नेताओं के दल बदलने का दौर तेज हो गया है ….

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव करीब आते ही नेताओं के दल बदलने का दौर तेज हो गया है। पिछले कुछ महीनों में सबसे ज्यादा नेता भाजपा से टूटकर कांग्रेस में गए हैं। ऐसे बड़े नेताओं की संख्या 31 है, जिनमें 25% सिंधिया समर्थक हैं …

दल बदलने वालों में वर्तमान विधायक, पूर्व मंत्री, सांसद, जिला पंचायत सदस्य भी शामिल हैं। ऐसा नहीं है कि पार्टी बदलने वालों में केवल भाजपाई हैं। कांग्रेस से भी कई नेता भाजपा के खेमे में गए हैं। संडे स्टोरी में पढ़िए टिकट के लिए दल-बदलने वाले नेताओं ने कैसे अपनी-अपनी पूर्व पार्टी को परेशानी में डाल दिया है..

वीरेंद्र रघुवंशी, भंवर सिंह शेखावत और गिरिजाशंकर शर्मा ने भाजपा छोड़ी

31 अगस्त और 1 सितंबर को कोलारस विधायक वीरेंद्र रघुवंशी और पूर्व विधायक गिरिजाशंकर शर्मा ने भाजपा छोड़ी। रघुवंशी ने 2 सितंबर को कांग्रेस जॉइन भी कर ली। इसके साथ ही बदनावर से पूर्व विधायक भंवर सिंह शेखावत ने भी कांग्रेस का हाथ थाम लिया। ये तीनों दिग्गज नेता माने जाते हैं।

वीरेंद्र रघुवंशी ने पार्टी छोड़ते समय ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत उनके साथ भाजपा में आए नेताओं पर कई आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि नवागत भाजपाइयों के कारण पार्टी की रीति-नीति ही बदल गई है। भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं की अनदेखी हो रही है।

भाजपा छोड़ने वाले गिरिजाशंकर शर्मा जनसंघ से जुड़े रहे हैं। वे दो बार नगर पालिका अध्यक्ष और दो बार विधायक रहे हैं। भाजपा संगठन में उन्होंने जिला अध्यक्ष समेत कई जिम्मेदारियां निभाईं। उन्होंने 2018 के चुनाव से पहले कांग्रेस जॉइन की थी फिर भाजपा में आ गए थे। गिरिजाशंकर शर्मा विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष सीतासरन शर्मा के बड़े भाई हैं। सीतासरन शर्मा पांच बार से विधायक हैं। शर्मा परिवार नर्मदापुरम जिले की राजनीति में खासा दखल रखता है।

माखन सिंह सोलंकी: भाजपा SC-ST वालों का अपमान करती है

31 मार्च 2023 को आदिवासी नेता और पूर्व सांसद माखन सिंह अपने लोकसभा क्षेत्र बड़वानी में दिग्विजय सिंह की मौजूदगी में कांग्रेस में शामिल हुए। माखन सिंह 2009 में खरगोन-बड़वानी लोकसभा सीट से बीजेपी के सांसद रहे हैं। कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्होंने कहा- भाजपा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से आने वाले लोगों का अपमान करती है।

कांग्रेस ने हमेशा डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर के दृष्टिकोण के तहत इस देश के अल्पसंख्यकों का सम्मान किया है। माखन सिंह ने ये भी कहा- भाजपा के स्थानीय नेता भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। मेरा सम्मान नहीं हो रहा था। मुझे मंचों पर दरकिनार किया जाने लगा था।

राधेलाल बघेल: नरोत्तम मिश्रा को हराना ही मेरा लक्ष्य

6 मई को राधेलाल बघेल ने पूर्व सीएम कमलनाथ के उपस्थिति में कांग्रेस की सदस्यता ली। 2008 में वे दतिया जिले की सेवढ़ा विधानसभा सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव जीते थे। 2013 में भाजपा के प्रदीप अग्रवाल से चुनाव हार गए थे। हारने के बाद उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया था। इसके बाद पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष का पद मिला। पार्टी छोड़ने से पहले वे प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य थे।

2018 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने मौजूदा विधायक प्रदीप अग्रवाल का टिकट काटकर बघेल को मैदान में उतारा था, लेकिन जीत नहीं पाए थे। बघेल ने भास्कर से बात करते हुए कहा- प्रदेश में भाजपा की तानाशाही चल रही है। हमारे जिले में गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा किसी को कुछ समझते नहीं हैं। इस बार दतिया विधानसभा से गृहमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ूंगा।

