आखिर क्यों हो रहा है यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध?
आखिर क्यों हो रहा है यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध? जानें वजह …
बीजेपी के चुनावी एजेंडे में कई दशकों से यूनिफॉर्म सिविल कोड शामिल है. बीते साल राज्यसभा में बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने इसे लेकर प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया था.
ये बयान सामने आने के साथ ही कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने इसे लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर दिया गया बयान बताया है. एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी से लेकर कई इस्लामी इदारों ने यूसीसी पर एतराज जताया है. इन सबके बीच अहम सवाल ये है कि आखिर यूनिफॉर्म सिविल कोड के विरोध का कारण क्या है?
क्यों हो रहा है यूसीसी का विरोध?
मुस्लिम समुदाय यूसीसी को धार्मिक मामलों में दखल के तौर पर देखते हैं. दरअसल, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तहत शरीयत के आधार पर मुस्लिमों के लिए कानून तय होते हैं. तीन तलाक कानून बनाने पर बरेलवी मसलक के उलमा ने नाखुशी जाहिर करते हुए कहा था कि मजहबी मामलत में दुनियावी दखलदांजी अच्छी नहीं होती है. दुनियावी कानून में सुधार होते रहते हैं पर शरीयत में तब्दीली मुमकिन नहीं.
यूसीसी का विरोध करने वाले मुस्लिम धर्मगुरुओं का मानना है कि यूसीसी की वजह से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का वजूद खतरे में पड़ जाएगा. जो सीधे तौर पर मुस्लिमों के अधिकारों का हनन होगा. मुस्लिम धर्मगुरुओं का कहना है कि शरीयत में महिलाओं को संरक्षण मिला हुआ है. इसके लिए अलग से किसी कानून को बनाए जाने की जरूरत नहीं है.
मुस्लिम धर्मगुरुओं को यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिए मुसलमानों पर हिंदू रीति-रिवाज थोपने की कोशिश किए जाने का शक है. इनका मानना है कि यूसीसी लागू होने के बाद हर मजहब पर हिंदू रीति-रिवाजों को थोपने की कोशिश की जाएगी.
बीजेपी के चुनावी एजेंडा से बाहर नहीं है यूसीसी
राम मंदिर और आर्टिकल 370 की तरह ही यूनिफॉर्म सिविल कोड भी हमेशा से ही बीजेपी के चुनावी एजेंडा में शामिल रहा है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान बीजेपी ने खुलकर अपने घोषणापत्र में इसका जिक्र किया. 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही बीजेपी नेताओं ने यूसीसी को लेकर लगातार बयान दिए हैं.
यूसीसी की ओर कब बढ़े बीजेपी के कदम?
यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर सबसे बड़ा कदम 9 दिसंबर 2022 को उठाया गया. राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर बिल के तौर पर ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड इन इंडिया 2020’ बिल को पेश किया गया. बीजेपी सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने ये बिल सदन के पटल पर रखा. इसको लेकर हुई वोटिंग में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के कई सांसदों ने वोट नहीं डाला था.
कांग्रेस और टीएमसी जैसे दलों ने यूसीसी का विरोध करने के बावजूद इसे लेकर होकर वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. इस वजह से यूसीसी के प्राइवेट मेंबर बिल के पक्ष में 63 और विरोध में 23 वोट पड़े थे. जिसके साथ ये प्रस्ताव पारित हो गया. इसके बाद से ही बीजेपी शासित कई राज्यों में यूसीसी को लागू करने को लेकर जोर-आजमाइश तेज हो गई. हालांकि, अल्पसंख्यक समुदाय इसका विरोध कर रहे हैं.