तीनों राज्यों में चुनाव से तय होगा कांग्रेस का भविष्य !

विधानसभा चुनावों के नतीजे कांग्रेस का भविष्य तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे। इनमें मिली हार कांग्रेस के साथ ‘इंडिया’ की उम्मीदों पर भी पानी फेर सकती है।हिमाचल के बाद कर्नाटक में मिली जीत से कांग्रेस उत्साहिततीनों राज्यों में चुनाव से तय होगा कांग्रेस का भविष्य

राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों में साल के आखिर में होने वाले चुनावों की घोषणा भले ही नहीं हुई हो, लेकिन चुनावी धूमधड़ाका तो शुरू हो चुका है। चुनाव तेलंगाना व मेघालय भी होंगे, लेकिन नजर राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों पर लगी है। चुनावी नतीजों का जोड़, बाकी, गुणा, भाग शुरू हो गया है।

कांग्रेस साल 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में इन तीनों राज्यों में जीती थी, लेकिन मध्यप्रदेश में ‘ऑपरेशन लोटस’ ने कुछ महीने बाद ही कांग्रेस सरकार की ‘गिल्लियां’ बिखेर दीं। ऐसे में कांग्रेस के लिए मध्यप्रदेश में ‘जीती बाजी हारने’ का बदला लेने और राजस्थान-छत्तीसगढ़ में सत्ता बचाए रखने की कड़ी चुनौती है।

2019 के आम चुनावों में इन तीनों हिंदी भाषी प्रदेशों में कांग्रेस राज्य में सत्तासीन होने के बावजूद साफ हो गई थी। इस लिहाज से भी देखें तो इन तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव भाजपा से कहीं ज्यादा कांग्रेस के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें कांग्रेस को जीत मिलती है तो इससे 2024 के चुनावों में कांग्रेस के साथ ‘इंडिया’ गठबंधन को भी सकारात्मक ऊर्जा मिल सकती है, लेकिन इनमें से एक भी राज्य की हार ‘इंडिया’ पर विपरीत असर डाल सकती है। कारण साफ है कि पिछले दस साल में भाजपा ने जो ‘नैरेटिव’ सेट किया है, उसमें उसे अजेय माना जाने लगा था, लेकिन कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन और उसके रायपुर सम्मेलन के बाद कांग्रेस के ‘त्याग के लिए तैयार’ की पृष्ठभूमि में बने ‘इंडिया’ गठबंधन ने एक हल्की ही सही, उम्मीद की किरण दिखाई है। कांग्रेस इस किरण को गुम नहीं होने देना चाहेगी। बात तैयारी की करें तो पहले कई लोग मजाक में कह भी देते थे कि भाजपा तो शुरुआत से ही ‘गोल्ड मेडल’ की तैयारी में जुट जाती है और कांग्रेस सिर्फ परीक्षा पास करने के लिए ‘वन वीक सीरीज’ का सहारा लेती है, लेकिन अब यह अवधारणा भी कमजोर होने लगी है। हिमाचल के बाद कर्नाटक में मिली जीत से कांग्रेस उत्साहित भी है।

मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेताओं की आपसी खींचतान खत्म करने में कांग्रेस लगभग सफल रही है, लेकिन राजस्थान में अब भी लगता है कि थोड़ी चुनौती बाकी है। शायद इसलिए ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में तो जीत का दावा करते हैं, लेकिन राजस्थान में मुकाबला ‘कड़ा’ मानते हैं। हालांकि कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का ‘इंतजार’ खत्म नहीं होने के बहाने भाजपा में भी ऐसी ही खींचतान होने से कुछ आश्वस्त है और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह देते हैं कि राहुल के बयान को कांग्रेस कार्यकर्ता चुनौती के रूप में लेते हैं और मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ से अच्छा प्रदर्शन करेंगे। इसके बावजूद आंकड़े कहते हैं कि पिछले 30 साल में राजस्थान में न कांग्रेस की सरकार दुबारा बनी और न ही भाजपा की।

इन तीनों राज्यों में भाजपा किसी को चेहरा आगे नहीं करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर मैदान में उतरने को आतुर है तो कांग्रेस चेहरों की भीड़ में खींचतान से कुछ विचलित है। इधर आप, बसपा व एआइएमआइएम से वोट कटने का खतरा है। यह तय है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के नतीजे कांग्रेस का भविष्य तय करने में अहम भूमिका निभाने वाले हैं। यानी तीन राज्यों के नतीजे ‘बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी…..’ वाले साबित होंगे, कम से कम कांग्रेस के लिए तो।

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