दीपक जोशी: भाजपा वैसी नहीं रही, जैसी मेरे पिताजी ने सींची थी

6 मई 2023 यानी जिस दिन राधेलाल बघेल ने कांग्रेस का दामन थामा, उसी दिन जनसंघ के संस्थापक सदस्य और पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी ने भी कांग्रेस जॉइन की। वो कमलनाथ के पास अपने पिता की तस्वीर लेकर पहुंचे। पहली बार साल 2008 में दीपक देवास के बागली से विधायक बने। 2013 में भाजपा की ही टिकट पर देवास की हाटपिपल्या सीट से चुनाव लड़े और जीते।

भाजपा छोड़ने के बाद दीपक जोशी मीडिया के सामने रो पड़े। उन्होंने कहा- स्व. पिताजी का हाटपिपल्या में स्मारक बनना है। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष से लेकर मुख्यमंत्री तक सभी को कहा, लेकिन किसी को कोई असर नहीं पड़ा। बीजेपी अब वैसी नहीं रही, जैसी कि मेरे पिताजी ने सींची थी। मुझे भाजपा के किसी कार्यक्रम में बुलाया तक नहीं जाता था। यदि पार्टी कहेगी तो बुधनी से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ चुनाव लड़ूंगा।

यादवेंद्र सिंह यादव: सिंधिया आए तो निष्ठावान कार्यकर्ताओं की उपेक्षा होने लगी

22 मई 2023 को पूर्व विधायक राव देशराज सिंह के बेटे यादवेंद्र ने कांग्रेस जॉइन की। सदस्यता लेने के बाद यादवेंद्र ने कहा- मेरे पिता अशोकनगर की मुंगवाली विधानसभा से तीन बार विधायक रहे हैं। भाजपा को खड़ा करने में उनका बड़ा योगदान रहा है। मैं, मेरी पत्नी और मां वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य है। हमारे परिवार ने भाजपा की सेवा की, लेकिन सिंधिया भाजपा में आए तो अशोकनगर में पुराने और निष्ठावान कार्यकर्ताओं की उपेक्षा होने लगी।

वे कहते हैं- अशोकनगर में एसटी/एससी वर्ग के लोगों की जमीनों पर कब्जा कर ली गई। भ्रष्टाचार बढ़ गया है। अब भाजपा की विचारधारा नहीं बची है। सभी अपना पेट भरने में लगे हुए हैं। मेरे क्षेत्र के लोग और कार्यकर्ता परेशान हुए तो उनके साथ मैंने भी भाजपा छोड़ कांग्रेस पार्टी में आने का फैसला लिया।

हेमंत लारिया: टिकट नहीं मिला तो बदल दी पार्टी

सागर के हेमंत लारिया ने 21 मई को करीब 1 हजार समर्थकों के साथ प्रदेश कार्यालय पहुंच कर कांग्रेस जॉइन की। हेमंत के चचेरे भाई प्रदीप लारिया नरयावली से विधायक हैं। हेमंत लारिया पार्षद का चुनाव लड़ना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि पार्षद बनकर वे मकराेनिया नगर पालिका के अध्यक्ष बनें। अध्यक्ष पद एससी के लिए आरक्षित था। हेमंत ने विधायक भाई प्रदीप लारिया से पार्षद का टिकट दिलाने के लिए काफी जाेर लगवाया, लेकिन वे टिकट नहीं दिला पाए।

दीपक सारण: मंत्री कमल पटेल के राइट हैंड थे

कृषि मंत्री कमल पटेल के राइट हैंड माने जाने वाले हरदा के दीपक सारण ने 22 मई को अपने सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। हरदा क्षेत्र के दीपक सारण को पार्टी में आने को कांग्रेस की बड़ी कामयाबी माना जा रहा है, क्योंकि उन्होंने कृषि मंत्री कमल पटेल के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। चुनाव संचालन को लेकर कार्यभार संभाला था और बूथों पर उनकी पकड़ मजबूत है।

