एमपी में क्यों पिट रही पुलिस …जनता से दूरी बढ़ रही, भरोसा घट रहा ?
मध्यप्रदेश में पुलिसकर्मियों पर लगातार हो रहे हमलों से पुलिस और जनता के रिश्तों पर सवाल खड़े हो रहे हैं। मार्च महीने में ही प्रदेश में पुलिस पर हमले की 6 घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें एक एएसआई की मौत हो चुकी है जबकि 8 जवान गंभीर रूप से घायल हो गए। पुलिस मुख्यालय के अधिकारी भी इससे हैरान हैं।
आखिर पुलिस पर हमले की घटनाएं क्यों हुईं? इन मामलों से निपटने में पुलिस से कहां चूक हुई? ऐसे सवालों के जवाब तलाशने के लिए दैनिक भास्कर ने पुलिस मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों के अलावा रिटायर्ड डीजीपी स्वराज पुरी, रिटायर्ड स्पेशल डीजी अनुराधा शंकर सिंह सहित पुलिस ट्रेनिंग से जुड़े अधिकारियों से भी बात की।
ज्यादातर अधिकारियों ने कहा कि जनता का पुलिस पर भरोसा कम हो रहा है। वहीं, अपराधियों की तासीर समझने में भी पुलिस नाकाम साबित हो रही है।
सिलसिलेवार जानिए वो 6 घटनाएं और कहां चूकी पुलिस
क्या चूक हुई: पुलिस मामले की गंभीरता नहीं समझ सकी
…..ने जब पुलिस के आला अधिकारियों से बात की तो उन्होंने इस केस में पुलिस की चूक के कई पॉइंट्स बताए। अधिकारियों के मुताबिक, मऊगंज में भीड़ के हिंसक होने का रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन जब पुलिस को सूचना मिली तो पुलिस मामले की गंभीरता को नहीं समझ पाई।
उस गांव और कम्युनिटी में पुलिस का मजबूत संपर्क नहीं था। पुलिस पहुंची तो वहां तनाव और बढ़ गया। घटना से पहले पुलिस और आदिवासियों के बीच कोई संवाद भी नहीं हुआ था।
क्या चूक हुई: पुलिस भीड़ को हैंडल नहीं कर पाई
पुलिस मुख्यालय के एक सीनियर अधिकारी कहते हैं कि यहां टकराव अपराधियों से नहीं, वकीलों के समूह से था। यदि पुलिस इस बात काे समझकर एक्शन लेती तो स्थिति नहीं बिगड़ती। अगले दिन चक्काजाम कर रही वकीलों की भीड़ को पुलिस हैंडल नहीं कर पाई।
क्या चूक हुई: दोनों टीम के बीच को-ऑर्डिनेशन नहीं था
आला अधिकारी कहते हैं कि पहले से ही यूपी पुलिस और बुढ़ार थाने की एक टीम वहां मौजूद थी। वो वहां एक आरोपी को हिरासत में ले चुकी थी, जिससे तनाव की स्थिति पहले ही बन गई थी। बुढ़ार पुलिस की दूसरी टीम वहां दूसरे मामले की जांच के लिए पहुंची थी।
दोनों टीम के बीच बातचीत नहीं हुई। ईरानी समुदाय के रिएक्शन का अंदाजा लगाए बिना पुलिस वहां पहुंच गई। पुलिस को मालूम था कि ईरानी प्रतिक्रिया कर सकते हैं। इसके बावजूद बिना तैयारी के पुलिस वहां पहुंची।
क्या चूक हुई: बिना तैयारी के पुलिस घटनास्थल पर पहुंची
पुलिस अधिकारी कहते हैं कि ये एक सामाजिक मसला था। दो पक्षों में विवाद था। आरोपी पक्ष भाग चुका था। ग्रामीण उनके घरों में तोड़फोड़ कर रहे थे। बिना तैयारी के इछावर थाने के केवल तीन पुलिसकर्मी घटनास्थल पर पहुंचे। गांव वालों से किसी तरह का कोई संवाद नहीं किया और रिएक्ट किया। हालात बिगड़ने से पुलिस की पिटाई हो गई।
क्या चूक हुई: हिस्ट्रीशीटर के मूवमेंट का अंदाजा नहीं लगा सके
पुलिस के आला अधिकारियों के मुताबिक, पहली चूक तो ये थी कि आरोपी को ठीक तरीके से हैंडल नहीं किया। उसे केवल पकड़कर रखा था। दूसरी चूक ये रही कि पुलिस उस जगह गई थी, जिसके चप्पे-चप्पे से आरोपी वाकिफ था। उसे पता था कि उसने कितने हथियार कहां छिपाए हैं?
