इंदौर। हम इंदौरी बेहद अमन पसंद लोग हैं। व्यवस्था बार-बार हमारे साथ अन्याय करती है, लेकिन हम ‘कोई बात नहीं आगे अच्छा होगा’ जैसे जुमले बोलकर खुद को दिलासा देते रहते हैं। अब पुलिस कमिश्नरी को ही लीजिए। हाकिमों ने उत्तरप्रदेश के किन्हीं शहरों के देखकर इंदौर और भोपाल में भी वही माडल लागू कर दिया। अफसरों की फौज तैनात हो गई और कमिश्नरी के अनुसार पदनाम भी बदल दिए गए। नहीं बदली तो हमारी पुलिस। रात गहराते ही सड़कों से शराफत और पुलिस दोनों गायब हो जाती है। सड़कों पर खंजर लेकर घूमते बदमाशमिनट भर में पूरा परिवार उजाड़ देते हैं। कत्ल तो एक ही होता है लेकिन उसके साथ मरते कई लोग हैं। मामूली कहासुनी के बाद पांच दिनों में हुई दो हत्याओं से भी ‘व्यवस्था’ के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। सड़कों पर बह रहे इस लहू का जिम्मेदार आखिर कौन है इसका जवाब किसी के पास नहीं?

जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध

लोग जनप्रतिनिधि इसलिए चुनते हैं ताकि वे लोगों की बात उचित माध्यम तक पहुंचा सकें और भयमुक्त समाज बनाने के लिए पहल कर सके। लेकिन इंदौर की राजनीति इन दिनों किसी और ही दिशा में घूमती नजर आ रही है। इलेक्शन मोड में आ चुके नेताओं का पूरा फोकस इन दिनों विधानसभा के जोड़-घटाव पर ही केंद्रित है। शहर में लगातार हो रहे अपराधों के बावजूद पक्ष-विपक्ष के आधा दर्जन से अधिक विधायक-सांसद में से किसी ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाने की जहमत नहीं उठाई। नाइट कल्चर की पैरवी में सेमिनार-सभाएं करने वाले जनप्रतिनिधि अब इसीनाइट कल्चर में हो रहे अपराधों पर मौन हैं। लेकिन शायद वे ये नहीं जानते कि ‘समय’ सब देख रहा है। वह तटस्थ रहने वालों से भी इसकी वजह पूछेगा जरूर।

आ देखें जरा किसमें कितना है दम

राजनीति की चौसर पर शह और मात का खेल शुरू हो चुका है। चुनावी बेला जैसे-जैसे नजदीक आ रही है भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में कार्यकर्ता सम्मेलन तो कर ही रहे हैं वादों और घोषणाओं के भी कीर्तिमान रच रहे हैं। विधायकों-मंत्रियों ने ताबड़तोड़ अपने-अपने क्षेत्र में सम्मेलन शुरू किए तो जवाब में कांग्रेस ने भी कार्यकर्ता मिलन समारोह शुरू कर दिए। लेकिन इससे इतर विधानसभा क्षेत्रों में छोटे-छोटे ‘युद्ध’ और भी लड़े जा रहे हैं। ये युद्ध दावेदारों के बीच चल रहे हैं। इंदौर का विधानसभा पांच पिछले दिनों ऐसे ही एक युद्ध का साक्षी बना। यहांभाजपाऔर कांग्रेस में दो-दो ताकतवर खेमे सक्रिय हैं। एक गुट यदि कोई आयोजन करता है तो जवाब में दूसरा गुट उससे बड़ा आयोजन कर देता है। इस खींचतान में फायदा कार्यकर्ताओं का हो रहा है। उनकी पांचों उंगली घी में है।

पहली सूची में ही कहीं खुशी कहीं गम

भाजपा ने मप्र विधानसभा चुनाव के लिए अपनी पहली सूची जारी कर दी। इसमें मालवा-निमाड़ क्षेत्र की 11 सीटें भी शामिल हैं। अब तक टिकट वितरण को लेकर तरह-तरह के कयास और संभावनाओं को साथ लेकर आगे बढ़ रहे दावेदारों को पहली सूची से कहीं खुशी-कहीं गम की अनुभूति हो रही है। खुशी इसलिए कि केवल नए चेहरों को ही मौका मिलेगा यह कयास मिथ साबित हुए। झाबुआ, आलीराजपुर से लेकर इंदौर तक अनुभवी और पिछला चुनाव हार चुके उम्मीदवारों को भी फिर से मौका मिला है। कहीं गम इसलिए क्योंकि पार्टी ने सिर्फ जीत की सर्वाधिक संभावना वाले उम्मीदवार को ही टिकट दिया है। इससे विधायकी के सपने देख रही नई उम्र की राजनीतिअवश्य निराश हुई है। लेकिन इतना तय है कि पहली सूची के बाद अब राजनीतिक तापमान और गर्म होना तय है क्योंकि बची सीटों के लिए जोर आजमाइश तेज होगी।