ध्रुव प्रताप सिंह: भाजपा भटक गई, इसलिए छोड़ दी

ध्रुव प्रताप सिंह ने 17 जून को भाजपा छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया। 2003 में कटनी के विजयराघवगढ़ से विधायक का चुनाव जीते थे। उस समय के कांग्रेसी नेता संजय पाठक को चुनाव हराया था। राजनीतिक करियर की शुरुआत भाजपा के साथ 1980 से की थी, तब भाजपा जनशक्ति के नाम से जानी जाती थी। भाजपा से पुराने नेताओं में से एक हैं। भाजपा छोड़ने का ऐलान करते हुए उन्होंने अपने इस्तीफे में लिखा कि भाजपा अब अपने मूल सिद्धांतों से भटक गई है।

भंवर सिंह शेखावत: पिता ने कांग्रेस जॉइन की, बेटा अभी भी भाजपा में

भंवर सिंह शेखावत 2 सितंबर को कांग्रेस में शामिल हो गए। वे बदनावर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं। भंवर सिंह शेखावत की गिनती मालवा में भाजपा के पुराने नेताओं में होती है। 90 के दशक में इंदौर-5 सीट से विधायक रह चुके हैं। 2013 में भाजपा ने उन्हें बदनावर से टिकट दिया था। शेखावत ने राजवर्धन सिंह दत्तीगांव को हराया था। पिछले चुनाव में राजवर्धन ने शेखावत को हरा दिया था। इसके बाद राजवर्धन सिंधिया के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए।

2021 में हुए उप चुनाव में भाजपा ने बदनावर से शेखावत की जगह राजवर्धन को टिकट दिया। तब शेखावत ने पार्टी के इस फैसले का विरोध किया था। ये तभी से पार्टी से नाराज चल रहे हैं। भंवर सिंह शेखावत के पुत्र व पूर्व पार्षद संदीप शेखावत पिता के साथ कांग्रेस का दामन नहीं थाम रहे हैं। वे भाजपा में ही बने रहेंगे। शेखावत ने भाजपा छोड़ने के बाद कहा कि अब भाजपा उन लोगों के कब्जे में है, जिनसे भाजपा के पुराने कार्यकर्ता वर्षों से संघर्ष करते रहे।

अवधेश नायक:भाजपा को हराकर ही दम लूंगा

6 अगस्त को पाठ्य पुस्तक निगम के पूर्व उपाध्यक्ष अवधेश नायक ने कांग्रेस में वापसी कर ली है। साल 2008 में अवधेश दतिया से विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। शिवराज सरकार ने उन्हें 2016 में निगम का उपाध्यक्ष बनने के बाद राज्यमंत्री का दर्जा दिया था। उन्होंने कहा- हम बिना शर्त कांग्रेस में आए हैं और दतिया में भाजपा को हराकर दम लेंगे।

अवधेश के साथ ही सागर की सुरखी विधानसभा से राजकुमार धनौरा ने भी कांग्रेस का हाथ थामा था। वे पूर्व सरपंच रहे हैं। राजकुमार ने कहा- सुरखी से विधायक और राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत को इस चुनाव में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। राजकुमार ने भी सैकड़ों समर्थकों के साथ कांग्रेस पार्टी जॉइन की है।

वंदना बागरी: टिकट के लिए पूर्व मंत्री की बहू ने बदली पार्टी

वंदना बागरी सतना की रैगांव विधानसभा सीट से 5 बार विधायक रह चुके पूर्व मंत्री स्व. जुगल किशोर बागरी की छोटी बहू हैं। भाजपा की सक्रिय और बड़ी नेता मानी जाती थीं। इन्होंने 24 अगस्त को अपने पति देवराज बागरी के साथ कांग्रेस का दामन थाम लिया है। पति देवराज और वंदना दोनों जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। रैगांव सीट पर बागरी परिवार का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। इस बार वंदना रैगांव से कांग्रेस की टिकट की दावेदारी कर रही हैं।

रोशनी यादव: भाजपा दिखावटी राजनीति करती है

भाजपा नेत्री रही रोशनी यादव 22 अगस्त को कांग्रेस में शामिल हो गईं। निवाड़ी जिले से ताल्लुक रखने वाली रोशनी भाजपा की सक्रिय नेता मानी जाती थीं। निवाड़ी जिला उपाध्यक्ष और जिला पंचायत सदस्य हैं।

भाजपा को दिए अपने इस्तीफे में रोशनी ने लिखा था- बहुत दुखी मन से आहत होकर मैं भाजपा की सदस्यता त्याग रही हूं। गत कुछ वर्षों से शीर्ष नेतृत्व का कार्यकर्ताओं और आम जनमानस के प्रति निराशा, नीति और नेतृत्व में उदासीनता, महिलाओं के प्रति दिखावटी योजना एवं उनके प्रति बढ़ते अत्याचार को देखकर मैं आहत हूं।

