तीन और चीतों की जान को खतरा! ….. कूनो नेशनल पार्क में तीन चीते और मिले संक्रमित

तीन और चीतों की जान को खतरा! चीते ओवान की कॉलर आइडी हटाई

कूनो नेशनल पार्क में तीन चीते और मिले संक्रमित, बाकी दो चीतों को पकड़ने और बेहोश करने की कोशिश जारी, पिछले सप्ताह दो चीतों की हो चुकी है मौत

कूनो नेशनल पार्क में तीन चीते और मिले संक्रमित ….

भोपाल. नामीबिया और साउथ अफ्रीका से लाए गए आठ चीतों की कूनो नेशनल पार्क में लगातार हो रही मौतों के बाद हर कोई सकते में है। पिछले सप्ताह दो चीतों की मौत के बाद तो राज्य सरकार को भी जवाब देना मुश्किल हो रहा है। कॉलर आइडी से हो रहे संक्रमण के कारण चीतों की जान जा रही है। ऐसे में उनकी कॉलर आइडी हटाई जा रही है।

अधिक बारिश होने के कारण चीते यहां खुद को ढाल नहीं पा रहे—परियोजना से जुड़े रहे एक विशेषज्ञ ने बताया कि चीतों को भारत लाते समय किसी ने यह भी नहीं सोचा कि भारत में ज्यादा बारिश होती है। अधिक बारिश होने के कारण चीते यहां खुद को ढाल नहीं पा रहे। उनका यह भी कहना है कि चीतों को यहां पर अनुकूल होने में दो से तीन पीढ़ी लगेगी।

विशेषज्ञ के अनुसार यहां बाघ, तेंदुआ और अन्य वन्य प्राणियों की चमड़ी मोटी होती है। इसलिए उन्हें कॉलर आइडी के बाद भी इंफेक्शन नहीं होता लेकिन चीते संक्रमित हो रहे हैं। कूनो नेशनल पार्क में तीन और चीते संक्रमित मिले हैं। इनमें से एक चीता ओवान की कॉलर आइडी हटा दी गई है। बाकी दो चीतों को पकड़ने और बेहोश करने की कोशिश की जा रही है।

इस बीच चीतों की मौत पर दक्षिण अफ्रीकी चीता मेटापॉपुलेशन विशेषज्ञ विंसेंट वान डेर मेरवे का बयान भी सामने आया है। उनका भी यही कहना है कि अत्यधिक गीली स्थितियों के कारण रेडियो कॉलर चीतों में संक्रमण पैदा कर रहे हैं।

इधर कूनो में मॉनीटिरिंग टीम की भी लापरवाही साफ नजर आ रही है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि इंफेक्शन से तत्काल मौत नहीं होती। सेप्टिसीमिया होने के बाद इसमें 10 से 12 दिन का समय लगता है। इस बीच कोई ध्यान देता तो चीतों को बचाया जा सकता था।

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चीता परियोजना की होनी चाहिए समीक्षा ..?

BHOPAL. तेजस के बाद सूरज की भी मौत। कूनो नेशनल पार्क में चार माह में यह आठवीं मौत है। चीतों की हर मौत के बाद अलग-अलग कारण गिनाए गए। कभी मैटिंग के दौरान आपसी लड़ाई। तो कभी चीतों के गले में लगी कालर आईडी की वजह से इंफेक्शन को कारण माना गया। अग्नि नामक चीता भी घायल है। उसके पैर में फैक्चर है। उसे सेप्टीसेमिया होने की आशंका है। मप्र के वनमंत्री विजय शाह कह रहे हैं कि यह जंगली जानवरों में आम बात है। लेकिन, लगातार हो रही मौतों के बाद सवाल उठने लाजिमी हैं। क्या दक्षिण भारत से आए इन चीतों को मप्र का मौसम रास नहीं आ रहा? क्या यह चीते किसी बीमारी से ग्रस्त हैं? या यहां के वातावरण में इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गयी है? कुछ दिनों पहले आयी एक रिपोर्ट में आशंका व्यक्त की गयी थी, कूनो की कम जगह चीतों के असहज होने की प्रमुख वजह है। कंजर्वेशन साइंस एंड प्रैक्टिस जर्नल में कहा गया कि नामीबिया के उलट मप्र के जंगल में कम जगह है। वहां 100 वर्ग किमी में एक से भी कम चीता रहता है। लेकिन, कूनो में ऐसी स्थिति नहीं है। घूमने के लिए ज्यादा जगह न होने की वजह से वे पास के दूसरे गांवों में घुस रहे हैं। और संघर्ष की स्थिति बन रही है। रिपोर्ट की मानें तो कम से कम 12 चीतों को दूसरी जगह शिफ्ट किया जाना चाहिए। लेकिन कहां? यह बड़ा सवाल है। चीतों को ग्रासलैंड यानी थोड़ी ऊंची घास वाले मैदानी इलाके पसंद हैं। खुले जंगलों में। घने नहीं। वातावरण में ज्यादा उमस न हो। थोड़ा सूखा रहे। इंसानों की पहुंच न हो। बारिश भी ज्यादा न होती है। इस तरह का वातावरण कूनो के अलावा और कहां है? कूनो नेशनल पार्क 748 वर्ग किमी में फैला है। जबकि, बफर एरिया 1235 वर्ग किमी है। स्थितियां अनुकूल हैं फिर भी मौतें हो रही हैं। तो एक बार फिर से भारतीय ग्रास लैंड की इकोलॉजी को समझना जरूरी है। यहां चीतल जैसे जीव पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं। लेकिन, चीतों की भोजन श्रंृख़ला के लिए क्या यह उपयुक्त हैं। यह भी देखा जाना चाहिए। 70 साल तक देश में चीते नहीं थे। तो कुछ तो इसकी वजह रही होगी। वंशवृद्धि में कमी के कारण भी तलाशने होंगे। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी सभी संभावनाओं को नकारते हुए मौतों की वजह प्राकृतिक बता रही है। ऐसे में चीतों की मौत पर उलझन और बढ़ गयी है।

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