धार्मिक कानूनों को अंग्रेजों तक ने नहीं छुआ ..! फिर भी मोदी सरकार क्यों अड़ी है?

धार्मिक कानूनों को अंग्रेजों तक ने नहीं छुआ:अंबेडकर को इस्तीफा देना पड़ा; फिर भी मोदी सरकार क्यों अड़ी है?

अक्टूबर 1840, जब भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का राज था। एक रिपोर्ट में सभी भारतीयों के लिए एक कानून बनाने की बात हुई, लेकिन अलग-अलग धर्मों के पर्सनल लॉ को इससे बाहर रखा गया। उस वक्त पहली बार यूनिफॉर्म सिविल कोड की चर्चा हुई, लेकिन अंग्रेजों ने इसे लागू नहीं किया।

अगस्त 1947 में भारत आजाद हुआ। अंबेडकर नहीं चाहते थे कि सभी धर्मों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हों। संविधान सभा में UCC पर लंबी बहस हुई। इसे डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स में डाल दिया गया, लेकिन कानून नहीं बनाया जा सका।

साल 1967 के लोकसभा चुनाव। भारतीय जनसंघ ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में पहली बार यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का वादा किया। 1980 में BJP बनी तो उसने भी UCC को अपना प्रमुख एजेंडा बताया। कई बार BJP की सरकारें बनीं, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका।

देश में 9 साल से पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार है, फिर भी यूनिफॉर्म सिविल कोड पर कोई प्रगति नहीं हुई थी, लेकिन कुछ दिनों से सरकार बेहद आक्रामक है। लॉ कमीशन का सुझाव मांगना, PM मोदी का बयान और संसदीय स्थायी समिति की बैठक इसकी बानगी है।

यूनिफॉर्म सिविल कोड की पूरी कहानी जानेंगे। जब अंग्रेजों ने इसे नहीं छुआ, अंबेडकर को पीछे हटना पड़ा तो फिर मोदी सरकार इसे लागू करने पर क्यों अड़ी है?

संविधान सभा की बहस में UCC के विरोध में तर्क

  • AIML के सदस्य मोहम्मद इस्माइल ने कहा, ‘समुदायों में पर्सनल लॉ का होना और उनका पालन करना उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का मसला है। ये उनका मौलिक अधिकार है। अगर सरकार धर्म और संस्कृति से जुड़े मसलों पर कानून बनाती है तो यह मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप करने जैसा होगा।’
  • पश्चिम बंगाल के सदस्य नजीरुद्दीन अहमद ने कहा, ‘अभी सही समय नहीं है। इन मामलों में समय के साथ धीरे-धीरे हस्तक्षेप होना चाहिए। मुझे इस बात का कोई संदेह नहीं है कि एक समय ऐसा आएगा जब देश में समान नागरिक कानून होंगे।’
  • महबूब बेग ने कहा, ‘पर्सनल लॉ कुछ धार्मिक समूहों के लिए दिल के बहुत करीब है। जहां तक मुसलमानों का सवाल है, उनके अपने इस्लाम आधारित उत्तराधिकार, विरासत, विवाह और तलाक के कानून हैं।’
  • हसरत मोहानी ने कहा, ‘अगर कोई सोचता है कि वो मुसलमानों के निजी कानूनों में हस्तक्षेप करेगा तो मैं उससे कहना चाहूंगा कि नतीजा बहुत ही भयानक होगा।’

संविधान सभा की बहस में UCC के समर्थन में तर्क

  • केएम मुंशी ने कहा, ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड देश की एकता को कायम रखने और संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखने के लिए जरूरी है। विरासत, विवाह आदि का पर्सनल लॉ से भला क्या लेना-देना है। इस कानून से जितना मुस्लिम प्रभावित होंगे, उतना ही ये हिंदुओं को भी प्रभावित करेगा। ये प्रावधान मौलिक अधिकारों के खिलाफ नहीं है, बल्कि ये संविधान में प्रस्तावित मौलिक अधिकारों की रक्षा का प्रावधान है, खास तौर पर इससे लैंगिक समानता आएगी।’
  • अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर ने कहा, ‘मुस्लिम सदस्य कहते हैं कि समान नागरिक संहिता मुसलमान नागरिकों के बीच अविश्वास और कटुता लाएगी। मैं कहता हूं इसके विपरीत होगा। समान नागरिक संहिता समुदायों के बीच एकता का कारण बन सकती है।’
  • डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा, ‘इसमें कोई नई बात नहीं है। देश में विवाह, विरासत आदि मसलों को छोड़ कर पहले ही कई समान नागरिक संहिताएं हैं। मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि धर्म कैसे इतनी जगह घेर सकता है कि सारा जीवन ही ढंक ले और विधायी नियमों को धरातल पर उतरने से रोके। आखिर हमें ये आजादी किसलिए मिली है? हमें ये आजादी हमारी सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए मिली है।’
  • अंबेडकर ने बहस समाप्त करते हुए निष्कर्ष में कहा, ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड वैकल्पिक व्यवस्था है। ये अपने चरित्र के आधार पर नीति निदेशक सिद्धांत होगा और इसी वजह से राज्य तत्काल यह प्रावधान लागू करने के लिए बाध्य नहीं है। राज्य जब उचित समझें तब इसे लागू कर सकते हैं।’

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