समंदर पटेल: टिकट का भरोसा नहीं मिला तो भाजपा छोड़ दी

समंदर पटेल ने 18 अगस्त को करीब 1200 गाड़ियों के काफिले के साथ भोपाल पहुंचकर दोबारा कांग्रेस का हाथ थाम लिया। वे राऊ विधानसभा क्षेत्र के लिम्बोदी के 4 बार (1994 से 2015 तक) सरपंच रह चुके हैं। तब यह ग्राम पंचायत इंदौर ग्रामीण का हिस्सा थी। 2018 में समंदर नीमच की जावद विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ चुके हैं। उनके पास खेती व अन्य प्रॉपर्टी मिलाकर 90 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है।

पटेल धाकड़ समाज से आते हैं। वे जावद सीट से टिकट चाहते हैं, लेकिन वहां से प्रदेश के लघु और मध्यम उद्योग मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा की दावेदारी है। जब सिंधिया टिकट दिलाने का भरोसा नहीं दे पाए तो समंदर ने भाजपा छोड़ दी। समंदर पटेल ने कहा- मैंने बीजेपी इसलिए छोड़ी क्योंकि मुझसे जुड़े कार्यकर्ताओं की वहां अनदेखी की जा रही थी। उनको और मुझे संगठन के किसी कार्यक्रम में नहीं बुलाया जाता था।

बैजनाथ सिंह यादव: हमें मंच पर तक चढ़ने नहीं देते थे, बेइज्जती कैसे बर्दाश्त करता

यादव ग्वालियर चंबल क्षेत्र से आते हैं। उन्होंने 14 जून को करीब 700 गाड़ियों के काफिले के साथ भोपाल पहुंचकर कांग्रेस में वापसी की। बैजनाथ के साथ जिला स्तर के 15 नेता भी कांग्रेस में शामिल हुए। बैजनाथ यादव शिवपुरी से कांग्रेस जिला अध्यक्ष रह चुके हैं। उनकी पत्नी कमला यादव भी शिवपुरी से जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं।

बैजनाथ ने बताया- भाजपा में शामिल होते ही मुझे प्रदेश कार्यसमिति का सदस्य बना दिया गया था। लेकिन यहां आकर हमें केवल घृणा ही मिली। मुझे मंच पर भी नहीं जाने देते थे। मैं अपना सम्मान पाने के लिए कांग्रेस में वापस आया हूं।

रघुराज धाकड़: भाजपा में हमारे साथ सौतेला व्यवहार होता था

धाकड़ ने 10 अगस्त को कांग्रेस में वापसी की। धाकड़ शिवपुरी के कोलारस से आते हैं और करीब 20 साल से राजनीति के मैदान में हैं। रघुराज की गिनती धाकड़ समाज के कद्दावर नेताओं में होती है।

रघुराज सिंह धाकड़ 2 बार जनपद सदस्य रह चुके हैं। रघुराज धाकड़ ने बताया- भाजपा में हमारे साथ सौतेला व्यवहार होता था। हमने ये बात सिंधिया काे भी बताई। मैं देखता हूं.. हर बार यही आश्वासन मिलता था, लेकिन निदान नहीं होता था। इस कारण वापस कांग्रेस में आ गया हूं।

राकेश गुप्ता: 40 साल कांग्रेस में बिताए, सिंधिया की वजह से दलबदलू का टैग लग गया

25 जून को राकेश गुप्ता ने कमलनाथ की मौजूदगी में कांग्रेस का हाथ थामा। राकेश शिवपुरी में बीजेपी के जिला उपाध्यक्ष पद थे। शिवपुरी में सिंधिया के लोकसभा चुनाव मैनेजमेंट का काम गुप्ता ही देखते थे।

खाटी कांग्रेसी राकेश कहते हैं कि मैं तो बस अपने नेता के लिए वहां गया था, लेकिन उन्होंने ही अपने कार्यकर्ताओं का ख्याल नहीं रखा। हम उपेक्षित थे, क्योंकि हम मूलरूप से कांग्रेसी थे। सिंधिया की वजह से मेरे ऊपर दलबदल का टैग लगा। इसके बाद भी क्षेत्र की जनता मेरे साथ है।

