मोदी बनाम अन्य और ‘भारत’ बनाम ‘इंडिया’ का संदेश !
मोदी बनाम अन्य और ‘भारत’ बनाम ‘इंडिया’ का संदेश
फिर सरकार के अधिकृत पत्रों में भारत शब्द के उपयोग पर विपक्ष आंदोलित क्यों हो रहा है? कांग्रेस और उसके सहयोगी-दलों की नाराजगी का कारण यह है कि भारत उनके पैरों तले की जमीन खींच लेता है। जब 28 दलों की विपक्षी लामबंदी ने अपने गठजोड़ के लिए इंडिया नाम चुना था, तब राहुल गांधी और ममता बनर्जी इस बुद्धिमत्तापूर्ण नामकरण का श्रेय लेने की होड़ में नजर आए थे। नीतीश कुमार भी यह कहने से नहीं चूके कि बुनियादी विचार तो उन्हीं का था। एक विपक्षी नेता ने कहा, अब यह इंडिया बनाम एनडीए की जंग है, और इंडिया के विरोध में कौन वोट डाल सकता है?
भाजपा इससे परेशान थी। उसने अपनी छवि इंडिया फर्स्ट के नारे के इर्द-गिर्द निर्मित की थी। लेकिन इंडिया गठबंधन ने सुर्खियां हासिल कर लीं। भाजपा नेता सोचने लगे कि क्या इंडिया का नाम मतदाताओं को भावनात्मक रूप से आकृष्ट नहीं करेगा? अगर इससे दो प्रतिशत अंकों का भी अंतर आता हो तो स्पष्ट जीत और चौंकाने वाली हार का फर्क निर्मित हो सकता था।
प्रधानमंत्री 2024 के चुनाव को मोदी बनाम अन्य बनाना चाह रहे थे, लेकिन मोदी बनाम इंडिया एक दूसरी ही कहानी हो जाती है। यही कारण था कि ‘इंडिया’ के नहले पर भाजपा ने ‘भारत’ का दहला चला गया है। जी-20 के प्रेसिडेंट्स डिनर आमंत्रण पर भारत शब्द का इस्तेमाल करके भाजपा ने विपक्ष को राजनीतिक संदेश दे दिया कि अगर आपके पास इंडिया है तो हमारे पास भारत है। अब 2024 का चुनाव दो मोर्चों पर लड़ा जाएगा : मोदी बनाम अन्य और भारत बनाम इंडिया।
इनके माध्यम से दिए जाने वाले संदेश सूक्ष्म हैं। पहला संदेश यह है कि मोदी को चुनौती देने के लिए 28 नेताओं को एक होना पड़ा। एक के सामने 28 का यह नैरेटिव मोदी के सामने विपक्षी नेताओं के कद को घटाने वाला है। दूसरा संदेश यह है कि भारत उभरता हुआ राष्ट्र है, जबकि इंडिया अंग्रेजीभाषी, सम्भ्रांत, कुलीनों का प्रतिनिधित्व करता है।
ये दोनों ही संदेश 2024 के चुनावों को ध्यान में रखकर आम मतदाताओं को लुभाने के लिए रचे गए हैं। ये कितने कारगर साबित होते हैं, यह व्यावहारिक जरूरतों के आधार पर तय होगा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह होगा कि इंडिया मोर्चे के द्वारा राज्यों के स्तर पर सीटों का बंटवारा कितनी दक्षता से किया जाता है।
उनका लक्ष्य होगा 400 से अधिक सीटों पर भाजपा से सीधे मुकाबला करना। इसमें बंगाल, पंजाब, केरल जैसे राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों की ताकत मायने रखने वाली है। राजस्थान और मध्यप्रदेश जैसे हिंदी पट्टी के राज्य पहले ही भाजपा बनाम कांग्रेस की आमने-सामने की लड़ाई का मोर्चा बने हुए हैं। दक्षिण में आंध्र और तेलंगाना इंडिया का समर्थन नहीं करेंगे। केरल के भी लेफ्ट और कांग्रेस से मधुर सम्बंध नहीं हैं। कर्नाटक में कांग्रेस के सामने भाजपा-जेडीएस गठबंधन की चुनौती होगी। तमिलनाडु में भाजपा का जनाधार सीमित है और अन्नामलै की यात्रा से इसमें ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है। भारत शब्द का उपयोग कितना प्राचीन है? दीपांकर डे सरकार के अनुसार, भुबनेश्वर, ओडिशा की हाथीगुम्फा के अभिलेखों में इसके पहले प्रमाण मिलते हैं। कलिंग के राजा खारवेल (50 ई.पू.) के साम्राज्य का वर्णन करते हुए यह अभिलेख कहता है कि अपने शासनकाल के दसवें वर्ष में उन्होंने भारतवर्ष की विजय का अभियान छेड़ा। वे कहते हैं कि भारत या भारतवर्ष शब्द से भारतीयों का गहरा भावनात्मक लगाव है और कोई भी इसे ठेस नहीं पहुंचाना चाहेगा। खुद पं. नेहरू ने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में लिखा है कि भारत माता का मतलब है उसके लोग और उसकी जीत का मतलब है उसके लोगों की जीत।
दो साल पहले ओपन मैगजीन में मैंने एक कॉलम लिखा था, जिसका शीर्षक था : ‘द राइज़ ऑफ भारत’। लेख में कहा गया था कि ब्रिटिशों ने कारोबार के मकसद से अपना ध्यान भारत के बड़े शहरों पर केंद्रित किया था और छोटे कस्बे और गांव हाशिए पर चले गए थे।
अनेक राजनेता इंडिया और भारत के बीच निर्मित इस आर्थिक-सांस्कृतिक शक्ति-संतुलन से अनभिज्ञ थे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे परखा है और गांवों-कस्बों के लिए कल्याणकारी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया। वह लेख तब लिखा गया था, जब दूर-दूर तक इंडिया गठबंधन के चर्चे तक नहीं थे!
(ये लेखक के अपने विचार हैं)