झूठे मुकदमों में बर्बाद होता जीवन !

झूठे मुकदमों में बर्बाद होता जीवन, कानून लोगों की मदद के लिए हैं, किसी को सताने के लिए नहीं

स्त्री रक्षा संबंधी कानूनों के तहत जिन पुरुषों और उनके घर वालों को मुकदमे झेलने पड़ते हैं उनकी आफत का तो कहना ही क्या। कितने मामलों में यदि पुरुष विवाहित है तो पत्नियां ही घर छोड़कर चली जाती हैं। बहुत से लोग अपनी जीवनलीला समाप्त करने के बारे में सोचते हैं। यदि किसी बुजुर्ग पर ऐसे आरोप लगाए जाते हैं तो उसकी खैर नहीं रहती।

 पिछले दिनों नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) से सूचना के अधिकार के तहत पूछे गए सवाल के जवाब के हवाले से एक खबर आई। उससे पता चला कि एक साल में करीब सवा लाख मुकदमे झूठे पाए गए। ये मुकदमे दूसरों को फंसाने के लिए दर्ज कराए गए थे। जिन लोगों पर मुकदमे किए गए थे, उनके खिलाफ आरोपों की पुष्टि नहीं हो सकी यानी वे झूठे थे। कहीं रास्ते के विवाद में दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराया गया। कहीं विरोधी पर दबाव बनाने के लिए छेड़खानी का मुकदमा तो कहीं दुश्मनी निकालने के लिए मारपीट का मुकदमा दर्ज कराया गया।

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