गगन दीक्षित: बीजेपी में तो प्रभुराम चौधरी की सुनवाई नहीं होती, हमारी क्या होगी

सैकड़ों समर्थकोंं से साथ सिंधिया फैंस क्लब के जिलाध्यक्ष गगन दीक्षित भोपाल पहुंचे। 24 जुलाई को दीक्षित के साथ सांची जनपद पंचायत अध्यक्ष अर्चना पोर्ते ने भी कांग्रेस का दामन थामा। इसके साथ ही इनके पिता प्रदीप दीक्षित ने भी प्रीति मालवीय और करीब 100 समर्थकों के साथ कांग्रेस जॉइन कर ली। रायसेन से ही सिंधिया के करीबी और मंत्री प्रभुराम चौधरी आते हैं।

गगन दीक्षित ने बताया- हम अपनी क्षेत्र के विकास के लिए कांग्रेस को छोड़ बीजेपी में गए थे। हमने प्रभुराम चौधरी के आश्वासन पर भाजपा जॉइन की थी। बीजेपी में कांग्रेस से आए कार्यकर्ताओं की सुनी नहीं जा रही थी। बीजेपी में खुद प्रभुराम चौधरी की सुनवाई नहीं होती तो हमारी कहां से होगी।

इनके अलावा सिंधिया समर्थक जयपाल सिंह यादव ने 10 अगस्त को कांग्रेस में वापसी की। जयपाल सिंह 2018 में चंबल की चंदेरी विधानसभा सीट से विधायकी का चुनाव लड़ चुके हैं। यादव की गिनती भी सिंधिया के खास लोगों में थी। हाल ही में अपने दर्जनों समर्थकों के साथ यादव ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है।

यदुराज सिंह यादव की चंबल की चंदेरी में मजबूत पकड़ है। संगठन के आदमी माने जाते हैं। सिंधिया चुनाव लड़ते थे, तो अशोकनगर में बड़ी भूमिका निभाते थे। जयपाल सिंह के साथ इन्होंने भी कांग्रेस का दामन थाम लिया है।इनके साथ ही ग्वालियर से रंजीत यादव, सुबोध दुबे, दिनेश बरैया, नरेंद्र गुर्जर, राहुल शाक्य और दौरिस जाटव जैसे कट्टर सिंधिया समर्थक कांग्रेस में घर वापसी कर चुके हैं।

अभय मिश्रा-नीलम मिश्रा : भूल से कांग्रेस में चला गया था

11 अगस्त को बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इस दंपती को पार्टी की सदस्यता दिलाई। अभय मिश्रा रीवा जिले की सिमरिया सीट से 2008 में और इनकी पत्नी नीलम मिश्रा 2013 में विधायक रह चुकी हैं।

अजय मिश्रा ने कहा- साल 2018 में मैं भूलवश कांग्रेस में चला गया था। कांग्रेस में भीतरघात का कल्चर है। जन सेवा से उनका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं। मैं भाजपा में टिकट के लालच में नहीं आया हूं, क्योंकि पार्टी बदलने से पहले ही कांग्रेस ने मुझे टिकट देने का इशारा कर दिया था। मुझे पता था कि मैं कांग्रेस में रह कर लोगों का भला नहीं कर पाऊंगा।

प्रमिला साधौ: अपनी बहन को हराऊंगी

30 जून को राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और CM शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में प्रमिला ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। प्रमिला कांग्रेस से पूर्व मंत्री और महेश्वर से वर्तमान विधायक कांग्रेस विजयलक्ष्मी साधौ की बहन हैं। प्रमिला ने कहा- कांग्रेस में मठाधीशी चल रही है। नए लोगों को मौका नहीं दिया जा रहा है। मेरे पिताजी लगातार कांग्रेस में रहे। लेकिन मुझे कांग्रेस में उपेक्षित रखा गया, इसलिए मैं भाजपा में आई हूं। भाजपा मुझे टिकट देगी तो डंके की चोट पर चुनाव जीतूंगी। मैं अपनी मंत्री बहन को चुनाव में हराऊंगी।

पुष्पराज सिंह: कांग्रेस में मेरे साथ धोखा हो रहा था

5 जुलाई को कांग्रेस छोड़ रीवा रियासत के महाराज पुष्पराज सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया है। पुष्पराज रीवा सीट से 3 बार विधायक रहे हैं। वे दिग्विजय सिंह के मंत्रिमंडल में भी रहे थे। साल 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र शुक्ल ने हराया। इसके बाद से पुष्पराज सिंह की राजनीति ठंडी पड़ गई थी।

