बांधवगढ़ में 7 महीने में 11 टाइगर की मौत ?

बांधवगढ़ में 7 महीने में 11 टाइगर की मौत:आपसी संघर्ष में मर रहे हैं, इंसानों की जान लेने से भी नहीं चूक रहे

 पूरी दुनिया में मशहूर मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व अब मौत के मामलों से चर्चा में है। यहां पिछले 7 महीनों में 11 बाघों की मौत हो चुकी है। टाइगर रिजर्व के अफसरों टेरिटोरियल फाइट को इसकी वजह बता रहे हैं। दूसरी ओर एक्सपर्ट का कहना है कि कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट के लिए विभाग के पास कोई प्लान नहीं है, जिससे बाघों की मौतों को रोका जा सके।

बीते एक महीने में इंसानों पर बाघ के हमले की भी कई घटनाएं सामने आई हैं। पिछले एक सप्ताह में तीन घटनाएं ऐसी सामने आई हैं, जिसमें एक की मौत और दो गंभीर रूप से घायल हुए हैं। बाघों की मौतों, इंसानों पर अटैक और तमाम बातों के बीच …….ने जाना कि मामला कितना गंभीर है। बाघों की मौतों को एक्स्पर्ट्स बहुत ही चिंताजनक मानते हैं। क्योंकि, बीते 3 महीने में ही 7 बाघों की मौत हुई है। इनमें से 4 मौतें तो बीते डेढ़ महीने के अंदर हुई है। इस लिहाज से हर महीने औसतन दो बाघों की मौत हो रही है। यह वाइल्ड लाइफ में औसत से ऊपर एक्स्ट्रीम की कैटेगरी में आता है। 

सेंट्रल इंडिया में बाघों की सबसे अच्छी डेंसिटी बांधवगढ़ में ही

बांधवगढ़ और आसपास के टेरिटोरियल फॉरेस्ट में बाघों की डेंसिटी सबसे ज्यादा है। रॉयल बंगाल टाइगर्स के लिए यह टाइगर रिजर्व खासा लोकप्रिय है। यही कारण है कि टूरिज्म के लिहाज से यह लोगों की पहली पसंद है। ऐसे में इस तरह के टकराव काफी चिंताजनक हैं। अभी यहां चिन्हित बाघों की संख्या 165 हैं, मगर वास्तविक संख्या इससे ज्यादा बताई जाती है। अनुमान है कि बांधवगढ़ और आसपास के जंगलों में यह संख्या बहुत आसानी से 200 के पार जा सकती है।

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व का कुल एरिया 1161 वर्ग किलोमीटर है। इसका कोर एरिया 625 वर्ग किलोमीटर और बफर एरिया 536 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसके अलावा उमरिया और शहडोल के टेरिटोरियल फॉरेस्ट में भी बाघों की अच्छी तादाद है। मगर टूरिस्ट्स सिर्फ 105 वर्ग किलोमीटर के एरिया तक ही घूम सकते हैं, जिसे ताला रेंज के नाम से जाना जाता है। टाइगर रिजर्व के कोर जोन को चार और हिस्सों मग्धी, कल्लवाह, खितौली व पनपथा में बांटा गया है।

बढ़ती डेंसिटी, कम पड़ता जंगल और रिजर्व के अंदर आवासीय क्षेत्र टकराव की वजह

एसडीओ सुधीर मिश्रा बताते हैं कि बांधवगढ़ में 132 गांव इको सेंसेटिव जोन में आते हैं, जहां तक बाघों और अन्य जंगली जानवरों का मूवमेंट हो सकता है। इसके अलावा बफर जोन में 96 और कोर एरिया में 10 गांव हैं। एक तरफ बढ़ती टाइगर डेंसिटी और दूसरी तरफ बड़ी संख्या में रिजर्व के अंदर गांवों के होने से इंसानों और बाघों का एक-दूसरे से आमना-सामना होना आम हो गया है। आसपास का पूरा एरिया आदिवासी क्षेत्र है। यह एक ऐसा टाइगर रिजर्व है, जहां कोर और बफर जोन में भी गांव हैं।

मिश्रा का कहना है कि कई सालों से इनके विस्थापन की भी प्रक्रिया चल रही है और कुछ गांव विस्थापित भी किए गए हैं। कोर और बफर जोन के गांवों में बिजली व सड़क ना होने के बावजूद लोग उसे छोड़कर जाना नहीं चाहते। बाघों के मौत और बढ़ते इंसान और टाइगरों के बढ़ते टकराव को एडिशनल पीसीसीएफ शुभरंजन सेन आम बात मानते हैं।

