कांग्रेस और सपा के बीच मतभेद साफ नजर आने लगे हैं ?

क्या कांग्रेस और समाजवादी पार्टी अब एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने की तैयारी में हैं?
कांग्रेस और सपा के बीच मतभेद साफ नजर आने लगे हैं. ऐसे में आने वाले चुनाव में दोनों पार्टियों का आपसी मतभेद इंडिया गठबंधन को भी नुकसान पहुंचा सकता है.
मध्य प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच मतभेद तीखी बयानबाजी में बदल चुके हैं. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कांग्रेस के खिलाफ आरपार का मन बना लिया है. दरअसल दोनों पार्टियों में सीटों का समझौता नहीं हो पाया है.  वहीं अखिलेश यादव ने ये भी कह दिया है कि कांग्रेस अपने ‘चिरकुट’ नेताओं से बयान न दिलवाए. 

अखिलेश यादव की इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दोनों पार्टियों में तल्खियां कितनी बढ़ गई हैं. दूसरी ओर यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने कहा है कि अखिलेश यादव बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. वह कुछ भी कह सकते हैं. लेकिन अगर वो मध्य प्रदेश में बीजेपी को हराना चाहते हैं तो उन्हें कांग्रेस का साथ देना चाहिए. दरअअसल अजय राय ने मध्य प्रदेश में प्रत्याशी उतारने पर समाजवादी पार्टी को निशाने पर लिया था. माना जा रहा है कि अखिलेश यादव का चिरकुट वाला बयान उन्हीं को लेकर है. 

बीजेपी के खिलाफ विपक्ष ने इंडिया गठबंधन बनाया है. लेकिन विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन में शामिल पार्टियों का सीटों को लेकर एकमत नहीं बन पा रहा है. फिलहाल मध्यप्रदेश में कांग्रेस द्वारा प्रत्याशियों की लिस्ट जारी होने के बाद समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच मतभेद की स्थिति साफ देखने को मिल रही है. शुक्रवार को जब मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ से अखिलेश यादव के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बेरुखी से जवाब दिया, “अरे भई छोड़ो अखिलेश वखिलेश को” इसके बाद उन्होंने ड्राइवर से गाड़ी आगे बढ़ाने के लिए कह दिया. ये साफ करती है कि दोनों पार्टियों के बीच मतभेद बढ़ गए हैं. 

कांग्रेस की लिस्ट जारी होने के बाद अखिलेश यादव ने ये चुनौती भी दे दी कि यूपी में उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. ऐसे में अब इंडिया गठबंधन में दरारें सार्वजनिक तौर पर दिखने लगी हैं. 

मध्य प्रदेश में क्यों नहीं बनी बाती
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस की ओर से जो लिस्ट जारी हुई है उसमें उस सीट पर भी प्रत्याशी उतार दिया गया है जहां पर बीते चुनाव में सपा ने जीत दर्ज की थी. समाजवादी पार्टी कांग्रेस से 6 सीटें मांग रही थी. कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से सपा नेताओं की रात एक बजे तक मीटिंग भी हुई, फिर भी बात नहीं बनी.

गुस्से में आगबबूला अखिलेश यादव ने कहा कि कांग्रेस ने सपा के साथ जो व्यवहार मध्य प्रदेश में किया है वैसा ही सपा उसके साथ यूपी में करेगी. बता दें कि बीते 2 दशक से ज्यादा समय से सपा कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के लिए रायबरेली से प्रत्याशी नहीं उतारती है. इन सब के बीच अब सवाल ये गहरा रहा है कि इंडिया गठबंधन की दो बड़ी पार्टियों के बीच इस तरह का विवाद गहराने से इस महागठबंधन का भविष्य खतरे में है.

मध्य प्रदेश में अखिलेश यादव का तर्क था कि वो सीटें जहां बीते चुनाव में सपा ने जीत हासिल की थी या फिर दूसरे स्थान पर रही, वो कांग्रेस छोड़ दे. दरअसल 2018 में हुए चुनाव में सपा बिजावर सीट जीतने में कामयाब रही थी.

इसके अलावा 6 सीटों पर उसके कैंडिडेट दूसरे नंबर पर रहे, ऐसे में सपा चाहती थी कि 7 सीटों पर सपा के उम्मीदवार चुनाव लड़ें, लेकिन कई दौर की बातचीत के बाद भी सीटों को लेकर सहमति नहीं बन पाई और एमपी प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने सभी सीटों पर अपने प्रत्याशियों का उतारने का फैसला कर लिया. इसके बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी नाराज होकर 22 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर दी.

लिस्ट जारी होने के बाद जब कमलनाथ से सवाल किए गए तो उन्होंने कहा कि सपा बीजेपी को हराने में साथ दे. वो अखिलेश यादव जी को धन्यवाद देतें हैं क्यों उनका उद्देश्य बीजेपी को हराने में है. जहां तक टिकट बंटवारे की बात है हमें भी अपनी स्थानीय स्थिति को देखना होता है. इसमें कुछ पेंच फंस जाते हैं. 

बता दें कि मध्यप्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस दो पार्टियां ही प्रमुख मानी जाती हैं. वहीं सपा को कांग्रेस के इस कदम से बड़ा झटका लग सकता है, लेकिन लोकसभा चुनाव में भी इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है.

अखिलेश यादव यूपी में दे सकते हैं कांग्रेस को झटका?
अखिलेश यादव में कांग्रेस के इस कदम से खासा नाराज हैं. उन्होंने इंडिया गठबंधन के औचित्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि उन्हें पता होता कि कांग्रेस धोखा देगी तो वो सपा नेताओं को ना तो एमपी कांग्रेस के नेताओं से मिलने भेजते और ना ही उनको सीटों की सूची देते और न फोन उठाते. 

कानपुर में ऑल इंडिया यादव महासभा के कार्यक्रम में शामिल हुए अखिलेश यादव ने पत्रकारों से हुई बातचीत में ये भी कहा कि आईएनडीआईए राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ लोकसभा चुनावों के लिए ही है या विधानसभा चुनावों के लिए भी है? अगर अभी विधानसभा चुनावों को लेकर गठबंधन नहीं है तो फिर भविष्य में यूपी विधानसभा के चुनाव में भी नहीं होगा.

इसके अलावा अखिलेश यादव ने ये भी स्पष्ट कर दिया कि यदि मध्यप्रदेश विधानसभा में कांग्रेस उन्हें सीटें देने को तैयार नहीं तो यूपी में सपा बड़े भाई की भूमिका में है. यूपी विधानसभा में सपा भी कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेगी. 

अखिलेश के इस बयान के बाद कांग्रेस के यूपी प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने भी पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस किसी के भरोसे में नहीं है. उनकी पार्टी की प्रदेश की सभी अस्सी लोकसभा सीटों पर तैयारी है. बाकी नेतृत्व जो तय करेगा वो किया जाएगा. उन्होंने कहा कि कांग्रेस का हर कार्यकर्ता बब्बर शेर है ये 2024 के लोकसभा चुनाव में सबको पता चल जाएगा. कांग्रेस का जनसैलाब सबको बहा ले जाएगा. 

अब दोनों पार्टियों के मतभेद एकदम खुलकर सामने आ गए हैं. इससे स्पष्ट होता है कि ये तकरार आने वाले लोकसभा चुनाव में भी जमकर देखने को मिल सकती है और सोनिया गांधी के लिए 1999 से रायबरेली सीट छोड़ती आ रही सपा लगभग 3 साल बाद इस सीट से भी अपना उम्मीदवार उतार सकती है.

कांग्रेस को पहले भी उठाना पड़ा ‘अतिउत्साह’ का खामियाजा
इससे पहले 2017 में भी अखिलेश यादव के सामने कांग्रेस को अतिउत्साह का खामियाजा उठाना पड़ा था. दरअसल बात 2017 में हुए यूपी चुनाव की है. यहां से कांग्रेस और सपा ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था. हालांकि इस साल हुए चुनाव में मोदी लहर कुछ ऐसी थी कि सपा 224 सीटों से सीधे 47 और कांग्रेस 28 सीटों से 7 सीटों पर सिमट गई. इसके बाद सीएम बने योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम बने केशव प्रसाद मौर्य ने अपनी-अपनी लोकसभा सीट गोरखपुर और फूलपुर से इस्तीफा दे दिया.

साल 2018 में गोरखपुर और फूलपुर में लोकसभा उपचुनाव की घोषणा हुई. अखिलेश यादव फिर कांग्रेस का समर्थन चाहते थे. लेकिन कांग्रेस आलामान की ओर से कोई खास तवज्जो नहीं दी गई. हालांकि, उस  वक्त कांग्रेस नेता रहे गुलाम नबी आजाद ने अखिलेश यादव से बातचीत की, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और सपा को मायावती की पार्टी की बीएसपी का समर्थन मिल चुका था. अखिलेश को अब कांग्रेस की कोई जरूरत नहीं थी. 

फिर भी जब गुलाम नबी आजाद ने अखिलेश से बात की तो कांग्रेस की ओर से उन्होंने दो में से एक सीट की भी मांग कर दी. अखिलेश का जवाब न में था.  जब गोरखपुर में अखिलेश यादव ने निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को सपा से लड़ने के लिए उतारा तो कांग्रेस ने यहां से एक मुस्लिम कैंडिडेट और गोरखपुर के मशहूर चिकित्सक डॉ सुरहिता करीम को टिकट दे दिया. हालांकि इस चुनाव में सपा उम्मीदवार प्रवीण निषाद ने साढ़े चार लाख वोट पाकर जीत हासिल की. वहीं कांग्रेस कैंडिडेट करीम को महज 19 हजार वोट मिले. ये सपा के सामने कांग्रेस की बड़ी हार थी.