पुष्पराज सिंह के बेटे दिव्यराज सिंह भाजपा के टिकट पर लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए हैं। भाजपा में शामिल होने पर पुष्पराज सिंह ने कहा कि कांग्रेस उनके साथ धोखा कर रही थी। टिकट का आश्वासन देने के बाद भी उनका टिकट काट दिया जाता था।

धीरज पटेरिया: 29 मई को भारतीय जनता युवा मोर्चा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने कांग्रेस छोड़कर दोबारा भाजपा जॉइन की। धीरज 2018 में जबलपुर से विधायक का निर्दलीय चुनाव लड़ चुके हैं। चुनाव में इन्होंने भाजपा को नुकसान पहुंचाया था। पूर्व मंत्री शरद जैन को हार का सामना करना पड़ा था।

शिवराज सिंह यादव: 17 फरवरी को ग्वालियर पहुंचे CM शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें भाजपा की सदस्यता दिलाई थी। शिवराज सिंह यादव के साथ कांग्रेस के करीब 1 हजार कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हुए थे। शिवराज ग्वालियर में ओबीसी वर्ग के बड़े नेता माने जाते हैं। वे युवा नेता जिला पंचायत सदस्य के अलावा कांग्रेस के खेल प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। इनको भाजपा में लाने में मंत्री भरत कुशवाह की मुख्य भूमिका रही।

दुर्गेश वर्मा: 2 जनवरी 2023 को मध्यप्रदेश आदिवासी कांग्रेस के पूर्व प्रदेश सचिव और धार जिला कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रवक्ता ने प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की मौजूदगी में कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा। वे धार जिले के डही क्षेत्र में कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाते हैं। वर्मा की माताजी फूलकुंवर बाई मंडी डायरेक्टर एवं डही के गाजगोता में सरपंच रही हैं। दुर्गेश वर्मा की बहन नगर परिषद डही की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं।

2022 के अंत में दो बड़े नेताओं ने छोड़ दिया था भाजपा का साथ

इससे पहले साल 2022 के अंत यानी 25 नवंबर को कमलनाथ के राइट हैंड माने जाने वाले उनके मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था। ये तब हुआ था, जब मध्य प्रदेश में राहुल गांधी की 5 दिन की भारत जोड़ो यात्रा का तीसरा दिन था। सलूजा सिख समुदाय से आते हैं और इंदौर के रहने वाले हैं। वे कमलनाथ के साथ लंबे समय से जुड़े हुए थे।

श्योपुर जिले की विजयपुर विधानसभा के पूर्व विधायक बाबूलाल मेवरा अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। केंद्रीय कृषि मंत्री व मुरैना-श्योपुर सांसद नरेंद्र सिंह तोमर ने मेवरा और उनके समर्थकों को पार्टी की सदस्यता दिलाई। दल बदलने की ये प्रक्रिया एमपी में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के 5वें दिन हुई थी।

एक्सपर्ट  …. ये सारा टिकट पाने का खेल है

वरिष्ठ पत्रकार …कहते हैं, ‘ये पहले से तय था कि चुनाव के वक्त सिंधिया कैंप में भगदड़ मचेगी। वे वापस कांग्रेस में आएंगे। जो नेता भाजपा छोड़ रहे हैं, उनको पूरा अंदाजा है कि इन चुनावों में भाजपा उनको टिकट नहीं देगी। इनमें कई बड़े सिंधिया समर्थक हैं, जिनको लगता है कि साढ़े तीन साल से वो उपेक्षित रहे हैं इसलिए उन्होंने ऐसा फैसला लिया। ये सभी लोग सिर्फ सिंधिया समर्थक टैग बनकर रह गए थे। ये भाजपा के नेता बन ही नहीं पाए। सबको ये बात तय लगी कि इन चुनावों में न उनकी राय चलेगी, न ही कोई बात मानी जाएगी। इस कारण उन्होंने अपनी पुरानी पार्टी यानी कांग्रेस का रुख किया।

[टिकट के लिए पार्टी छोड़ रहे विधायक-पूर्व विधायक:भाजपा के 31 बड़े नेता कांग्रेस में, इनमें 25% सिंधिया समर्थक; कांग्रेस से जाने वालों में पूर्व मंत्री भी ]

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