भाजपा कार्यकर्ता नाराज क्यों है ?
पिछले एक माह में दतिया, शिवपुरी, मुरैना, भिंड, छतरपुर, निवाड़ी, टीकमगढ़ जिले की तहसीलों में जनता से संवाद के दौरान एक अजीब सी बेरुखी सत्ताधारी दल में देखी है। जनसंवाद में प्रमुख दलों के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता भी शामिल होते हैं। चर्चा के दौरान कांग्रेस के कार्यकर्ता कुछ आरोप लगाते तो सामने बैठे भाजपा के कार्यकर्ता न तो उसका कोई काउंटर करते न ही उत्साह से अपनी बात रखते। कई बार तो देखने को मिला की जिसका तर्क के साथ आराम से काट हो सकती थी वह तक भाजपा के स्थानीय नेता नहीं बोले। कई नेताओें ने इसकी वजह बताई कि कार्यकर्ताओं में लगभग हर सीट पर स्थानीय जनप्रतिनिधि के खिलाफ गुस्सा है। यह गुस्सा क्यों ? बोले- दो चुनाव में तो पूछ परख की लेकिन पिछले आठ साल से बुरी तरह से झिड़क सा दिया है। हर कांट्रेक्ट नेताओं ने अपने परिवार को ही दिलाया है, यहां तक कि छोटे-छोटे काम तक नहीं किए। वैसे यह पार्टी के लिए अलार्मिंग है। यदि सेना ही नहीं रहेगी तो अकेला राजा रण विजय नहीं कर सकता।
पिछले दिनों केंद्रीय कृषि मंत्री ने अपनी बेटी की आलीशान शादी की। शादी में इतने लोगों को आमंत्रित किया गया था कि उसके लिए कोई मैरिज गार्डन कहां पूरा पड़ता सो पूरा का पूरा मेला ग्राउंड ही सजा दिया। भीड़ देखकर लग रहा था कि पूरा का पूरा चंबल ही शादी में शरीक हो रहा है। ऐसा नहीं की भीड़ सिर्फ आम लोगों की हो, खास भी खूब थे- सात राज्यों के मुख्यमंत्री, मोदी केबिनेट के कई वरिष्ठ मंत्री, प्रदेश का पूरा मंत्रिमंडल, बालीवुड की हस्तियों का मजमा लगा था। शादी को इतने बड़े पैमाने पर करने को लेकर सबके अपने-अपने तर्क हैं। अब कोई इसे केंद्रीय मंत्री के आगामी लोकसभा चुनाव ग्वालियर से लड़ने से जोड़ रहा है तो कोई यह कह रहा है कि शादी के बहाने जैसे केंद्रीय मंत्री ने बताया है कि चंबल और केंद्रीय भाजपा में तो हमारी ही चलती है। अब किसे बताया है यह कोई छिपा थोड़ी है। हाथ कंगन तो आरसी क्या ।
गड्ढों को बंद करने पर चले अभियान
पूरे देश में मप्र यदि कृषि उत्पादन के लिए पहचाना जाता है तो एक चीज में बदनाम भी है। खेतों में किसानों द्वारा किए गये बोरवेल में बच्चों के गिरने की सर्वाधिक घटनाएं पूरे देश में मप्र में ही होती हैं। इसका एक वास्तविक कारण है कि मप्र में अभी भी सिंचाई के लिए किसान बोरवेल पर ही निर्भर है। किसान एक बोर फेल होने पर दो या तीन बोर करवाता जिससे पर्याप्त पानी हो जाए। बाकी के जिन बोर में पानी नहीं निकलता उसे अस्थाई तौर पर पत्थर या झाड़ियों से इस उम्मीद से ढंक दिया जाता है कि शायद पानी निकल आए। लापरवाही और लालच के यही बोर मासूमों की जिंदगी को निगल रहे हैं। एक घटना होती है तो तीन-चार दिन या जब तक रेस्क्यू आपरेशन पूरा न हो जाए तब तक जिले का पूरा का पूरा तंत्र व्यस्त हो जाता है। जिला पंचायत की अगुवाई में यदि सभी सरपंच मिलकर अपनी पंचायत में अभियान चला दें तो भविष्य में घटनाओं को रोका जा सकता है।
अफसरों के पास नवाचार क्या ?
शहर में कलेक्टर, एसपी और निगमायुक्त का प्रोबेशन पीरियड खत्म हो चुका है। किसी को सौ दिन से अधिक हो चुके हैं तो किसी को होने वाले हैं। अभी तक के इनके कार्यकाल को देखें तो शहर में कोई बड़ा नवाचार या मूवमेंट दिखाई नहीं दिया। स्वच्छता को लेकर युवा निगमायुक्त जरूर कसरत कर रहे हैं लेकिन उनकी टीम हमेशा की तरह उनींदी सी है। टीम में जोश भरने के लिए उन्हें जतन करने होंगे। पुलिस कप्तान की तरफ से भी कोई खास पहल दिखाई नहीं पड़ती। मेरा सुझाव है कि ट्रैफिक पर ही मेहनत कर लें तो इस शहर की आधी समस्या सुलझ जाए। यहां के लोग और ट्रैफिक पुलिस दोनों ही लेफ्ट टर्न का कांसेप्ट नहीं जानते, उन्हें वह सिखा दो। बचे कलेक्टर तो वह तो खुद ही स्वीकारते हैं कि मैंने पिछले तीन माह में मैंने किया ही क्या है सिर्फ निरीक्षण तो ही करता रहता हूं। बताने के लिए मेरे पास कुछ है ही नहीं।