अपने ही चचेरे-ममेरे भाई-बहनों से शादी करने का ट्रेंड?

दक्षिण भारत में आखिर क्यों बढ़ रहा है अपने ही चचेरे-ममेरे भाई-बहनों से शादी करने का ट्रेंड?
भारत में कजिन या दूसरे ब्लड रिलेशन में शादी के आंकड़े लगभग 11 प्रतिशत है. लेकिन जब बात दक्षिण भारत के राज्यों की करें तो केवल दक्षिण भारत के चार बड़े राज्यों का आंकड़ा इस आंकड़े से ढाई गुना है. 

कुछ समुदायों में अपने ही चचेरे भाई-बहनों से शादी करने की अनुमति हैं, तो कई समुदायों में दूर दूर तक भाई या बहन के बीच रोमांटिक रिश्ते की कल्पना भी नहीं की जाती है. एक ही परिवार में विवाह न करने के कई वैज्ञानिक कारण भी है. 

इस बीच हाल ही में नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि पिछले कुछ सालों में दक्षिण भारत में हिंदू और बौद्ध समुदाय में अपने ही चचेरे भाई बहनों से शादी करने का ट्रेंड यानी सजातीय विवाह (Consanguineous Marriages) काफी बढ़ा है.

इस रिपोर्ट के अनुसार जहां पूरे भारत में परिवार के अंदर कजिन या दूसरे ब्लड रिलेशन से शादी के आंकड़े लगभग 11 प्रतिशत है. लेकिन जब बात दक्षिण भारत के राज्यों की करें तो केवल दक्षिण भारत के चार बड़े राज्यों का आंकड़ा इस आंकड़े से ढाई गुना है. 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) की रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु में सबसे ज्यादा यानी 28% कजिन मैरिज हुए हैं, इसके बाद कर्नाटक में 27 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 26%, पुडुचेरी में 19% और तेलंगाना में 18 % अपने ही परिवार में शादियां हुई है. वहीं केरल दक्षिण भारत का अकेला ऐसा राज्य जहां कजिन मैरिज राष्ट्रीय औसत से काफी कम यानी केवल 4.4% है. 

ऐसे में सवाल ये उठता है कि दक्षिण भारत में अपने ही परिवार में शादी कर देने का ये ट्रेंड इतना ज्यादा क्यों बढ़ रहा है और क्या इस तरह की शादी होना देश की जनसंख्या के लिए खतरनाक है?

पहले समझते हैं कि सजातीय विवाह क्या होता है 

सजातीय मैरिज एक कपल का ऐसा कानूनी विवाह है जिसमें लड़का और लड़की के एक ही पूर्वज होते हैं. दुनिया भर में अपने ही परिवार में शादी करने की परंपरा कोई नई नहीं है. लेकिन इस तरह की शादियां खासतौर पर इस्लामिक रीति रिवाज को फॉलो करने वाले देश एशिया, सऊदी अरब, अफगानिस्तान, लीबिया, पाकिस्तान में देखी जाती है.

दक्षिण भारत में ही क्यों बढ़ रहा है एक ही परिवार में शादी करने का ट्रेंड 

मुस्लिम समुदाय में कजिन विवाह की शुरुआत अपने कबीलों को मजबूत रखने, और अपने प्रॉपर्टी को परिवार के अंदर ही रखने के लिए किया जाता है. ठीक इसी तरह समाजशास्त्री आर इंद्रा ने स्टडी आईएएस की आर्टिकल में बताया है कि दक्षिण भारत के कजिन मैरिज ट्रेंड बढ़ने के तीन सबसे बड़े कारण है.

कास्ट: समाजशास्त्री आर इंद्रा के अनुसार ज्यादातर लोग अपने ही कास्ट में शादी करना चाहते हैं. इसी वजह से वह अपने ही घर के बच्चों या दूर के किसी रिश्तेदार की बेटी या बेटे से अपने बच्चों की शादी करवा देते हैं.

क्लास: अपने ही परिवार में शादी करने का दूसरा कारण क्लास माना जाता है. लोगों को लगता है कि उनकी अर्जित की हुई संपत्ति इस तरह से अपने ही घर में जाएगी और अपने ही परिवार को मजबूत होने में मदद करेगी. 

डाइवर्सिटी: भारत में अलग अलग समुदाय,जाति, धर्म और भाषा वाले लोग एक साथ रहते हैं. कई राज्यों में तो एक समुदाय के होने के बाद भी उनके रहने, खाने-पीने का तरीका काफी अलग होता है. ऐसे में लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे की शादी परिवार के अंदर ही हो जाए ताकि उन्हें इस डायवर्सिटी के कारण खुद को बदलना न पड़े.  