शुभरंजन कहते हैं, “बांधवगढ़ में जो हो रहा है उसमें कुछ नया नहीं है। बांधवगढ़ में शुरुआत से ही ह्यूमन टाइगर कॉन्फ्लिक्ट और टेरिटोरियल फाइट से बाघों की सबसे ज्यादा मौतें होती आई हैं। हमारे लिए चिंता का विषय तब है, जब बाघों का शिकार होता है। टेरिटोरियल फाइट तो एक सच्चाई है और उसकी वजह से हो रही मौत को रोका नहीं जा सकता। इसका बढ़ती डेंसिटी से कोई लेना-देना नहीं है। ह्यूमन टाइगर कॉन्फ्लिक्ट भी बढ़ेंगे अगर रिजर्व के भीतर जब इतनी बड़ी संख्या में गांव होंगे तो। अब इसमें कोई क्या ही कर सकता है?

अब बाघों की मौत, इंसानों पर अटैक के ये मामले जान लीजिए…

हर महीने दो मौत, जांच में वजह टेरिटोरियल फाइट बताई

नेशनल टाइगर कन्वर्जेशन अथॉरिटी का रिकॉर्ड कहता है कि बांधवगढ़ में बाघों की सबसे ज्यादा मौतें पिछले 10 सालों में हुई हैं। 2012 से 2022 के बीच बांधवगढ़ में अलग-अलग कारणों से 66 बाघों की मौत हुई है। 2023 में भी मार्च से अब तक 11 मौतें हुई हैं। सबसे पहले इसी साल 2 मार्च को 18 माह की मादा शावक RF-374 की खितौली रेंज में मौत हुई थी। जांच में मौत का कारण आपसी संघर्ष यानी टेरिटोरियल फाइट बताया गया। जब जंगली जानवर अपने इलाके के लिए आपस में लड़ते हैं उसे टेरिटोरियल फाइट कहते हैं।

दूसरी मौत 1 अप्रैल को मग्धी रेंज में हुई थी। जांच में इसका कारण अब तक अज्ञात है। तीसरी मौत पनपथा बफर रेंज में एक नर बाघ शावक की हुई, जिसकी उम्र 3-4 माह थी। 3 अप्रैल को हुए इस मौत को जांच में बाघ द्वारा हमला बताया गया। पनपथा बफर में ही अगले महीने 8 मई को 10-11 वर्ष के एक वयस्क बाघ की मौत हो जाती है। इसका भी कारण आपसी संघर्ष बताया गया।

पांचवीं मौत 18 मई को टाइगर रिजर्व के कोर जोन ताला रेंज में हुई। यहां भी टेरिटोरियल फाइट में एक मादा बाघ शावक की मौत हो गई। जुलाई में दो मौतें मानपुर बफर जोन में सिर्फ 5 दिनों के अंतराल पर हुई। इसमें 2-3 वर्ष की एक मादा बाघ की मौत का कारण अज्ञात बताया गया और दूसरे नर बाघ की मौत का कारण प्राकृतिक था। अगस्त में भी दो मौतें हुईं। 10 अगस्त को पनपथा बफर में सात माह के शावक और 27 अगस्त को मग्धी में 4 वर्ष की मादा बाघ का शव मिला। मगर वन विभाग के कान तब खड़े हो गए जब 16 सितंबर को मानपुर रेंज में सिर कटा हुआ एक बाघ का शव मिला। फिर उसके दो दिन बाद ही ताला रेंज के चरण गंगा नदी के किनारे 5 वर्ष के वयस्क नर बाघ का शव मिला।

तीन दिन में बाघों के तीन हमले, एक की मौत

बांधवगढ़ में बीते कुछ महीनों से बाघ और इंसानों में टकराव के मामले भी बढ़ गए हैं। जंगली जानवरों के हमले से इस वर्ष 12 मौतें हुई हैं और 49 लोग घायल हुए हैं। इनमें अधिकांश मामले बाघों के हमले के हैं।