उसने पुलिस को भरोसा दिलाने के लिए पहले एक हथियार जब्त कराया। पुलिसकर्मी रिलैक्स हो गए। फिर उसने चाल चली और उस जगह ले गया, जहां घातक हथियार छिपाया था। पुलिस अंदाजा ही नहीं लगा पाई कि आरोपी उसी हथियार से हमला कर सकता है।
क्या चूक हुई: बिना बंदूक के वारंटियों को पकड़ने गए
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, प्रधान आरक्षक प्यारेलाल और आरक्षक बृजेंद्र बिना बंदूक के केवल लाठी लेकर वारंटियों को पकड़ने गए थे। जब वे वहां पहुंचे तो स्थिति को भांप नहीं सके। ग्रामीणों से बहस के दौरान बात बिगड़ी और उन्होंने दोनों पर हमला कर दिया। वो अंदाजा नहीं लगा सके कि ग्रामीणों के पास लाठी-डंडे और धारदार हथियार हो सकते हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स… ने एक्सपर्ट्स से बात की तो मुख्य रूप से 5 बातें निकलकर सामने आईं-
- जनता का पुलिस पर भरोसा कम हो रहा, उनके बीच दूरी बढ़ रही है।
- अपराधियों की तासीर समझने में पुलिस नाकाम हो रही है, उनमें पुलिस का खौफ कम हुआ है।
- पुलिस के पास भीड़ से निपटने की रणनीति नहीं है।
- पुलिस का खुफिया तंत्र कमजोर हो रहा है।
- सोशल मीडिया में पुलिस की नेगेटिव इमेज बनाई जा रही है।
जनता से दूरी बढ़ रही, भरोसा घट रहा
रिटायर्ड स्पेशल डीजी अनुराधा शंकर सिंह बताती हैं कि पुलिसकर्मियों को अपने इलाके को गहराई से समझना बेहद जरूरी है। किसी भी क्षेत्र में तैनात पुलिस अधिकारी को वहां की सामाजिक संरचना, इतिहास और प्रमुख लोगों की जानकारी होनी चाहिए।
यदि पुलिस स्थानीय समुदाय से संवाद बनाए रखेगी, तो टकराव की संभावना कम होगी। वे आगे कहती हैं कि टकराव इसलिए भी बढ़ रहे हैं क्योंकि जनता और पुलिस दोनों ही अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर रहे हैं।
सोशल मीडिया में बन रही नेगेटिव इमेज
रिटायर्ड डीजीपी स्वराज पुरी बताते हैं कि समाज में पुलिस के प्रति नजरिया बदला है। पहले एक सिपाही अकेले किसी गांव में जाकर वारंट तामील कर सकता था, लेकिन अब पुलिस दल को भीड़ का सामना करना पड़ता है। सोशल मीडिया और फिल्मों के चलते पुलिस की छवि प्रभावित हुई है।
पुरी के मुताबिक, नागरिकों और पुलिस के बीच भरोसा पैदा करने की जरूरत है। हर क्षेत्र में ऐसे ग्रुप की पहचान करना जरूरी है, जो पुलिस से संवाद स्थापित कर सके। साथ ही समाज अपराधियों का समर्थन न करें, इसे कम कैसे किया जाए… इस दिशा में पहल करने की जरूरत है।
भीड़ से निपटने की रणनीति बनानी होगी
डीएसपी मदन मोहन समर बताते हैं कि कई अपराधी पुलिस से टकराने को अपनी ताकत साबित करने का जरिया बना रहे हैं। कानूनों में हुए बदलावों का दुरुपयोग हो रहा है और कई अपराधी थाने से ही जमानत पा जाते हैं, जिससे पुलिस का डर खत्म हो रहा है।
इंटेलिजेंस के एक सीनियर अधिकारी कहते हैं कि पुलिस पैरासिटामॉल की टैबलेट की तरह है। जब भी बुखार आया यानी हालात बिगड़े तो पुलिस को भेज दिया। लेकिन, हम ये नहीं जानना चाहते कि इन्फेक्शन की असली वजह क्या है? जितनी घटनाएं हुईं, उसकी पड़ताल करेंगे तो पता चलेगा कि विवाद भड़कने के पीछे सामाजिक कारण ज्यादा असरदार रहे हैं।