ग्वालियर/ श्योपुर : मानकों को ताक पर रख शहर और आसपाास खुले निजी स्कूल ..?
मानकों को ताक पर रख शहर और आसपाास खुले 134 निजी स्कूल
-हर वर्ष 15 हजार रुपए ले रहे शुल्क
-न बच्चों की सुरक्षा के इंतजाम और न मापदंड पूरे
-गलियों में खुले स्कूलों का बगैर भौतिक परीक्षण किए हो गया रिन्यूवल
मानकों को ताक पर रख शहर और आसपाास खुले 134 निजी स्कूल
श्योपुर। एक जुलाई से प्राथमिक स्कूल खुल जाएंगे। शहर और आसपास पहली से पांचवी कक्षा तक पढ़ाई कराने के लिए 134 निजी स्कूल खुले हैं। जबकि 50 से ज्यादा सरकारी स्कूल हैं। हर वर्ष 15 हजार रुपए तक वार्षिक शुल्क वसूल रहे शहरी क्षेत्र के निजी स्कूल दो, तीन, चार कमरों में बगैर मापदंड पूरे किए संचालित हैं। अधिकांश स्कूलों में बच्चों के खेलने के लिए मैदान नहीं है। अगर कोई आकस्मिक घटना हो जाए तो फायर ब्रिगेड जाने के लिए चौड़ी सड़क भी नहीं है। गलियों में संचालित कुछ प्राइमरी स्कूलों तक चार पहिया वाहन भी मुश्किल से पहुंचते हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने मानकों को ताक पर रख चल रहे इन स्कूलों की मान्यता का रिन्युवल बगैर भौतिक परीक्षण किए सिर्फ दस्तावेजों के आधार पर कर दिया है। जबकि नियमानुसार प्रत्येक स्कूल में खुली जगह, खेल मैदान, सुगम आवागमन आदि शर्तें पूरी करना अनिवार्य है।
निजी प्रकाशकों की पुस्तकें खरीदने का दबाव
पहली कक्षा से लेकर पांचवी कक्षा तक एमपी बोर्ड, सीबीएसई बोर्ड पाठ्यक्रम का संचालन कर रहे हैं। निजी स्कूलों में शिक्षानीति द्वारा निर्धारित किताबों के अलावा तीन से चार किताबें निजी प्रकाशकों की भी खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है। अभिभावकों को किताबें खरीदने के लिए सूचना भी भिजवाई जा रही है।
पहली कक्षा से लेकर पांचवी कक्षा तक एमपी बोर्ड, सीबीएसई बोर्ड पाठ्यक्रम का संचालन कर रहे हैं। निजी स्कूलों में शिक्षानीति द्वारा निर्धारित किताबों के अलावा तीन से चार किताबें निजी प्रकाशकों की भी खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है। अभिभावकों को किताबें खरीदने के लिए सूचना भी भिजवाई जा रही है।
कॉपियों से भी कमाई
कुछ स्कूल संचालक विशेष कवर वाली कॉपियां खरीदने का भी दबाव बना रहे हैं। इन कॉपियों का मूल्य सामान्य कॉपियों से 20 फीसदी तक ज्यादा है।
कुछ स्कूल संचालक विशेष कवर वाली कॉपियां खरीदने का भी दबाव बना रहे हैं। इन कॉपियों का मूल्य सामान्य कॉपियों से 20 फीसदी तक ज्यादा है।
परिवहन की गारंटी नहीं
कुछ बड़े स्कूलों को छोड़कर अधिकतर स्कूल संचालक अभिभावकों को खुद की सुरक्षा पर ही बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने की बात कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। ऑटो और वेन आदि से बच्चों को लाने और ले जाने को लेकर रास्ते की सुरक्षा गारंटी स्कूल नहीं दे रहे।
कुछ बड़े स्कूलों को छोड़कर अधिकतर स्कूल संचालक अभिभावकों को खुद की सुरक्षा पर ही बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने की बात कहकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। ऑटो और वेन आदि से बच्चों को लाने और ले जाने को लेकर रास्ते की सुरक्षा गारंटी स्कूल नहीं दे रहे।
ये नियम जिनका नहीं रखा गया ध्यान
–स्कूलों का संचालन सेवा कार्य के अधीन आता है। जबकि स्कूल संचालक अभिभावकों से मोटी फीस वसूलकर दड़बों की तरह क्लास बनाकर बच्चों को पढ़ाने का दिखावा कर रहे हैं।
-प्राइमरी और मिडल स्कूल के लिए कम से कम 2 हजार वर्गफीट खुली भूमि होना अनिवार्य है। सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूलों के लिए 6 हजार वर्ग फीट खुली भूमि रखने का नियम है।
-कक्षा-1 से कक्षा-8 तक मान्यता देने का अधिकार डीपीसी के पास है और सबसे ज्यादा गड़बड़ी आठवीं कक्षा तक के स्कूलों में ही है।
–स्कूलों का संचालन सेवा कार्य के अधीन आता है। जबकि स्कूल संचालक अभिभावकों से मोटी फीस वसूलकर दड़बों की तरह क्लास बनाकर बच्चों को पढ़ाने का दिखावा कर रहे हैं।
-प्राइमरी और मिडल स्कूल के लिए कम से कम 2 हजार वर्गफीट खुली भूमि होना अनिवार्य है। सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूलों के लिए 6 हजार वर्ग फीट खुली भूमि रखने का नियम है।
-कक्षा-1 से कक्षा-8 तक मान्यता देने का अधिकार डीपीसी के पास है और सबसे ज्यादा गड़बड़ी आठवीं कक्षा तक के स्कूलों में ही है।
इन कमियों पर नहीं ध्यान
–नगर पालिका क्षेत्र में प्राइमरी और मिडल स्कूल दस फीट तक की गलियों में संचालित हैं।
-स्कूलों के हिसाब से इमारतों का निर्माण नहीं कराया गया है।
–नगर पालिका क्षेत्र में प्राइमरी और मिडल स्कूल दस फीट तक की गलियों में संचालित हैं।
-स्कूलों के हिसाब से इमारतों का निर्माण नहीं कराया गया है।