बीते एक सप्ताह में इंसानों पर बाघ के हमले की तीन घटनाएं हुई हैं, जिसमें एक बुजुर्ग व्यक्ति की मौत भी हो गई। बाघ बीते कुछ समय से पालतू जानवरों के शिकार के लिए गांव की तरफ लगातार बढ़ रहे हैं। इसी तरह 19 सितंबर को एक बाघ अपने शिकार की तलाश में पतौर परिक्षेत्र के बमौर गांव पहुंच गया था। बाघ ने आंगन में बंधी भैंस का शिकार किया। आवाज सुनकर 60 वर्षीय दम्मा यादव बाहर निकले तो बाघ ने उन पर भी हमला बोल दिया।

घायल को पहले जिला अस्पताल ले जाया गया और उसके बाद जबलपुर रेफर कर दिया गया, मगर रास्ते में ही बुजुर्ग ने दम तोड़ दिया। इसके दो दिन पहले बकेल परिक्षेत्र रविवार और सोमवार को भी बकेल परिक्षेत्र में बाघ के हमले से दो ग्रामीण गंभीर घायल हो गए थे। तीन दिन में लगातार ऐसी तीन घटनाओं से बांधवगढ़ के गांवों में दहशत का माहौल है। बीते कुछ महीनों में ये घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं।

वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट बोले- वन विभाग के पास प्लान ही नहीं

वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे वन विभाग पर यह आरोप लगाते हैं कि मध्यप्रदेश और बांधवगढ़ में वन्यजीव संरक्षण से ज्यादा ध्यान उनका टूरिज्म को बढ़ाने का है। पहली प्राथमिकता जंगल और वन्यप्राणियों का संरक्षण होता है। बीते कुछ समय में यहां ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिसमें ये जानवरों या बाघों के मौत को प्राकृतिक या टेरिटोरियल फाइट बताकर उस पर पर्दा डाल देते हैं। कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट के लिए इनके पास ऐसा कोई प्लान नहीं है जिससे कि इन मौतों को रोका जा सके।

रामगोपाल सोनी बताते हैं कि इस समस्या से निपटा जा सकता है, अगर वहां स्वतंत्र रूप से ऐसे अधिकारी को तैनात किया जाए जो इन कॉन्फ्लिक्ट्स को सुलझाने में एक्सपर्ट हों। ऐसा नहीं है कि हमारे पास ऐसे प्रशिक्षित अधिकारी नहीं हैं, मगर यह भी सच है कि हर अधिकारी इससे डील नहीं कर सकते। प्रशिक्षित होने के बावजूद हर अधिकारी के कॉन्फ्लिक्ट रिजॉल्यूशन के लिए अलग एटीट्यूड होते हैं, तो जरूरी है कि हमें यह जिम्मेदारी किसी ऐसे व्यक्ति को देनी चाहिए जो पूर्व में ऐसी समस्याओं को सुलझाने में सफल रहे हैं।

टेरिटरी के लिए कितने एरिया की जरूरत होती है बाघ को?

बाघ अपनी टेरिटरी जरूर बनाते हैं, मगर यह कोई निश्चित नहीं है कि कितनी जगह उनके लिए पर्याप्त है? वो अपनी टेरिटरी को एक्सप्लोर करते-करते कई बार दो-चार सौ किलोमीटर दूर भी निकल जाते हैं या फिर भोजन और पानी की तलाश में भी। टेरिटोरियल फाइट में ज्यादा मौतों का अर्थ यह हुआ कि बाघ अपनी टेरिटरी से बाहर दूसरे बाघ की टेरिटरी में बहुत ज्यादा जा रहे हैं। इसके दो कारण हो सकते हैं। अपनी टेरिटरी बढ़ाने के लिए, या फिर भोजन और पानी की तलाश में, तो सवाल कि क्या बांधवगढ़ में बाघों के लिए जंगल कम पड़ गए हैं या फिर शिकार के लिए शाकाहारी वन्यजीवों की कमी हो गई है?

बाघों में सबसे अधिक संख्या मादा बाघों की होती है। नर बाघ का स्वभाव दूसरे नर के प्रति आक्रामक होता है, इसलिए बाघों के झुंड में एक नर और एक से अधिक मादा बाघ होती है। दूसरा झुंड मादा बाघों का होता है, जिसमें वो अपने शावकों को लेकर नर बाघ से अलग हो जाती है। स्टडी बताती है कि ऐसे एक ग्रुप को न्यूनतम 10 वर्ग किलोमीटर की जरूरत होती ही है। औसतन यह 15 से 20 वर्ग किलोमीटर तक बढ़ती है। बाघ अपनी टेरिटरी को एक्सप्लोर करने के लिए अगर ज्यादा आगे नहीं बढ़ता तो आमतौर पर इतने एरिया में उसका मूवमेंट पाया जाता है।

