WWW… रिसर्च और एजुकेशन की बदल दी दुनिया

WWW… रिसर्च और एजुकेशन की बदल दी दुनिया …

भोपाल. डिजिटल युग में हर कदम पर इंटरनेट है। कोई जानकारी चाहिए…एक क्किल पर सब हाजिर। यह सब वर्ल्ड वाइड वेब (www) के बिना संभव नहीं…आज 1 अगस्त को यह 34 साल का हो गया। कम्प्यूटर वैज्ञानिक टिम बर्नर्स ली के 1989 में इसे बनाया। इसने लोगों की दुनिया बदल दी। रवींद्रनाथ टैगोर यूनिवर्सिटी के सेंट्रल ऑफ एक्सीलेंस के हेड डॉ. राकेश कुमार कहते हैं, इंटरनेट पर जो डाटा एक्सेस करते हैं वह www के अंदर ही आता है। कम्प्यूटर की भाषा में कहें यह एक हाइपर टेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज (एचटीएमएल) नेटवर्क है, जिसे हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल से एक्सेस किया जाता है।

ली यूरोपियन ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) में बतौर फेलो रिसर्चर कम्प्यूटर सिस्टम की इन्फॉर्मेशन को दूसरे कम्प्यूटर पर भेजते थे। उन्होंने सोचा…एक ऐसा तरीका हो, जिससे सभी सूचनाएं एक ही जगह उपलब्ध हो। उन्होंने च्इन्फॉर्मेशन मैनेजमेंट- ए प्रपोजलज् नाम से रिसर्च पेपर बनाया।

600 करोड़ लोग दुनिया में इसका उपयोग करते हैं

60 करोड़ यूजर भारत में हैं

2005 में दुनिया के 16% लोग इस्तेमाल करते थे।

2021-22 में आंकड़ा 65% पहुंचा

2021-22 में विकसित देशों में 92% लोग इस्तेमाल करने लगे।

बड़ा अंतर है इंटरनेट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू में

इंटरनेट और www में बड़ा अंतर है। यह ऑनलाइन पेजेज का समूह हैं, जबकि इंटरनेट से दुनियाभर के कम्प्यूटर और डिवाइसेज जुड़े हैं। यानी इंटरनेट पर वर्ल्ड वाइड वेब डाटा उपलब्ध कराता है।

शुरुआती दो वर्ष में इसे अन्य अनुसंधान संस्थानों और संगठनों के साथ साझा किया गया। 1993 में इसके उपयोग पर रॉयल्टी माफ कर दी गई। एक साल से भी कम समय में सैकड़ों वेबसाइट बनाई और 1995 आते-आते डॉट-कॉम बबल शुरू हुआ।

फायदे-नुकसान दोनों

इसके उपयोग के फायदे और नुकसान दोनों ही है। कोई जानकारी लेना आसान हो गया तो रैपिड इंटरैक्टिव कम्युनिकेशन के साथ प्रोफेशनल कॉन्टेक्ट बनाना भी सुगम हुआ। अब यह वैश्विक मीडिया है। हालांकि इस पर मिली जानकारी फिल्टर करना और प्राथमिकता देना मुश्किल काम है।

 

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