कहानी डीपी यादव की ..पूरी जिंदगी खुली रहेगी हिस्ट्रीशीट ..?

कहानी डीपी यादव की: UP का वो बाहुबली जिससे कप्तान बोले- पूरी जिंदगी खुली रहेगी हिस्ट्रीशीट
कोई उन्हें बाहुबली कहता है तो कोई हीरो बताता है, लेकिन सार्वजनिक जीवन से सन्यास ले चुके डीपी यादव को कोई फर्क नहीं पड़ता. गाजियाबाद के राजनगर में वह आज भी बिन्दास जीवन जी रहे हैं. उन्हें बस एक ही चिंता है कि वह बी श्रेणी के हिस्ट्रीशीटर हैं.

अजय कटारा मामले में बरी होने के बाद नोएडा के बाहुबली डीपी यादव एक बार फिर से चर्चा में हैं. दो दिन पहले ही उन्हें गाजियाबाद की अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी किया है. उनके ऊपर आरोप था कि नीतीश कटारा हत्याकांड में मुख्य गवाह अजय कटारा की हत्या का प्रयास किया था. इस मामले में लोनी विधायक नंद किशोर गुर्जर समेत कई अन्य आरोपी भी थे. हालांकि नंद किशोर गुर्जर पहले ही बरी हो चुके हैं. वहीं अदालत ने अब डीपी यादव को भी मुकदमे से बरी कर दिया है. आइए जानते हैं उसी डीपी यादव की क्या है कहानी…

क्राइम सीरीज में हम आज उसी डीपी यादव की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्हें कुछ लोग नोएडा के हीरो बताते हैं तो कुछ लोग बाहुबली. लोग उन्हें चाहे जो कहें, डीपी यादव को ना तो पहले कभी फर्क पड़ा और ना ही उन्हें आज इससे कोई दिक्कत है. मूल रूप से नोएडा में सेक्टर 71 से लगे सरफाबाद गांव के रहने वाले डीपी यादव अब गाजियाबाद में पुलिस कमिश्नरेट के पीछे राजनगर में रहते हैं. सादगी ऐसी कि कोई आवाज भी लगाए तो वह बेधड़क और निडर भाव से बाहर निकल आते हैं. कोई उनसे मदद की अपेक्षा रखे तो वह कभी निराश नहीं करते.

डीपी यादव सुर्खियों में तब आए जब उनके राजनीतिक गुरु महेंद्र भाटी की दादरी में 13 नवंबर 1992 को हत्या हो गई. आरोप लगा कि इस वारदात को खुद डीपी यादव ने ही अंजाम दिया है. मामले की सुनवाई गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट में हुई और डीपी यादव के खिलाफ दोष प्रमाणित होने के साथ उन्हें उम्रकैद की सजा हो गई. लेकिन डीपी यादव ने कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील दाखिल की और इसके बाद मामले के रिव्यूपिटीशन पर उत्तराखंड के हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. जहां हाईकोर्ट ने 10 नवंबर 2021 को गाजियाबाद के सीबीआई कोर्ट का फैसला पलट दिया. इस प्रकार महेंद्र भाटी हत्याकांड में डीपी यादव बाइज्जत बरी हो गए.

शराब कारोबार से चमके

25 जुलाई 1948 को पैदा हुए डीपी यादव का वैसे तो पूरा नाम धर्मपाल यादव है, लेकिन इस नाम को उन्होंने उसी समय छोड़ दिया था, जब वह शराब के कारोबार में उतरे. 7 भाई और 3 बहनों में से एक डीपी यादव के पिता दिल्ली के जगदीश नगर में दूध का कारोबार करते थे. डीपी खुद साइकिल पर दूध की बाल्टी भरकर सरफाबाद से जगदीश नगर जाते थे. इस कारोबार में उन्हें कुछ ही दिन हुए थे कि शराब कारोबारी बाबू किसन लाल से मुलाकात हुई. यही वह दौर था, जब डीपी ने अपनी साइकिल और दूध की बाल्टी को फेंक कर शराब के कारोबार को अपना कदम रख दिया.

80 के दशक में दिग्गज कांग्रेसी नेता महेंद्र भाटी दादरी से विधायक थे. शराब के कारोबार के दौरान ही डीपी विधायक भाटी के संपर्क में आए. कहा जाता है कि डीपी यादव को राजनीति का ककहरा महेंद्र भाटी ने ही सिखाया था. लेकिन डीपी यादव का असली इस्तेमाल सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने किया. दरअसल मुलायम सिंह ने 1989 में जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई थी. लेकिन इस पार्टी के लिए उन्हें रसूख वाले नेताओं के साथ पैसे वाले नेताओं की जरूरत थी. उन दिनों शराब के कारोबार से डीपी यादव के पास बहुत पैसा आ गया था. ऐसे में मुलायम सिंह ने डीपी को बुलाकर सपा का जनरल सेक्रेटरी बना दिया.

कांग्रेस से शुरू की राजनीति

इसी बीच 1992 में महेंद्र सिंह भाटी की हत्या हो गई. आरोप डीपी पर था, बावजूद इसके मुलायम सिंह यादव ने 1993 के चुनाव में बुलंदशहर से टिकट देकर विधायक बना दिया. बाद में डीपी यादव का सपा से मोह भंग हो गया और उन्होंने मुलायम सिंह की साइकिल से उतर मायावती के हाथी पर सवार हो गए. फिर मायावती ने डीपी को राज्य सभा भेजा. कुछ दिन बसपा में रहने के बाद डीपी यहां से भी अलग हुए और अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़े. लगातार दो चुनाव हारने के बाद अब वह राजनीति से सन्यास लेकर गृहस्थ जीवन बिता रहे हैं.

मरने के बाद बंद होती है बी श्रेणी की हिस्ट्रीशीट

बी श्रेणी के गैंगस्टर डीपी यादव के संबंध में एडिश्नल एसपी अभय मिश्रा कहते हैं भारतीय कानून व्यवस्था में अपराधियों को दो श्रेणी में बांटा गया है. जो छोटे मोटे अपराधी होते हैं, उन्हें ए श्रेणी का अपराधी कहते हैं. इसका मतलब यह है कि इनके सुधरने की संभावना है. इनकी हिस्ट्रीशीट आम तौर पर कप्तान खोलते और बंद करते हैं. लेकिन बी श्रेणी में जघन्य अपराध करने वाले बदमाशों को रखा जाता है. इस कैटेगरी के बदमाशों के बारे में माना जाता है कि इनके सुधरने की गुंजाइश ना के बराबर है.

इनकी हिस्ट्रीशीट आईजी या एडीजी रैंक के पुलिस अधिकारी खोलते हैं. वहीं इनकी हिस्ट्रीशीट को बंद करने का कोई विकलप नहीं होता. जब इस श्रेणी के अपराधियों की मौत होती है तो उनकी फाइल के साथ हिस्ट्रीशीट भी अपने आप बंद होती है. जहां तक डीपी यादव की बात है तो उनका नाम गाजियाबाद के कविनगर थाने के जघन्य अपराधियों में शामिल है. बी श्रेणी के अपराधियों में उनका नाम 69वें स्थान पर दर्ज है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *