ग्वालियर के अस्पतालों में 10 हजार बेड का फर्जीवाड़ा ?
गैप एनालिसिस की रिपोर्ट ….
ग्वालियर के अस्पतालों में 28113 पलंग, लेकिन एमपी पीसीबी में सिर्फ 18056 दर्ज; 10 हजार बेड का फर्जीवाड़ा; भोपाल में ऐसे 2008 बेड
प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों का फर्जीवाड़ा आए दिन किसी न किसी रूप में सामने आ रहा है। सीबीआई जांच में खुलासा हुआ था कि ग्वालियर में कई नर्सिंग कॉलेज कागजों पर चल रहे हैं। वहीं, अब मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) की गैप एनालिसिस रिपोर्ट में 10 हजार बेड का फर्जीवाड़ा उजागर हुआ है। ग्वालियर के अस्पतालों के 10,057 पलंग ऐसे हैं, जिनका पीसीबी में पंजीयन ही नहीं है। ये वह पलंग हैं, जो केवल कागजों में हैं।
वहीं, भोपाल के अस्पतालों में 2008 पलंग फर्जी हैं। विभाग में 22107 पलंग पंजीकृत हैं जबकि पीसीबी की रिपाेर्ट में 20099 पलंग ही दर्ज हैं। आंकड़ा इसलिए भी चौंकाने वाला है क्योंकि जबलपुर के अस्पतालों में कुल पलंग संख्या ही 9379 है। प्रदेश में सबसे ज्यादा 28,113 पलंग ग्वालियर में हैं जबकि भोपाल के अस्पतालों में 22,107 पलंग ही हैं। यहां बता दें कि बोर्ड के निर्देश पर प्रदेशभर में अस्पतालों के पलंगों (वर्ष 2022 के अनुसार) की गिनती की गई। साथ ही उसमें से निकले बायोमेडिकल वेस्ट के उत्सर्जन का भी विश्लेषण किया गया।
ग्वालियर में पलंग इसलिए ज्यादा
ग्वालियर में पलंगों संख्या ज्यादा होने का प्रमुख कारण नर्सिंग कॉलेज हैं। नियमानुसार, एक कॉलेज के पास कम से कम 100 पलंग के एक अस्पताल की उपलब्धता होनी चाहिए।, हकीकत ये हैं कि ग्वालियर में स्वास्थ्य विभाग की सांठगांठ से बड़ी संख्या में अस्पताल केवल कागजों में चल रहे हैं।
जिम्मेदार बोले… पीसीबी ने 80 से ज्यादा अस्पतालों पर की कार्रवाई
बीते एक माह में एमपी पीसीबी ने 80 से ज्यादा अस्पतालों पर कार्रवाई की है। इनमें 12 से ज्यादा अस्पतालों को बंद करने का निर्देश दिए। 36 से ज्यादा को बंद करने का नोटिस जारी किया। इससे फर्जी पलंग संख्या में कुछ कमी आई है। आगे भी कार्रवाई जारी रहेगी।
-आरएस सेंगर , क्षेत्रीय अधिकारी, ग्वालियर
दावा- ग्वालियर के अस्पतालों में जितने बेड, उतने प्रदेश के किसी भी शहर में नहीं
ग्वालियर के अस्पतालों में 10 हजार बेड का फर्जीवाड़ा, क्योंकि मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में यह संख्या दर्ज ही नहीं। ताकि भविष्य की जरूरत के अनुसार कॉमन बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी (इंसीनरेटर) की स्थापना सुनिश्चित की जा सके।
स्वास्थ्य विभाग और बोर्ड के आंकड़ों में इसलिए अंतर
अस्पताल खोलने के लिए मुख्य रूप से सीएमएचओ कार्यालय में पंजीयन के साथ ही मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी अलग-अलग समय में अनुमतियां लेनी होती हैं। अधिकांश अस्पताल संचालक केवल सीएमएचओ कार्यालय में ही पंजीयन कराते हैं। ऐसे में पंजीयन शुल्क नहीं मिलने से शासन को आर्थिक नुकसान होता है।