकार नहीं दे रहे, वे अन्य महिलाओं की कितनी चिंता करेंगे यह विचारणीय है।
… और दो दिन में हो गया ‘खेल’
इंदौर गौरव उत्सव का फरमान ‘ऊपर’ से आया तो मातहत आयोजन की सफलता में जुट गए। इसमें खेल भी शामिल थे। संगठनों को बुलाकर बता दिया कि खेल कराओ। अब दो मिनट की मैगी की तरह दो दिन की तैयारी में आयोजन कराना आसान नहीं, लेकिन साहब ने कहा तो पालन करना ही था। खैर, खेल वाले भी नियमों के साथ खेलने में उस्ताद होते हैं। शहरभर में स्पर्धाओं की बाढ़ आ गई। कुछ ने मैदान में मुकाबले कराए तो कुछ ने कागजों में ही करवा दिए। समझदार जानते हैं, सरकारी मामलों में ‘कागज’ का ही मूल्य ज्यादा होता है। उत्साह इसलिए भी था कि आयोजन का पारितोषिक भी मिलता है। अब अर्थ बिना सब व्यर्थ की तर्ज पर यदि मेहनत का मानदेय न मिले तो पीड़ा लाजमी है। आयोजन से पहले बैठक में कइयों ने दुख जता दिया कि अब तक पिछला मामला ही अटका है।