इसके अलावा जवाहरलाल नेहरू की सीट रही फूलपुर में सपा ने नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल को टिकट दिया. कांग्रेस ने वहां से ब्राह्मण कैंडिडेट मनीष मिश्रा को उतार दिया. इस सीट से अतीक अहमद भी निर्दलीय चुनाव लड़े. हालांकि सपा ने इस सीट पर भी जीत हासिल की और कांग्रेस की जमानत जब्त हो गई. इसके बाद जब यूपी में कांग्रेस को अपनी क्षमत दिख गई तो कुछ समय बाद उसने लोकसभा और नूरपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में सपा-बसपा और रालोद के गठबंधन कैंडिडेट को समर्थन दिया.

I.N.D.I.A अलांयस में चुनाव से पहले ही साफ दिख रहे मतभेद
जहां एक ओर गठबंधन में शामिल पार्टियों के नेता एक साथ लोकसभा चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं, वहीं अब नेताओं में आपसी मतभेद मंच पर भी नजर आने लगे हैं.

मध्य प्रदेश में सीटों में सहमति न बन पाने के चलते अखिलेश यादव ने इंडिया गठबंधन पर सवाल खड़े करते हुए कांग्रेस को भी खूब खरी खोटी सुनाई. इसके अलावा कांग्रेस की ओर से  सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात से इस गठबंधन पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में कांग्रेस नेता अधीर रंजन राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर आक्रामक रूप से हमलावर हैं, जिसके चलते राज्य में कांग्रेस और टीएमसी में तनाव साफ दिखाई देता है. जब इंडिया गठबंधन की बैठक हुई थी उस वक्त अधीर के बयान का मुद्दा उठाया गया था. ममता बनर्जी गठबंधन में वामपंथी दलों की मौजूदगी और उनके योगदान पर सवाल खड़े कर रही हैं.

वहीं पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच के मतभेद हर दिन बढ़ते नजर आ रहे हैं, पंजाब में कांग्रेस अपने एक विधायक की गिरफ्तारी से नाराज दिख रही है. 

ऐसे में जिन राज्यों में विपक्षी पार्टियां गठबंधन में चुनाव लड़ने को लेकर स्पष्ट हैं वहां भी सीट शेयरिंग को लेकर तस्वीरें साफ नजर नहीं आ रही हैं. बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक सीट शेयरिंग को लेकर अब तक कोई फैसला नहीं हुआ है.

इसके अलावा डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन के सनातन पर दिए गए बयान को लेकर भी गठबंधन बैकफुट पर नजर आया. नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने उदयनिधि के इस बयान को I.N.D.I.A गठबंधन का सामूहिक बयान करार दिया. इसके चलते गठबंधन में शामिल बाकी नेता उदयनिधि के इस बयान से दूरी बनाते नजर आए. 

इन सभी मतभेदों को देखकर साफ नजर आता है कि अंदरुनी तौर पर गठबंधन में शामिल पार्टियों नेताओं को पता है कि चुनौती बेहद बड़ी है और बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की खासी जरूरत है, लेकिन ऐसा क्यों नहीं हो पा रहा है इसका जवाब किसी के पास नहीं है.

कैसा था गठबंधन का पिछला रिकॉर्ड
I.N.D.I.A गठबंधन को लेकर आशंकाएं पिछले रिकॉर्ड को देखकर भी जताई जा रही हैं. दरअसल 2019 में आम चुनाव से पहले भी ऐसी ही एकजुटता बनाने की कोशिशें दिखीं थी.

उस वक्त TDP सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू और बीआरएस लीडर केसीआर ने विपक्ष को बीजेपी के खिलाफ साथ लाने की पहल की थी.बीजेपी के पक्ष में आए एकतरफा चुनाव परिणामों ने गठबंधन की संभावनाओं को साफतौर पर खारिज कर दिया था.

अब ये दोनों नेता I.N.D.I.A का हिस्सा नहीं हैं. हालांकि गठबंधन नेताओं की मानें तो इस बार हालात कुछ और हैं. कांग्रेस सहित कई विपक्षी दल इस बात को मानते हैं कि आने वाला लोकसभा चुनाव उनके लिए करो या मरो वाली स्थिति में होगा.

हालांकि इंडिया गठबंधन के बाद NDA भी अपने गठबंधन को विस्तार देने में जुट गया है, लेकिन फिलहाल तमिलनाडु में AIADMK का बीजेपी से अलग होना पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है. सूत्रों की मानें तो अभी भी बीजेपी इस गठबंधन को बचाने की पुरजोर कोशिशों में लगी हुई है. 

कहा जा रहा है कि तमिलनाडु में बीजेपी की लीडरशिप इस  गठबंधन के टूटने का कारण बनी है. जिसे लेकर पार्टी के आला नेता इससे खासा नाराज भी हैं.

बहरहाल 2024 बहुत करीब है. ऐसे में राज्यों के छोटे-बड़े दल जिस गठबंधन में शामिल होंगे उन्हें ही फायदा मिलता नजर आ रहा है. अब सपा और कांग्रेस में चल रहे मतभेदों के बीच देखना होगा कि कौनसा अलायंस चुनाव से पहले एकजुट होता है और जनता की उम्मीदों पर खरा उतरते हुए अपनी मजबूत पकड़ बनाने में कामयाब हो सकता है.

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