15 साल में भारत में कैसे घटे 41.5 करोड़ गरीब

15 साल में भारत में कैसे घटे 41.5 करोड़ गरीब, पाकिस्तान-चीन जैसे देशों का क्या हाल? जानें

भारत में पिछले 15 साल में 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। हिन्दुस्तान उन 25 देशों में शामिल हैं जहां बीते 15 साल में गरीबी आधी हुई है। ये बातें मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी रिपोर्ट में सामने आई हैं। अंतरराष्ट्रीय संस्था ने मंगलवार को वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के नवीनतम अपडेट जारी किए।

आइये जानते हैं, संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में क्या है? रिपोर्ट में एमपीआई किसे कहा गया है? गरीबी मापने के पैमाने क्या हैं? रिपोर्ट में भारत के बारे में क्या कहा गया है? भारत के अलावा अन्य देशों की स्थिति क्या है? भारत के पड़ोसी देशों की इस रिपोर्ट में क्या स्थिति है?

पहले जानते हैं क्या है संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट? 
यूएन ने दुनियाभर के देशों में मौजूद गरीबी की स्थिति को लेकर ग्लोबल मल्टीडायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स 2023 जारी किया है। इसका शीर्षक ‘अनस्टॉकिंग ग्लोबल पावर्टी: डाटा फॉर हाई इम्पैक्ट एक्शन’ रखा गया है। रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के मानव विकास रिपोर्ट कार्यालय (एचडीआरओ) और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) द्वारा संयुक्त रूप से तैयार किया गया है। यह रिपोर्ट वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक के साथ साल 2010 से जारी की जा रही है।
रिपोर्ट में एमपीआई किसे कहा गया है?
दरअसल, एमपीआई गरीबी से जुड़े अभावों को बताता है। ये आभाव हैं स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर जो किसी व्यक्ति के जीवन और सेहत को सीधे प्रभावित करते हैं। वैश्विक एमपीआई एकमात्र गिनती आधारित सूचकांक है जो 100 से अधिक देशों और 1,200 प्रांतों/शहरों में व्याप्त अत्यधिक गरीबी के स्तर को पता लगाता है।

वैश्विक एमपीआई ने 110 विकासशील देशों से 6.1 अरब लोगों का डेटा संकलित किया है, जो विकासशील देशों की 92 प्रतिशत आबादी है। इसमें 22 निम्न आय वाले देश, 85 मध्यम आय वाले देश और तीन उच्च आय वाले देश शामिल हैं। रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में कितनी गरीबी है और गरीब लोगों के जीवन, उनके अभावों और उनकी गरीबी कितनी भयंकर है।

गरीबी मापने के पैमाने क्या हैं? 
वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक किसी भी व्यक्ति के अभावों को मापता है। इसके पैमानों में स्वास्थ्य, शिक्षा और रहन-सहन को शामिल किया गया है। स्वास्थ्य में बाल मृत्यु और पोषण, शिक्षा में स्कूल के वर्ष और स्कूल में उपस्थिति और जीवन स्तर में खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, बिजली और संपत्ति को रखा गया है।

एमपीआई को समझने के लिए यूएन ने अपनी रिपोर्ट में दीपा नाम की महिला का उदाहरण दिया है। दीपा बांग्लादेश के रंगमती के पहाड़ी इलाकों में एक छोटे से द्वीप समुदाय में रहती हैं। वह देश के सबसे बड़े जातीय समूह चकमा जनजाति से हैं। वह उन एक लाख लोगों में से हैं, जिन्होंने 1960 में कपताई बांध के निर्माण के दौरान अपनी जमीन और घर खो दिए थे। उनके घर का फर्श और दीवारें मिट्टी से बनी हैं। घर के सामने वाले हिस्से में एक छोटी सी दुकान है जिससे वो प्रतिदिन लगभग 80 रुपये कमाती हैं।

दुकान के अलावा, दीपा की नाव से भी कुछ आमदनी होती है। दीपा और उनके परिवार के सदस्य पोषण से वंचित हैं। घर में बिजली है लेकिन सौ लोगों के समुदाय के घरों में पाइप से पानी और शौचालय की सुविधा नहीं है। पानी के लिए दीपा को एक स्कूल तक जाना पड़ता है। यह सफर कठिन होता जा रहा है क्योंकि वह 70 वर्ष की हो रही हैं और गठिया से पीड़ित हैं। दीपा खाना पकाने के लिए ठोस ईंधन जुटाने में भी काफी समय बिताती हैं। दीपा के पास मोबाइल फोन जैसी कोई बुनियादी संपत्ति नहीं है।

वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक के मुताबिक दीपा गरीब हैं। उसका अभाव स्कोर 44.4 प्रतिशत (1/6 + 5 × 1/18 = 8/18) है। गैर-गरीब होने के लिए उसका अभाव स्कोर 33.3 प्रतिशत से कम होना चाहिए। स्वास्थ्य और शिक्षा संकेतकों को प्रत्येक को 1/6 का भार दिया गया है और जीवन स्तर के संकेतकों को प्रत्येक को 1/18 का भार दिया गया है। किसी व्यक्ति का अभाव स्कोर उसके द्वारा अनुभव किए गए कुल अभावों का योग है। वैश्विक एमपीआई लोगों को बहुआयामी रूप से गरीब के रूप में पहचानता है यदि उनका अभाव स्कोर 1/3 या अधिक है।

अब जानते हैं कि रिपोर्ट में भारत के बारे में क्या कहा गया है?
संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2005-2006 से 2019-2021 के दौरान भारत ने अपने वैश्विक एमपीआई मूल्यों (गरीबी) को सफलतापूर्वक आधा कर दिया। वैश्विक एजेंसी की मानें तो यह आंकड़ा देश में तेजी से विकास को दर्शाता है। रिपोर्ट कहती है कि भारत में महज 15 साल के भीतर कुल 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए। 2005-2006 में जहां गरीबों की आबादी 55.1 प्रतिशत थी, वह 2019-2021 में घटकर 16.4 प्रतिशत हो गई।
गरीबी के सभी संकेतकों में आई गिरावट 
2005-2006 में भारत में लगभग 64.5 करोड़ लोग गरीबी की सूची में शामिल थे, यह संख्या 2015-2016 में घटकर लगभग 37 करोड़ और 2019-2021 में कम होकर 23 करोड़ हो गई। रिपोर्ट के अनुसार भारत में सभी संकेतकों के अनुसार गरीबी में गिरावट आई है। सबसे गरीब राज्यों और समूहों, जिनमें बच्चे और वंचित जाति समूह के लोग शामिल हैं, ने सबसे तेजी से प्रगति हासिल की है।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पोषण संकेतक के तहत बहुआयामी रूप से गरीब और वंचित लोग 2005-2006 में 44.3 प्रतिशत थे जो 2019-2021 में कम होकर 11.8 प्रतिशत हो गए। इस दौरान और बाल मृत्यु दर 4.5 प्रतिशत से घटकर 1.5 प्रतिशत हो गई।

मूलभूत सुविधाएं बढ़ने से सुधरी स्थिति 
रिपोर्ट कहती है कि खाना पकाने के ईंधन से वंचित गरीबों की संख्या भारत में 52.9 प्रतिशत से गिरकर 13.9 प्रतिशत हो गई है। वहीं, स्वच्छता से वंचित लोग जहां 2005-2006 में 50.4 प्रतिशत थे उनकी संख्या 2019-2021 में कम होकर 11.3 प्रतिशत रह गई है।

पेयजल के पैमाने की बात करें तो उक्त अवधि के दौरान बहुआयामी रूप से गरीब और वंचित लोगों का प्रतिशत 16.4 से घटकर 2.7 हो गया। बिना बिजली के रह रहे लोगों की संख्या 29 प्रतिशत से 2.1 प्रतिशत और बिना आवास के गरीबों की संख्या 44.9 प्रतिशत से गिरकर 13.6 प्रतिशत रह गई है।

भारत के पड़ोसी देशों की स्थिति क्या है?
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के अलावा इसके कई पड़ोसी देशों ने भी अपने यहां गरीबों की संख्या में कमी की है। चीन सबसे अधिक आबादी देश है। रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में 2010-2014 के दौरान 6.9 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए। 2010 में चीन का एमपीआई स्कोर 9.5 था, जो 2014 में घटकर 4.2 हो गया। इस दौरान गरीबों की आबादी 12.7 करोड़ से घटकर 5.83 करोड़ हो गई।

पाकिस्तान में 2012/2013 से 2017/2018 के दौरान 70 लाख लोग गरीबी से बाहर निकले। 2012/2013 में देश का एमपीआई मूल्य 44.5 था, जो 2017/2018 में घटकर 38.3 पर आ गया। इस दौरान गरीबों की संख्या 9.13 करोड़ से कम होकर 8.42 करोड़ हो गई।

बांग्लादेश में 2014-2019 के दौरान 1.9 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए। 2014 में बांग्लादेश का एमपीआई स्कोर 37.6 जो 2019 में घटकर 24.1 हो गया। इस दौरान गरीबों की संख्या 5.86 करोड़ से नीचे आकर 3.98 करोड़ हो गई।

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