नसबंदी के अलावा भी हैं सुरक्षित और बेहतर विकल्प

नसबंदी के अलावा भी हैं सुरक्षित और बेहतर विकल्प

परिवार नियोजन : भारत में जनसंख्या नियंत्रण का पूरा भार महिलाएं ही सहती हैं, विशेषकर नसबंदी के मामलों में

सफलता और उसके साथ मिलने वाली शाबाशी अनेक सवालों को छिपा सकने में समर्थ हो सकती है। परिवार नियोजन और उसके तरीकों की पहुंच बढ़ाने एवं अपनाने के क्षेत्र में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। जनसांख्यिकीय अनुप्रयोग में जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए जिस मुख्य कारक पर ध्यान दिया जाता है, वह है – कुल प्रजनन दर या टीएफआर जो कि बच्चे पैदा करने की उम्र वाले हर जोड़े के बच्चों की संख्या है, जो जीवित रह सकते हैं और बच्चे पैदा करने की उम्र तक पहुंच सकते हैं। आदर्श प्रजनन दर 2.1 है। इसे प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता भी कहा जाता है।

वर्ष 2016 तक, भारत के सभी जिलों में से लगभग आधे जिलों ने निम्न-प्रतिस्थापन प्रजनन क्षमता हासिल की थी और 15 फीसदी जिलों में कुल प्रजनन दर 3.0 से ज्यादा थी। लिहाजा ‘मिशन परिवार विकास’ (एमपीवी) नामक परिवार कल्याण कार्यक्रम शुरू किया गया। इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों में टीएफआर कम करना था जहां यह अधिक थी। यह कार्यक्रम काफी हद तक सफल रहा है। ‘ज्यादा फोकस’ किए गए सात राज्यों में से तीन राज्य अपने टीएफआर को लगभग 2.0 तक कम करने में सक्षम रहे हैं। यह एमपीवी के वर्ष 2025 के लिए निर्धारित 2.1 के लक्ष्य से कम है। ये तीन राज्य हैं – मध्य प्रदेश, राजस्थान और असम। ये उन सात राज्यों में हैं, जिनके 146 जिलों की पहचान मूल रूप से ‘ज्यादा प्रजनन’ वाले क्षेत्रों के रूप में की गई थी। दो अन्य राज्य छत्तीसगढ़ (वर्ष 2020 में टीएफआर 2.2) और झारखंड (वर्ष 2022 में टीएफआर 2.26) के करीब आ रहे हैं, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार को एमपीवी द्वारा तय 2.1 के लक्ष्य तक पहुंचने में अधिक वक्त लगेगा। कुछ जिलों में संख्या के लिहाज से परिणाम तो अच्छे दिखते लगते हैं, लेकिन कई छिपी हुई समस्याएं भी हैं। उदाहरण के लिए, परिवार नियोजन के लिए सबसे प्रचलित तरीका सर्जरी के जरिए बन्ध्याकरण है। यह सुविधानजक है, लेकिन महिलाओं के लिए हमेशा ही अच्छा नहीं रहा है। नसबंदी के बाद महिलाओं को होने वाले अंतहीन समस्याओं के कई उदाहरण हैं। राजस्थान के डूंगरपुर जिले की काली का ही एक उदाहरण है। उसने तीन बच्चों को जन्म देने के बाद नसबंदी कराई थी। कुछ साल पहले उसके दो बच्चों की मौत हो गई और अब पुरानी स्थिति पाने के लिए ऑपरेशन आसान नहीं है। इस जटिल समस्या के बावजूद यह तरीका लोकप्रिय बना हुआ है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण( एनएफएचएस-5) 2019-20 के अनुसार विवाहित महिलाओं में से 36.3 ने यह विकल्प चुना। जिन जिलों में ‘मिशन परिवार विकास’ कार्यक्रम चलाया गया, वहां भी महिलाओं ने यह विकल्प चुना। एमपीवी उन्हीं जिलों में चलाया गया जहां पिछड़ापन है, स्वास्थ्य देखभाल की खराब डिलीवरी है, इसलिए यहां महिला नसबंदी का नकारात्मक पक्ष अधिक स्पष्ट है। आमतौर पर, विकास के साथ टीएफआर स्वाभाविक रूप से कम हो जाता है क्योंकि बच्चों के जीवित रहने की दर बढ़ती है और समुदाय स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। इसीलिए जनसंख्या, संख्या का मामला कम, विकास का मामला अधिक है।

आम तौर पर, महिला नसबंदी जैसे स्थायी तरीके तब अपनाए जाते हैं, जब दंपती और ज्यादा संतान के इच्छुक नहीं होते। लेकिन ग्रामीण इलाकों में, खासकर आदिवासी समुदायों में आज भी जब विभिन्न वजहों से बच्चों और युवा वयस्कों की मौत हो जाती है, तब मुश्किल हो जाती है। ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहां महिलाओं ने दो-तीन बच्चों को जन्म देने के बाद नसबंदी का विकल्प चुना और किसी दुर्घटनावश संतान नहीं रही। ऐसे में दुबारा सर्जरी करना असंभव तो नहीं, बहुत मुश्किल जरूर है और परिवार पर हुआ आघात अंतहीन है। महिला नसबंदी की बढ़ती स्वीकार्यता के बीच ये दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम हैं, जो एमपीवी वाले जिलों में बदतर हो गए हैं। कमजोर स्वास्थ्य ढांचा जैसी कई समस्याएं हैं, जो मौत तक का कारण बन जाती हैं। यह वाकई चिंताजनक है। लोकसभा में वर्ष 2018 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने 2014-2017 में नसबंदी के बाद कुल 358 मौतें होने की जानकारी दी थी। एनएफएचएस-3 से एनएफएचएस-5 की अवधि में ग्रामीण क्षेत्रों में महिला नसबंदी (वर्तमान में विवाहित महिलाओं के प्रतिशत के रूप में) की संख्या राजस्थान में 32.2 फीसदी से बढ़कर 44.5 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 39.8 से बढ़कर 47.6 फीसदी और मप्र में 46.9 से बढ़कर 55.7 फीसदी हो गई है।

वरिष्ठ प्रसूति विशेषज्ञों का सुझाव है कि ऑपरेशन अंतिम विकल्प होना चाहिए, क्योंकि ऑपरेशन और टांका लगाने में जोखिम होता है। इसलिए अन्य सुरक्षित तरीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। एक तथ्य यह भी है कि भारत में जनसंख्या नियंत्रण का पूरा भार महिलाएं ही सहती हैं, विशेषकर नसबंदी के मामलों में। कई अन्य विकल्पों के आ जाने से आज महिलाओं के लिए नसबंदी से ‘इनकार’ करना ज्यादा संभव हुआ है। ये उपाय लगभग स्थायी होते हैं जैसे कॉपर-टी या अन्य हार्मोनल उपकरण लंबी अवधि के लिए प्रभावी हैं। इन उपायों के प्रति विश्वास बढ़ाने के लिए डॉक्टरों और नर्सों के प्रशिक्षण, इन तरीकों को उपलब्ध कराने और इनसे जुड़े डर और मिथकों को दूर करने की आवश्यकता होगी। पीएचसी व उप-केंद्रों में डॉक्टरों और कुशल कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने पर भी ध्यान देना होगा।

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