इतिहासकार अविनाश कुमार ने एबीपी से बातचीत करते हुए कहा कि एक ही परिवार में शादी कर लेना दशकों से चली आ रही है. उनका मानना है कि इसके पीछे का एक कारण प्राचीन काल में छोटे छोटे साम्राज्य का होना भी है. अलग अलग साम्राज्य के होने और उनके एक दूसरे से बनते बिगड़ते रिश्तों का असर आम लोगों को पर पड़ने के कारण यहां के लोग किसी अन्य साम्राज्य में अपनी बेटी की शादी करने की जगह अपने ही साम्राज्य में उनकी शादियां करवा देते थे. यही नहीं ऐसा माना जाता है कि अक्सर नदी जैसे वास्तविक बाधाएं को पार कर कहीं और जाने से बचने या परिवार के खेती के जमीन की दूरी को ध्यान में रखते हुए भी शादियों को अपने आसपास के परिवारों में कराई जाने लगी. जो समय के साथ एक सोशल कस्टम बनता चला गया.

दक्षिण भारत में ही क्यों, नॉर्थ में क्यों नहीं हो रहे सहजातीय विवाह

एक सवाल ये भी उठता है कि सिर्फ दक्षिण भारत में ही एक ही परिवार में शादी करने का ट्रेंड क्यों इतना ज्यादा बढ़ रहा है. इस सवाल का जवाब देते हुए समाजशास्त्री विशाखा पुरी ने एबीपी से बातचीत करते हुए बताया कि उत्तर भारत और दक्षिण भारत के कल्चर में बहुत ज्यादा फर्क है. वहां के लोगों की सोच से लेकर जीने का तरीका सब कुछ एक दूसरे के बिल्कुल अलग है.

उत्तरी भारत में परिवार में शादी कम होने का एक कारण गोत्र भी है. यहां एक जातियों में तो शादी की जाती है लेकिन एक गोत्र में नहीं की जाती. ऐसा मानना है कि एक गोत्र वाले व्यक्ति के एक ही पूर्वज होते हैं. लेकिन वहीं दक्षिण भारत के हिंदुओं में गोत्र नहीं माना जाता है जिससे उन्हें एक ही परिवार में शादी करने में आसानी होती है. 

अब वैज्ञानिक इस तरह की शादियों से क्यों है परेशान 

समाजशास्त्रियों की मानें तो भारत में उभर रही खास तरीके की सजातीय शादियों का व्यापक दुष्परिणाम राजनीति, अर्थव्यवस्था से लेकर स्वास्थ्य के क्षेत्र में दिखाई देगा.

राजनीति: इस तरह की शादियों को राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो अगर लोग अपने ही परिवारों में शादियों करने लग गए तो कुछ अमीर परिवारों का अपना नेटवर्क तैयार हो जाएगा जो कि लोकतंत्र की सभी संस्थाओं पर काबिज होंगे. इतना ही नहीं इन अमीर परिवारों का अखबार, मीडिया आदि पर प्रभुत्व स्थापित हो जाएगा और अगर ऐसा होता है तो कोई भी पार्टी, भले ही सामाजिक न्याय या फिर समाजवाद का झंडा उठाए हुए हो, राजनीतिक सत्ता हासिल करके, वास्तविकता में इन्हीं इलीटों के हित में ही काम करेगी.

अर्थव्यवस्था:  न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में इस तरह की शादियों के प्रभाव की समीक्षा करते हुए बताया गया है कि अपने ही जाति या परिवार के अंदर शादी करने के कारण आने वाली पीढ़ियों में असमानता आएगी हैं. इससे होगा ये कि आने वाली पीढ़ियों में कुछ लोग बहुत ही अमीर पैदा होंगे, तो कुछ लोग बहुत गरीब. जो लोग अमीर पैदा होंगे उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, हर तरह की फैसिलिटी मिल पाएगी, जबकि जो निम्न जाति-वर्ग में पैदा होंगे वह इस तरह की सुविधाओं से महरूम रह जाएंगे. ऐसे में हमारा देश धीरे-धीरे हम एक ऐसी व्यवस्था की तरफ बढ़ता चला जाएगा जहां किसी खास परिवार में जन्म लेना ही जीवन की दिशा तय कर देगा.  

अब समझिए इस के विवाह का स्वास्थ्य पर क्या पड़ेगा असर 

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट प्रियंका शर्मा ने एबीपी से बातचीत करते हुए कहा कि अगर दो वयस्क जो एक ही परिवार के हैं और उनकी शादी होती है तो उन्हें बच्चे के पैदा होने के संबंध में जरूर विचार करना चाहिए. मैं ऐसा इसलिए कह रही हूं क्योंकि चचेरे भाई-बहनों के बीच रक्त समूह समान होता है.

भले ही उनका रक्त समूह यानी ब्लड ग्रुप अलग अलग हो लेकिन उनके शरीर में दौड़ रहे खून के फिजिकस कंपोनेन्ट एक समान ही होंगे क्योंकि वह एक ही परिवार से हैं. यही कारण है कि एक ही पूर्वज साझा करने वाले पति-पत्नी स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के लिए चिकित्सकीय रूप से फिट नहीं होते हैं.  ऐसी शादियों में बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से असामान्य होने की संभावना अधिक होती है. 

इसके अलावा भारत की जाति-व्यवस्था पर जेनेटिक्स में हुए हालिया शोध के अनुसार आज की जाति-प्रथा के मौजूदा स्वरूप की शुरुआत लगभग दो हजार साल पहले हुई थी. लगभग 70 जनरेशन पहले हमारे पुरखों ने दूसरे बिरादरी में शादी करना बंद कर दिया था, जिसके कारण सजातीय विवाह से लैस जाति-प्रथा के मौजूदा स्वरूप का जन्म हुआ.

साल 2013  में यूनाइटेड किंगडम में स्टडी की गई थी. जिसमें एक ही परिवार में किए गए शादी से जन्मे 11 हजार बच्चों के टेस्ट से ये बात सामने आई कि कुल बच्चों के 3 प्रतिशत बच्चों में जेनेटिक एनोमालीज पाई गई है. जबकि इस तरह की जेनेटिक एनोमालीज उन बच्चों में इसका लगभग आधा यानी 1.6 प्रतिशत देखा गया जो अपने परिवार की शादी से जन्मे नहीं होते हैं. यानी दो अलग अलग ब्लड रिलेशन के माता पिता से जन्मे होते हैं.

एक ही परिवार में शादी करने को लेकर अलग-अलग धर्म और संप्रदायों के नियम 

यहूदी धर्म (हिब्रू बाइबिल) :  बाइबिल दो हैं, ओल्ड टेस्टामेंट और न्यू टेस्टामेंट. यहूदी धर्म के लोग हिब्रू बाइबल को मानते हैं और ये ओल्ड टेस्टामेंट का ही दूसरा रूप है. हिब्रू बाइबिल के अन्दर भी कई किताबें हैं. रही बात एक ही परिवार में शादी करने की या कजन मैरिज की तो हिब्रू बाइबिल में इस तरह के रिश्तों को प्रतिबंधित नहीं किया गया है. यानी इसको किसी तरह की कोई मनाही नहीं है. हालांकि, मूसा द्वारा हिब्रू भाषा में लिखे गए लैविटीकस 18 में कहा गया है कि सगे भाई-बहन, पिता की बहन, मां की बहन जैसे रिश्तों में सेक्सुअल रिलेशन नहीं बना सकते. 

हालांकि यहूदियों के इतिहास को देखें तो कई जगह कज़न-मैरिज की मिसालें मिलती हैं. उदाहरण के तौर पर इजराइल की बारह शुरुआती ट्राइब्स के ग्रैंडफ़ादर माने जानेवाले आइज़ेक ने  रेबेका से विवाह कियाथा जो कि उनकी कजन थी. आईजैक के बेटे जैकब ने भी अपनी फर्स्ट कजिन लिया और रशेल से शादी की थी. 

इस्लाम: मुसलमानों की पवित्र धार्मिक किताब कुरआन में फर्स्ट-कजिन मैरिज को लेकर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं है. इस्लाम के अलावा बुद्धिज़्म स्टैंडपॉइंट के अनुसार पत्नी के अलावा किसी अन्य से संबंध होना, पांच ‘पर्सेप्ट्स’ यानी पंच-उपदेशों के खिलाफ़ है. बौद्ध धर्म में कजन-मैरिज के बारे में कोई खास रोक या प्रावधान नहीं है, लेकिन यहूदी और मुस्लिम धर्म की तरह यहां भी एक सेट ऑफ़ रिलेशन में सेक्सुअल मिसकंडक्ट की सख्त मनाही है. सिख धर्म की बात करें तो इस धर्म में भी एक ही वंश में शादी को लेकर प्रतिबंध हैं.

किस उम्र के लोग कैसे कर रहे हैं शादियां 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार कर्नाटक में सबसे ज्यादा 15-49 आयु वर्ग की महिलाएं हैं, जिन्होंने अपने ही चचेरे भाई-बहनों से शादी की है. इनमें से 13.9 प्रतिशत महिलाओं की शादी मां की ओर से चचेरे भाई से हुई है तो वहीं 9.6% महिलाओं की शादी पिता की ओर से चचेरे भाई से हुई है. इसके अलावा लगभग  2.5% शादियां अन्य प्रकार के ब्लड रिलेशन से हुई है और 0.1% ऐसे लोगों से थे जो पहले जीजा-साले थे.

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