पेड-न्यूज के बाद अब नए खतरे भी सामने आ गए हैं !

पेड-न्यूज के बाद अब नए खतरे भी सामने आ गए हैं …
हमारा युग ‘पेड-न्यूज’ से काफी आगे बढ़ गया है और देर-सबेर चुनाव आयोग को संज्ञान लेना पड़ेगा। इनके अंतरराष्ट्रीय अनुभव हैं। 2016 में फिलीपींस में रोड्रिगो दुतेर्ते का चुनाव इन्हीं ने लड़ा। फ्रीडम हाउस ने अपनी वार्षिक ‘फ्रीडम ऑन द नेट रिपोर्ट’ जारी की है।

उसने अमेरिका सहित 18 देशों में चुनाव में ऑनलाइन मैनिपुलेशन अपनाए जाने का खुलासा किया है। स्वयं अमेरिका के चुनावों में रूसी प्रभाव इंटरनेट और बड़ी सोशल मीडिया कंपनियों व सर्च इंजनों के माध्यम से ही आया। अमेरिकी सीनेट की इंटेलीजेंस कमेटी के सामने प्रारंभिक ना-नुकुर के बाद फेसबुक, गूगल और टि्वटर को स्वीकारना पड़ा कि विज्ञापनों और फर्जी खबरों पर उनका नियंत्रण बहुत कम रहा है।

वहां जिस तरह से अब ‘ईमानदार विज्ञापन अधिनियम’ पर चुनावों के बाबत चर्चा हो रही है, हमें भी करनी होगी। वहां राजनीतिक विज्ञापनों का सार्वजनिक अभिलेखागार तैयार करने की बहस हमारे यहां भी चलाना होगी। फेसबुक ने जैसे कनाडा के लिए ‘इलेक्शन इंटीग्रिटी इनीशिएटिव’ 2019 के चुनावों के मद्देनजर लांच किया था, भारत में भी उसे ऐसा ही करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।

अमेरिकी चुनावों की शर्मिंदगी के बाद फेसबुक को फ्रांस व जर्मनी के चुनावों से पहले लाखों पृष्ठ शटडाउन करने पड़े। वहां अमेरिका में फेसबुक विज्ञापन विभाजनकारी सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों पर फोकस करते हुए पकड़े गए। अतः कनाडा में फेसबुक को साइबर-हाइजीन गाइड जारी करने का निर्णय लेना पड़ा है।

ध्यान देने की बात है कि अमेरिकी संघीय चुनाव आयोग के सामने ये कंपनियां पहले इस बात के लिए लॉबीइंग कर रही थीं कि उन्हें ऑनलाइन राजनीतिक विज्ञापन व्यापार का खुलासा करने से बचाया जाए। वो तो सीनेट की जांच समिति का दबाव है, जो इन कंपनियों को इस स्थिति में ले आया है कि वो कह रही हैं हम ही उस समस्या को हल करेंगे जो हमसे पैदा हुई। लेकिन मीडिया दुरुपयोग को रोकने के लिए जो एल्गोरिदम ये इंटरनेट कंपनियां बना रही हैं, वे आम जनता की निगाहों और निगरानी से बाहर हैं। सो एक तरह के ब्लैक बाक्स में हम सब अभी भी बंद हैं।

अमेरिकी चुनाव में यदि ट्रम्प के एक करोड़ टि्वटर फॉलोअर्स थे तो हिलेरी क्लिंटन के सत्तर लाख। ट्रम्प के फेसबुक फॉलोअर्स हिलेरी के फेसबुक फॉलोअर्स की तुलना में दोगुने थे और यह भी ध्यान देने योग्य है कि यह सब ट्रम्पोक्रेसी के लिए नहीं हुआ। ओबामा ने राजनीतिक प्रचार अभियान के लिए डिजिटल मार्केटिंग रणनीति शुरू की थी।

उन्होंने पाया कि डिजिटल का प्रभाव ज्यादा है, लागत कम। उन्होंने यह भी देखा कि टीवी की अपेक्षा डिजिटल प्रचार ज्यादा ध्यान बटोरता है। धीरे-धीरे दुनिया भर में इसके प्रति जागृति बढ़ रही है तो इसके बाबत कई देशों का चुनाव आयोग नियम भी बना रहा है।

न्यूजीलैंड में चुनाव के दिन पेड ऑनलाइन इलेक्शन एडवरटाइजिंग प्रतिबंधित है। उस दिन पेड विज्ञापन तो क्या, ऐसे कथनों की पोस्टिंग या शेयरिंग भी प्रतिबंधित है, जो किसी प्रत्याशी या दल को वोट देने न देने के व्यवहार को प्रभावित करते हैं।

यानी उस दिन निजी राजनीतिक दृष्टिकोण भी ऑनलाइन नहीं दिए जा सकते। लोगों का कहना है हाइपर-कनेक्टिविटी के दौर में चौबीसों घंटे की न्यूज में चुनावी मौन की अवधारणा पिछड़ी हुई है। पर हम देखते आए हैं कि एनालिटिका डाटा ब्रीच के जरिए राजनीतिक सौदागरी करती आई है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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