बाघ सालभर में 60 जानवरों का शिकार करता है

वयस्क बाघ को भोजन के लिए सप्ताह में औसतन एक या एक से अधिक हिरण के साइज के शाकाहारी वन्यजीव की जरूरत होती है। स्टडी बताती है कि एक सफल शिकार के लिए उसे औसतन 40 बार प्रयास करने पड़ते हैं। बाघों के लिए एक अच्छी टेरिटरी वो होती है, जहां शाकाहारी वन्यजीवों और पानी की पर्याप्त उपलब्धता होती है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या एक अच्छी टेरिटरी की तलाश में बाघों के बीच यह टेरिटोरियल फाइट हो रही है? क्या शिकार की तलाश में ही बाघ पालतू जानवरों का शिकार करने गांव तक पहुंच जा रहे हैं?

वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट विदाउट टियर्स के लेखक और रिटायर्ड IFS ऑफिसर रामगोपाल सोनी बताते हैं कि बांधवगढ़ में टाइगर डेंसिटी काफी है, इसलिए मुझे लगता है कि अन्य जगहों की तुलना में वहां प्रे बेस (शिकार के लिए शाकाहारी वन्यजीव) कम हो गए हैं। किसी जगह पर प्रे बेस इस वजह से भी कम हो जाती है कि वहां पानी की समस्या हो जाती है। हिरण या चीतल उन लोकेशंस पर ही पाए जाते हैं, जहां पानी की अच्छी उपलब्धता होती है। बाघों को भी पानी की बहुत ज्यादा जरूरत होती है, जिसके लिए वो टेरिटरी बदलने की कोशिश करते हैं। ये मुख्य वजह हो सकती है जिससे टेरिटोरियल फाइट बढ़ रही हैं।

शिकार की कमी को पूरा करने के लिए गाय-भैंस का शिकार कर रहे हैं

रिटायर्ड अधिकारी और वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट रामगोपाल सोनी बताते हैं बाघ अपने भोजन के लिए कैटल्स का भी बड़ी संख्या में शिकार करता है। भोजन के लिए पालतू जानवरों पर उनकी बड़ी निर्भरता होती है। गाय-भैंस जैसे जानवरों का शिकार होने पर विभाग तय मानकों के अनुसार मालिकों को इसका मुआवजा भी देती है। फिर भी वो मुआवजा कभी भी उनके लिए पर्याप्त नहीं होता। इस कारण यह ह्यूमन टाइगर कॉन्फ्लिक्ट की बड़ी वजह बनती है। बाघ जब लोगों के पालतू जानवरों का शिकार करता है तो वो बचाव में आगे आ जाते हैं, जिसके चलते बाघ उन पर भी हमला कर देता है।

मवेशी के शिकार के बाद जहर मिला देते हैं लोग

कई बार लोग बाघों द्वारा शिकार किए गए पालतू जानवरों में जहर मिला देते हैं। कई बार वो जहर माइल्ड होता है जिसकी वजह से बाघों की डेथ नेचुरल लगता है, इसलिए बहुत जरूरी है कि लोगों के साथ अधिकारियों का बेहतर समन्वय हो। शिकार होने पर जितनी जल्दी हो सके उन्हें मुआवजा दिया जाए और पर्याप्त दिया जाए। लोगों को इस तरह से जागरूक किया जाए कि वो ऐसा काम ना करें। गांवों का कितना भी विस्थापन कर दिया जाए, उनके एरिया तक बाघ तो पहुंचेंगे ही।

बीते दस सालों में 270 बाघों की मौत के साथ एमपी शीर्ष पर

2012 से 2022 तक मध्यप्रदेश में 270 बाघों की मौत हुई है। पिछले दस साल में सबसे ज्यादा मौतें बांधवगढ़ में हुई है। 2012 से 2022 के बीच यह संख्या 66 है। NTCA का रिकॉर्ड बताता है कि पूरे देशभर में इस वर्ष बीते दस सालों की तुलना में बाघों की सबसे ज्यादा मौत हुई है। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया के आंकड़ों के अनुसार 2023 में देशभर में अब तक 161 बाघों की मौत हुई है। इनमें 43 मामले बाघों के शिकार के दर्ज किए गए हैं। यह आंकड़ा बीते दस सालों में सर्वाधिक है।

(सभी फोटो: बांधवगढ़ रिजर्व सोशल मीडिया से लिए गए हैं।)

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